!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 67 !!
गच्छोद्धव व्रजं …
भाग 2
तुम जाओ ना उनके पास……जाओ ना ! मेरा सन्देश देकर आओ ना !
मैं ? उद्धव फिर हँसे……मेरे जैसा ज्ञानी उन गंवार गोपीयों को …..
कृष्ण नें गम्भीर होकर उद्धव का मुँह बन्द किया……..
ऐसे मत बोलो …..अनपढ़ हैं …….पर गंवार नही हैं मेरी गोपियाँ ।
उद्धव का गोपियों को “गंवार” कहना कृष्ण को अच्छा नही लगा था …..इस बात को उद्धव समझ गए ……….
मेरे लिये क्या आज्ञा है ?
तुम जाओ ! उद्धव ! तुम जाओ वृन्दावन…….मेरी गोपियों को समझाना…….तुम समझा सकते हो……वो समझदार हैं, हाँ …बहुत समझदार हैं……कृष्ण उद्धव के हाथों को पकड़ कर बोल रहे हैं ।
पर मेरी वैदुष्यपूर्ण भाषा ? उद्धव का अभिमान दीख रहा था ।
सरल भाषा में बोलना ना उद्धव !
कुछ देर शान्त रहनें के बाद उद्धव नें कहा ……………क्या सन्देश है आपका उन लोगों के लिये ।
उद्धव ! कहना , कहना उन गोपियों से ……और विशेष मेरी राधा से कि वो सब मुझे याद न किया करें ………उद्धव ! उन्हें मेरी याद आती है तभी तो मुझे याद आरही है ना ………कहना उनको उद्धव ! कि न करें मुझे याद ………मैं उन्हें बिल्कुल याद नही करता ……….ये कहते हुये अपनें आँसू पोंछ रहे थे कृष्ण ………उद्धव देख रहे हैं कृष्ण की इन विचित्र लीला को और चकित हैं ।
मेरी मैया यशोदा को कहना ………उसका लाला उन्हें बहुत याद करता है …………मेरी गेंद सम्भाल के रखना …….मैं आऊँगा ………..और हाँ कहीं वो मनसुख मेरी गेंद न ले जाए …………..कृष्ण ये कहते हुए हिलकियों से रो पड़े …………और हाँ ये भी कहना ……..कि तेरे बिना तेरे लाला नें भर पेट भोजन नही किया है मथुरा में ……………उद्धव कृष्ण को देख रहे हैं …………कि ये क्या हो गया इनको ।
जाओ ! जाओ उद्धव ! कृष्ण नें उद्धव के मुख को अपनी हथेलियों से छूआ …….इस मुख को मेरी राधा देखेगी……..आह ! पता है उद्धव ! तुम मेरे जैसे ही लगते हो …….बिल्कुल मेरे जैसे ………रुको !
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –

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