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October 27, 2025 5:31 pm

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 67 !!-गच्छोद्धव व्रजं …भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 67 !!-गच्छोद्धव व्रजं …भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 67 !!

गच्छोद्धव व्रजं …
भाग 3

मेरी मैया यशोदा को कहना ………उसका लाला उन्हें बहुत याद करता है …………मेरी गेंद सम्भाल के रखना …….मैं आऊँगा ………..और हाँ कहीं वो मनसुख मेरी गेंद न ले जाए …………..कृष्ण ये कहते हुए हिलकियों से रो पड़े …………और हाँ ये भी कहना ……..कि तेरे बिना तेरे लाला नें भर पेट भोजन नही किया है मथुरा में ……………उद्धव कृष्ण को देख रहे हैं …………कि ये क्या हो गया इनको ।

जाओ ! जाओ उद्धव ! कृष्ण नें उद्धव के मुख को अपनी हथेलियों से छूआ …….इस मुख को मेरी राधा देखेगी……..आह ! पता है उद्धव ! तुम मेरे जैसे ही लगते हो …….बिल्कुल मेरे जैसे ………रुको !

गए सन्दूक खोला……..अपना मोर मुकुट निकाला ……….और अपनें मित्र उद्धव को लगानें लगे ………..फिर दूर खड़े होकर देखनें लगे उद्धव को ………….मेरी राधा देखेंगी तुझे उद्धव ! बस बार बार यही बोले जा रहे थे कृष्ण ।

काली कमरिया …….ये कन्धे में रख लो …………मैं इसे ऐसे ही रखता था …………..तुम भी ऐसे ही रखो …………।

हाँ ……..अब जाओ ………..जाओ उद्धव ! जाओ ।

अभी जाऊँ ? उद्धव नें कृष्ण के चरणों में वन्दन करते हुए पूछा ।

हाँ …..अभी जाओ !

महाराज उग्रसेन से आज्ञा तो ले लूँ ……मैं महामन्त्री हूँ भगवन् !

नही ….किसी से न आज्ञा लेनें की आवश्यकता है …..न किसी को ये बात बतानें की ……मैं हूँ मथुरा में ……..सब सम्भाल लूंगा ………मैनें ही तुम्हे किसी विशेष कार्य में लगाया है……..कह दूँगा …….मुझ से कोई पूछनें की हिम्मत नही करता…….महाराज उग्रसेन तक नही ।

उद्धव का हाथ पकड़ कर चल दिए कृष्ण…………

मेरे रथ में जाओ उद्धव ! ………कृष्ण नें अपना रथ दिया उद्धव को ।

उद्धव रथ में बैठे ……….कृष्ण को इस तरह बेचैन देख बोल पड़े ….

आप भी चलते वृन्दावन …….पास में ही तो है चलिये ना !

उद्धव नें जब ये बात कही …………फिर रो पड़े थे कृष्ण ।

जा नही सकता………कारण है उद्धव …..मैं वापस जा नही सकता ।

उद्धव नें कृष्ण को प्रणाम किया …….और रथ को जैसे ही चलाया ।

मैया के चरणों में अपना सिर रखकर प्रणाम करना उद्धव ……….वो बड़ी वात्सल्यमयी हैं ……………कहना उसके लाला नें ये कहा था ।

मेरी राधा से कहना …….हम मिलेंगें ………अवश्य मिलेंगें ……

मेरे सखाओं को कहना……माखन चुराना कृष्ण को बहुत याद आता है ।

रथ चलता गया …….कृष्ण काफी दूर तक दौड़ते हुए बोलते रहे …….

उद्धव नें बार बार जब कहा- आप लौट जाइए………तब जाकर खड़े हो गए कृष्ण ……..रथ चलता गया………कृष्ण देखते रहे ….धूल उड़ती रही रथ की…….वृन्दावन वृन्दावन ……कृष्ण देख रहे थे उस दिशा की ओर ।

उद्धव शायद पहुँच गए होंगें वृन्दावन……..कृष्ण अपनें आँसुओं को पोंछते हुए लौट गए थे अपनें महल में…………

शेष चरित्र कल –

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Author: admin

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