!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 68 !!
उद्धव की वृन्दावन यात्रा
भाग 1
हे वज्रनाभ ! उद्धव रथ में बैठकर चल दिए थे वृन्दावन की ओर ।
पर जैसे ही श्रीधाम की सीमा शुरू हुयी….
ओह ! चकित हो गए उद्धव जी ।
( साधकों ! मैं स्वतन्त्ररूप से “उद्धव गोपी संवाद” दो वर्ष पहले ही 70 भाग तक लिख चुका हूँ ….आप लोग चाहें तो फेस बुक में जाकर उसे पढ़ सकते हैं……इसलिये इस संवाद को मैं ज्यादा विस्तार नही दूँगा )
वृन्दावन को देखते ही उद्धव विचार करनें लगे ………….
मैने स्वर्ग भी देखा है……..हाँ मेरा सौभाग्य है ये कि मेरे गुरुदेव एक दिन अपनें साथ मुझे स्वर्ग ले गए थे ……..उस समय गुरु बृहस्पति नें मुझे स्वर्ग लोग की सुन्दरता दिखाई थी ……मैने नन्दनवन भी देखा था स्वर्ग का …………
पर…….इस श्रीधाम वृन्दावन के सामनें …….तुच्छ है नन्दन वन …..
इस वृन्दावन के सामनें स्वर्ग की सुन्दरता न्यून है ।
उद्धव देख रहे हैं और आश्चर्य में हैं ।
चारों ओर हरियाली छाई है ……..धरती हरीतिमा लिए हुए है ……….कहीं भी सूखा तृण नही है ……….हरा ही हरा ।
वृन्दावन के वृक्षों की तुलना में….पारिजात भी कितना व्यर्थ लगता है ।
कल्प वृक्ष है ये वत्स ! मुझे मेरे गुरुदेव बृहस्पति नें कल्पवृक्ष भी दिखाया था…….पर यहाँ के वृक्षों में जो बात है…..वो कल्पवृक्ष में भी नही थीं ……..इन वृन्दावन के वृक्षों को देखते ही ऐसा क्यों लग रहा है ……कि ये सब मुझे गले लगाना चाहते हैं…..इन्हें मुझ से कुछ पूछना है ……और मुझे भी ऐसा लग रहा है कि मैं इन्हें गले लगाकर रोऊँ !
कितना सुन्दर है ये वन ……..कितना प्रेमपूर्ण है ये वन ……….
उद्धव विचार करते हैं – स्वागत समुत्सुका – वृन्दावन ।
हाँ यही लगता है इन वन को देखते हुए…… तभी तो कृष्ण इस वन के लिये इतनें व्याकुल थे…….
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल ……..

Author: admin
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