!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( “देखौ सुन्दरता की सीवाँ” – सौन्दर्य का चमत्कार )
श्रीराधा – रूप-सौन्दर्य की चरमावस्था हैं । सौन्दर्य का चमत्कार हैं ।
वो मुस्कुराती हैं तो ब्रह्म अपने आपको भूल जाता है , वो चलती हैं तो उनके पायल की झंकार से ॐकार नाद प्रकट हो जाता है । ये अपने घुंघराली लटों को जब सँवारती हैं तब रमा उमा ब्रह्माणी मूर्छित होकर गिर पड़ती हैं ।
ये ब्रह्म को आह्लाद देने वाली हैं , ये ब्रह्म को सुख प्रदान करने वाली हैं । आप श्रीराधा को क्या समझते हैं ! ये प्रकाश की प्रकाश हैं …ये रूप सौन्दर्य की सीमा हैं …और हाँ एक बात ..इनका रूप इन्हीं का है , ये किसी की अवतार नही है , इसलिए इनसे किसी की कोई समता भी नही है ।
राधा बाग में आज श्रीहित चौरासी जी के बावनवे पद गायन के लिए बाबा ने जब कहा ….तब संगीतज्ञों ने पूछा – बाबा ! राग ? बाबा बोले – मल्हार । और आश्चर्य ! बाबा का मल्हार बोलना और उसी समय काले काले बादलों का नभ में छा जाना । अद्भुत था ये सब । सारंगी वाले ने मल्हार छेड़ दिया था ..पखावज में उसका संगत होने लगा । सारंगी रुके तो गौरांगी की वीणा झंकृत हो ….वीणा रुके तो बाँसुरी ! साक्षात निकुँज ही प्रकट हो गया था …और सब यहाँ बैठे सखी भाव से भावित ही थे ।
बाबा मध्य मध्य में “आहा ! जय हो ! वाह ! “ ऐसे बोलते हैं …और भाव में डूब जाते हैं । पाँच मिनट ही हुए होंगे …कि वर्षा आरम्भ हो गयी । पर बाबा ने दो दिन से राधा बाग में तिरपाल लगवा दिया है …वर्षा हो तो लोगों को अस्तव्यस्त न होना पड़े इसलिए ।
संगीतकार मग्न हैं अपने रागों के साथ , और बाबा मग्न हैं अपने “युगल रस” के साथ ।
आधे घण्टे तक मात्र वाद्यों की संगति चलती रही ….फिर जब ये रुक कर सम में आए ….तब बाबा ने कहा – अब पद का गायन करो । गौरांगी ने वाणी जी खोली और पद गायन आरम्भ कर दिया ।
मल्हार राग में आज का गायन अद्भुत से भी अद्भुत था ।
देखौ माई सुन्दरता की सीवाँ ।
बृज नव तरुनि कदंब नागरी , निरखि करत अध ग्रीवाँ ।।
जो कोउ कोटि कलप लगि जीवै , रसना कोटिक पावै ।
तउ रुचिर वदनारविंद की , शोभा कहत न आवै ।।
देव लोक भु लोक रसातल , सुनि कवि कुल मति डरियै ।
सहज माधुरी अंग अंग की , कहि कासौं पटतरियै ।।
श्रीहित हरिवंश प्रताप रूप गुन , वय बल श्याम उजागर ।
जाकी भ्रू विलास बस पशुरिव , दिन विथकित रस सागर । 52 ।
देखौ माई सुन्दरता की सीवाँ……….
बूँदें पड़ रही हैं ….काले काले बादलों के कारण रात्रि जैसा वातावरण हो गया है ….पर बड़ा सुखद लग रहा है ….मोर बोल रहे हैं ….पपीहा बोल रहे हैं …कोयल बोल रही है …इन्हीं सबके मध्य में पागल बाबा अब ध्यान करा रहे हैं ….इसी पद का ध्यान । आप सब भी कीजिए ।
!! ध्यान !!
कहाँ हैं मेरी प्यारी !
यमुना पुलिन में अभी ये युगल मिल ही तो रहे थे …पर अब श्रीराधा कहाँ गयीं ?
व्याकुल हो उठे श्यामसुन्दर …तब सखियों ने उन्हें सम्भाला और लेकर चल पड़ीं ।
सखियों ! मुझे कहाँ ले जा रही हो ? श्याम सुन्दर ने अधीर होकर पूछा ।
प्यारे ! आपकी प्यारी से मिलाने के लिए हम आपको लेकर जा रहे हैं ।
सखियाँ बड़े प्रेम से लाल जू को सम्भाल कर ले जा रही हैं …श्याम सुन्दर धीरे धीरे चल रहे हैं …अवनी में लटक लटक के अपने चरण रख रहे हैं …चलते समय अपनी प्यारी की याद के कारण ये अत्यन्त व्याकुल भी हो रहे हैं ।
ललिता सखी एक सुन्दर से कुँज के बाहर खड़ी है …सखियाँ उसी कुँज में ले गयीं …श्याम सुन्दर उस कुँज को देखते हैं …वो स्वयं भी इस कुँज की बनावट देखकर चमत्कृत हैं ….ये कौन सा नवीन कुँज है सखी ? श्याम सुन्दर पूछते हैं । ललिता कहती है – प्यारे ! ये वर्षा कुँज है । यहाँ वर्षा होती रहती है …किन्तु श्याम सुन्दर को इससे मतलब नही है ….वो पूछते हैं ..क्या मेरी प्यारी यहाँ हैं ? ललिता सखी कहती हैं …हैं तो सही । श्याम सुन्दर भीतर जाने लगते हैं तो ललिता रोक देती है ….कहती है – प्यारे ! अभी रुक जाओ । क्यों ? श्याम सुन्दर पूछते हैं…..ललिता उत्तर देती है ….भीतर हमारी स्वामिनी जू का श्रृंगार हो रहा है । तो सखी मुझे भी जाने दे ना ! श्यामसुन्दर प्रसन्न होकर भीतर जाने लगते हैं …तो ललिता फिर रोक देती है …नही , प्यारे ! आप अभी नही जा सकते …यहीं रुको ! मैं भीतर जाकर देखती हूँ …ललिता सखी भीतर गयी है ….श्याम सुन्दर बाहर ही ललिता की प्रतीक्षा में खड़े हैं । समय लगा ललिता को ,वो आईं ।
श्याम सुन्दर का हाथ पकड़ कर उस कुँज में ललिता जैसे ही ले गयीं ….वहाँ तो वर्षा ऋतु है ….आहा ! रिमझिम वर्षा हो रही है ….वहाँ की लताएँ भीजीं हुयी हैं ….घने कुँज हैं …लताएँ इतनी घनी हैं कि बूँदे कम कम ही आ पा रही हैं , पर आ रही हैं । मोरों की ध्वनि कभी कभी सुनाई दे रही है …जिसके कारण राग-रंग का आभास हो । ललिता सखी श्याम सुन्दर का हाथ पकड़ कर उस कुँज में घुमा रही है ….उस कुँज में छोटी छोटी तलैया भी हैं ….जिनमें कमल पुष्प खिले हुये हैं ….शुक पक्षी बहुत हैं ….वो भी अपनी उपस्थिति दर्शाते रहते हैं । ये सब देखते हुए कुंजों के लताओं का दर्शन करते हुये श्याम सुन्दर पहुँचे एक सुन्दर से स्थान में । उस अति सुन्दर स्थान में नाना प्रकार के पुष्प लगे हुये थे …फुल वारी सुन्दरतम थी ……सामने एक सिंहासन था …उच्च और मनोहर सिंहासन । उस सिंहासन की सजावट पुष्पों की कलियों से की गयी थी …श्याम सुन्दर ने देखा …उस सिंहासन में श्रीराधारानी विराजमान हैं । उनकी उस रूप राशि का दर्शन करते ही श्याम सुन्दर तो सुध बुध खो गये …गिरने ही जा रहे थे कि तभी प्रिया जी उठीं और अपने प्रीतम को आगे बढ़कर सम्भाल लिया …श्याम सुन्दर आनन्द सिंधु में डूब गये थे ।
प्रिया जी ने उन्हें सम्भाल कर अपने दाहिनी ओर सिंहासन में विराजमान कराया ।
क्या हो गया था ? हित सखी से अन्य सखियाँ पूछती हैं । क्या ? हित प्रतिप्रश्न करती है ।
श्याम सुन्दर गिर गये थे ना ? हित सखी हंसते हुये कहती है ….इस सुन्दरता को जो भी देखेगा वो तो सुध बुध खोयेगा ही ….आहा ! देखो ना ! क्या सौन्दर्य की परावधि है । हित सखी भी मुग्ध होकर श्रीराधारानी को अपलक निहारने लग जाती है ।
क्या हुआ ! आगे कुछ तो बोलो ! सखियाँ झकझोरती हैं हित को …तो हित सखी कहती है ….सुन्दरता की सीमा देखनी है तो हमारी श्रीराधा प्यारी को देखो । कितनी सुन्दर हैं ।
हाँ , सुन्दर तो बहुत हैं हमारी स्वामिनी जू ! सारी सखियाँ बोलीं ।
नहीं , हित सखी कुँज के चारों ओर देखती है …..फिर कहती है …..ललिता सखी को देखो ….विशाखा सखी को देखो ..रंगदेवि सखी और सुदेवी सखी को देखो …..ये सब साधारण नही हैं …ललिता आदि परा शक्ति हैं …..इनके आगे बड़े बड़े शिवादि भी नतमस्तक रहते हैं …सौन्दर्य ललितादि में जितना हैं उतना और किसमें होगा ! पर ये सखियाँ भीं हमारी श्रीराधारानी के आगे सिर झुकाकर खड़ी हैं…..इतनी सौन्दर्य निधि हैं हमारी श्यामा जू ….
हित सखी बड़ी ठसक से बोलती है ।
कुछ तो सुनाओ इनकी अपूर्व रूप राशि के विषय में ! सखियाँ सुनना चाह रही हैं ।
हित सखी भाव में भर गयी और बोलती है …मैं क्या सुनाऊँ ! इनके रूप के बारे में तो करोड़ों कल्पों तक जीवित कोई रहे और करोड़ों जिह्वा से इनके रूप सौन्दर्य का वर्णन करे तब भी कोई कर न पावेगा । सच कह रही हूँ । हित सखी बोली । देखो तो इनका रूप ! देखो तो इनका अद्भुत मुख कमल ! क्या शोभा है सखी !
हित सखी रूप को निहारती रही ….श्रीराधा रानी का वह रूप सागर, उसमें ये डूबती उबरती रही …हित सखी ही क्यों उस कुँज की समस्त सखियाँ प्रिया जी के रूप सिंधु में डूब गयी थीं ।
एक बार देव लोक में चर्चा चली , भूलोक में चर्चा चली , और रसातल में चर्चा चली ….बड़े बड़े वहाँ के कविकुल बैठे हुए थे …..उन सबके सामने ये प्रश्न उठा कि सबसे सुन्दर नारि कौन है ? किसी ने कहा …उमा भवानी । उनके समान कोई नही है सुन्दर नारि । सबने सोचा , अपनी अपनी बुद्धि लगाई ….तो किसी ने रमा भगवती का नाम लिया । किसी ने शारदा भगवती को भी कहा ।
पर सखियों ! नारद जी ने देव लोक की सभा में पूछ लिया था –
आप लोग क्या कहते हो श्रीराधारानी के विषय में ?
तब सब लोग मौन हो गये थे ….मौन क्या हो गये ….डर गये । तब नारद जी ने पूछा …भयभीत क्यों हो …उत्तर दो । तो कवियों ने उत्तर दिया था ..उनके अंगों में इतना सौन्दर्य भरा हुआ है ..कि उपमा किसकी दें ? और जो उपमा देते हैं …वो उपमा ठीक बैठता भी नही है ।
और नारद जी ! हम भी जब उनके रूप का ध्यान करते हैं …
तो सबसे पहले तो हमारी बुद्धि ही काम नही देती ।
हित सखी आनंदित होकर बोली ….कोई उपमा नही है….क्यों की इनके समान कोई सुन्दर ही नही है । यही सुन्दरता की परिसीमा हैं । इनकी माधुरी सहज है । ये सहज रूप-सौन्दर्य की स्वामिनी हैं हमारी श्रीराधारानी । इसलिए हे सखियों ! इनके रूप का वर्णन नही हो सकता ….हाँ , ये सर्वोत्कृष्ट हैं ….ये कह सकते हैं…..हित सखी बोली ।
कैसे ? सब सखियाँ बस अपनी लाड़ली के विषय में ही सुनना चाहती हैं ।
सखी ! ऐसे कि नित्य किशोर , अखिल सृष्टि में एक मात्र आकर्षण रखने वाले “मोहन” हैं….जो सबको मोह में डाले हुए हैं …वो मोहन …जो शिव ब्रह्मा इन्द्र सब को मोहित करने वाले …वो मोहन इन श्रीराधा रानी के एक भृकुटी बंक होने से कैसे विवश हो जाते हैं ….अरी सखियों ! हमारी स्वामिनी के भ्रू विलास मात्र से ये जगत मोहन कैसे इनके आगे पीछे डोलते रहते हैं …इनको बाँध देती हैं हमारी श्रीराधा रानी । समझीं ! ऐसी महिमावंत हैं हमारी श्रीकिशोरी जी ।
हित सखी के मुख से ये सुनकर समस्त सखियों को बड़ा ही सुख मिला …और सब प्रिया जी के रूप सुधा का ही अपने नयनों से अब पान करने लगीं थीं ।
पागलबाबा आनंदित हैं , उन्हें वो रूप माधुरी का दर्शन मिल गया है ,
ये उनके हाव भाव से समझ में आया ।
अंतिम में गौरांगी ने फिर इसी पद का गायन किया ।
“देखौ माई सुन्दरता की सीवाँ ………
इसके बाद वर्षा अच्छी बरसने लगी थी । राधा बाग पूरा भींग उठा था ।
आगे की चर्चा अब कल –


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