!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( प्रीति की अनीति ! – “देखौ अबला के बल रासि” )
गतांक से आगे –
ये अनीति है , महाअनीति है । कैसे बेचारे ब्रह्म को नचाया जा रहा है । और वो नाच रहा है ।
चलो किसी सामान्य को नचाया जाता तो कोई बात थी ….पर ये श्याम सुन्दर तो “योगेन्द्र दुर्गमगति” हैं …बड़े बड़े आदि अनादि योगी भी इनको भज रहे हैं पर इन तक उनकी भी कोई गति नही है ….और वो ? हाँ वो श्याम सुन्दर श्रीराधारानी के पाँव में पड़कर हा हा खाते हैं । ये कोई बात हुयी ? और कोई काम वासना से पीड़ित तुच्छ जीव हो वो किसी के पीछे पड़े …वो जो कहे मानें …वो जैसा नचाए नाचे तो समझ में भी आता है …पर जो योगियों का सम्राट है …यानि योगी उसे कहते हैं जिसने अपनी वासनाओं पर पूर्ण विजय पाया है …ये उनका भी सम्राट है । इसको इतना प्रीति परवश कर दिया …कि ये अश्रुपूरित नेत्रों से “राधा राधा राधा” पुकारता रहता है । अकेले निकुँज में बैठकर अपने नयनों को बन्दकर हृदय में अपनी श्रीराधा का ध्यान करता है ।
***हम श्रीवृन्दावन वाले श्रीकृष्ण को थोड़े ही मानते हैं ….हम तो अपनी श्रीराधा को मानते हैं …हमारी श्रीराधा के वे प्रीतम हैं इसलिये हम उनका आदर कर लेते हैं …बस । बाकी तो …
“मेरे प्राणनाथ श्रीश्यामा , सपथ करौं तृण छिये”
मेरी श्यामा जू ही हमारी प्राणनाथ हैं …हमारी इष्ट , हमारी स्वामिनी ….सब कुछ ।
राधा बाग में आज ऐसे ही सहज चर्चा में बाबा ने बृज रस की एक लीला भी सुना दी ।
उद्धव जी ने श्रीराधा रानी से बहुत विनती की ….और कहा …आप लोग मथुरा चलिये …मैं आप लोगों को आपके नाथ से मिला दूँगा । श्रीराधा रानी मना करती रहीं ….पर उद्धव जी नही मानें …वो भी जिद्द पकड़ कर बैठ गये …तो श्रीराधारानी ने कहा …मैं तो नही जाऊँगी …पर तुम ज़्यादा ही कह रहे हो उद्धव ! तो मैं गोपियों को भेज देती हूँ ….इनको दर्शन करा लाओ ।
उद्धव उन्हीं गोपियों को लेकर मथुरा गये ….ललिता विशाखा आदि सब थीं …मथुरा दरबार में उद्धव ने लाकर इनको बिठाया ….ये बैठ गयीं और मथुरा का चारों ओर वैभव देखने लगीं …तभी मथुराधीश वहाँ आये …सब लोग उठकर खड़े हो गये ….किन्तु उन गोपियों ने तुरन्त मथुराधीश को देखते ही लम्बा सा घूँघट काढ़ा । और वहाँ से तत्क्षण निकल गयीं । उद्धव पीछे दौड़े और बोले भी कि …अपने श्याम सुन्दर से तो मिलती जाओ …तो गोपियाँ तुरन्त बोलीं …ये हमारे श्याम सुन्दर कहाँ हैं ? ये तो तुम्हारे मथुराधीश हैं । हमारे श्याम सुन्दर तो हमारी श्रीजी के बिना एक पल भी नही रहते …ये अकेले रहने वाले तुम्हारे हैं ….और उद्धव ! एक बात और सुन लो …जो हमारी किशोरी जू के बिना रहे ….वो हमारा नही हो सकता । हमारी सर्वस्व श्रीराधा हैं, उनको छोड़कर जाने वाले हमारे श्याम सुन्दर नही हो सकते । लौट आयीं गोपियाँ श्रीवृन्दावन ।
“मेरे प्राणनाथ श्रीश्यामा”
बस श्रीराधा ही हमारी हैं …कृष्ण भी हमारे इसलिये हैं क्यों की वो श्रीराधा के प्रीतम हैं ।
पर प्रीति की ये रीति अनीति से भरी है … कौन सी ?
बाबा कहते हैं – यही कि – श्रीराधा उस ब्रह्म को अपने लट पाश दिखाकर वश में कर लेती हैं ….फिर वो नाचता है ….अजी ! यही बात प्रेम की हमें अच्छी नही लगती ।
प्रीति में ऐसी कौन सी शक्ति है जी ?
देखौ माई अबला कै बल रासि ।
अति गज मत्त निरंकुश मोहन , निरखि बँधे लट पाश ।।
अबही पंगु भई मन की गति , बिनु उद्दिम अनियास ।
तब की कहा कहौं जब प्रिय प्रति, चाहत भृकुटी विलास ।।
कच संजमन ब्याज भुज दरसत , मुसिकनि वदन विकास ।
हा हरिवंश अनीति रीति हित , कत डारत तन त्रास । 53 ।
“देखौ माई अबला कै बल रासि…….
वीणा झंकृत हो उठा ..और गौरांगी के मधुर स्वर में श्रीहित चौरासी जी का ये तिरेपनवाँ पद का गायन हुआ । बाबा आज अति आनंदित थे । कुछ देर मौन रहे बाबा , फिर उन्होंने पद का ध्यान बताना शुरू किया …बताया ही नही …ध्यान लगवा ही दिया । हम सब निकुँज में ही पहुँच गए थे ।
!! ध्यान !!
श्रीधाम वृन्दावन में आज रस की वर्षा हो रही है …दिव्य सिंहासन में युगलवर विराजे हैं …अभी अभी राज भोग सखियों ने कराया है …..अब ललिता सखी ने आकर एक पान दोनों को दिया ….प्रिया जी ने पूरा ही पान अपने मुखकमल में रख लिया और हँसीं । हंसने के कारण उनकी लटें उनके आनन पर आ गिरीं थीं ….जिसके कारण प्रिया जी की सुन्दरता और बढ़ गयी । अब तो श्याम सुन्दर मुग्ध हो गये ……और उनके रूप पाश में बंध गये । अब भी एक लट सहज भाव से लटक ही रही है प्रिया जी के मुख चन्द्र पर । उसी लट को ये देखे जा रहे हैं । मुख पान से भरा हुआ है ….और हंसी अभी भी आ रही है प्रिया जी को । श्याम सुन्दर तन्मय होकर उस दिव्य रूप सुधा का पान कर रहे हैं ….इनकी तो मानों त्राटक ही लग गयी ।
तभी हित सखी …अपनी सखियों से कहती है –
अरी सखियों ! देखो , देखो …विचार करो क्या ये अबला हैं ? नही ये अबला नही हैं इनमें जो शक्ति है वो शक्ति तो किसी में नही है …देखो तो ! मैं तो कह रही हूँ ये तो बल की राशि हैं ।
कैसे कह रही हो हमारी प्रिया जी को कि ये बल की राशि हैं ? एक सखी ने कहा ।
तो हित सखी बोली – ये अपने मन मोहन हैं ना , ये अत्यन्त निरंकुश हैं ….इन पर किसी का अंकुश काम नही देता ! ये वो गज हैं , जो इतने उन्मत्त हैं कि कोई इन्हें अपने वश में नही कर सकता । इन्द्र की कोई मजाल है जो इनको कुछ कह दे , ब्रह्मा इनके सामने कुछ बोल भी सकते हैं क्या ? महाकाल तो इनके आगे गोपी बनकर नाच उठते हैं ….सब इनके वश में हैं पर ये किसी के वश में नही हैं ….निरंकुश हैं । किन्तु ! हित सखी कहती है – ये हमारी प्रिया जी के लट पाश से बँधे हैं …..आहा ! ये इस बंधन को छुड़ाने में असमर्थ हैं ।
तभी मुस्कुराती हुई हित सखी कहती है …..देखो ! अपने लटों से खेलते हुए जब प्रिया जी टेढ़ी दृष्टि करके मुस्कुराती हैं ….तब तो लाल जी के मन की गति पंगु हो जाती है । अभी हो तो गयी है ….हित सखी कहती है । अरे अरे देखो तो ! अब तो और अनीति हो रही है श्याम सुन्दर के प्रति ….क्या अनीति ? सखियाँ पूछती हैं ।
अब प्रिया जी अपने बिखरे केशों को बांधने लगी हैं …..उस बांधने के कारण दोनों हाथों को ऊपर उठाया है ….बस अब तो बेचारे श्याम सुन्दर मूर्छित ही हो गये हैं …..इस के बाद ये मुस्कुराती भी हैं …..श्याम सुन्दर को देखकर मुस्कुराना ! हित सखी कहती है …यही तो दुःख की बात है ..वैसे ही वो बेचारे मूर्च्छित हो गये हैं ….उस पर ये मुस्कुरा और रही हैं …..सखी ! इस प्रकाश प्रयासतः रसिकवर के तन, मन , प्राण को दुखी करना ये तो अच्छी बात नही है ना । हित सखी बोली – तुम अगर कहो कि ये तो प्रीति की रीति है तो मैं कहूँगी ये अनीति है । ये कहते हुए हित सखी हंसती है …ये भी प्रीति के सिंधु में अवगाहन कर रही है ।
पागलबाबा कहते हैं – ये प्रेम है , यहाँ अनीति ही नीति है और यहाँ नीति ही अनीति है । यहाँ सत्य ही झूठ है और झूठ ही सत्य है । यहाँ दिन रात है और रात दिन है । ये प्रेम है इस की धार उलटी ही बहती है । प्रेम ने किसे अपने बंधन में नही बांधा , यहाँ बंधन ही तो मुक्ति है और मुक्ति ही बंधन । बाबा आनंदित हो उठे थे ।
गौरांगी ने फिर इसी पद का गायन किया ।
“देखौ माई अबला कै बल रासि……….
आगे की चर्चा अब कल –


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