श्रीकृष्णकर्णामृत – 58 : नीरु आशरा

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श्रीकृष्णकर्णामृत - 5

“करुणानिधान किशोर”


विश्वोपप्लव – शमनैक – बद्ध-दीक्षं,
विश्वास-स्तवकित-चेतसां जनानाम् ।
पश्याम: प्रति नव-कान्ति-कन्दलार्द ,
पश्यामः पथि पथि शैशवं मुरारेः ।।५६।।

हे साधकों ! “श्रीकृष्णकर्णामृत” में भाव तरंगें जो नव नवायमान होकर प्रकट हो रही हैं …उसे समझना भावुक रसिकों के लिए तो सुगम है किन्तु जो सांसारिक सम्बन्ध को ही महत्व देते हैं उनके लिए ये अत्यन्त दुरूह है । कल के श्लोक में जहाँ वर्णन किया गया कि “उस नव किशोर की ‘कैशोर माधुरी’ तो देवताओं के देवता के पास भी नही है”….ये कहकर हृदय में उन नव किशोर का दर्शन करके बिल्वमंगल भाव जगत में चले जाते हैं ।

आज ये उठे हैं …उस भाव जगत से बाहर आए हैं ….तो चकित हो जाते हैं …..वो अत्यन्त प्रसन्न होकर चारों ओर देखने लग जाते हैं …इतने प्रसन्न क्यों हो जाते हैं बिल्वमंगल ? क्यों कि उन्हें अब बाह्य जगत में श्याम सुन्दर दिखाई दे रहे हैं । वो खड़े हो जाते हैं ….और चारों ओर दौड़ने लगते हैं ……वो दौड़ते हुए कहते हैं ….वयं पश्याम : , मैं देख रहा हूँ उसे । वो मुझे दिखाई दे रहा है । फिर पूछने वाले ने पूछा ….बिल्वमंगल ! हमें भी तो बताओ वो कहाँ कहाँ दिखाई दे रहे हैं । बिल्वमंगल कहते हैं – पथि पथि पश्याम: , वो तो मुझे चारों ओर दिखाई दे रहा है ….इन मार्गों में दिखाई दे रहा है ….हर मार्ग में वही है ….सारे मार्गों में वही खड़ा है …..बिल्वमंगल ये कहते हुए मुस्कुराते हैं । अच्छा ! ये तो बताओ वो कैसा लग रहा है ? बिल्वमंगल कहते हैं – शैशवं मुरारे : , वो छोटा है …इसलिए उसकी सुन्दरता खिल रही है ….वो छोटा है इसलिए चंचल भी है …सुन्दरता में चंचलता और हो तो सुन्दरता बहुत बढ़ जाती है ….लेकिन इसकी सुंदरता तो पल पल और और बढ़ती ही जा रही है । प्रतिक्षण उसकी अंग कान्ति ! बिल्वमंगल कहते हैं …..सांसारिक सुन्दरता तो ज़्यादा देखने पर कम होती दिखाई देती है ….कम हो ही जाती है …किन्तु इस किशोर की सुन्दरता तो बढ़ रही है …क्यों कि ये सुन्दरता अलौकिक जो है ….बिल्वमंगल ये कहते हुए आनन्द से उछल पड़ते हैं ।

ये तो हुई नव किशोर की सुन्दरता ! किन्तु क्या इसमें मात्र सुन्दरता ही है या कोई और गुण भी ?

बिल्वमंगल इस प्रश्न पर आह भरते हैं …..फिर कहते हैं ….इसके गुण सुनोगे ना तो इसे कभी छोड़ नही पाओगे ! फिर हंसते हैं …तुम क्या नही छोड़ोगे …वही तुम्हें नही छोड़ेगा । ओह ! इसने दीक्षा ली है …और दीक्षा में ये शिक्षा इसने पाई है कि “जो हम पर निर्भर हैं , उसे कभी नही छोड़ना चाहिए” , इसलिए जो इस किशोर पर अपना सब कुछ वार देता है …ये भी उसके लिए सब कुछ करने के लिए तैयार रहता है । जो प्रेमी इस पर विश्वास कर लेता है ….तो ये उसका सब प्रकार से रक्षा करता है …..कुछ करने की उसे आवश्यकता ही नही पड़ती ।

बिल्वमंगल प्रसन्न हैं आज ….उन्हें चारों ओर अपने आराध्य ही दिखाई दे रहे हैं …ये आराध्य के सौन्दर्य में मुग्ध होते हैं ….तो फिर आराध्य के करुणामय स्वभाव की ओर जब इनका ध्यान जाता है ….तब ये और मन्त्र मुग्ध से दिखाई देते हैं । कुछ करने की आवश्यकता भी है क्या तुम्हें ?
बिल्वमंगल उस रस राज्य से ये घोषणा करते हैं ….”बस तुम्हें पूर्ण विश्वास के साथ इस नव किशोर में समर्पित होना है …बस इतना ही …इसके बाद तुम्हारे जीवन में आने वाली जितनी विघ्न बाधायें आदि हैं वो सब ये हर लेगा …ये तुम्हारे निकट कोई दुःख आने नही देगा …..इसने यह सीखा ही है …इसके गुरुजनों ने इसे यही दीक्षा दी है कि कोई भी तुम्हारे शरण में आए उसके दुखों से दूर करो । सब कुछ उसका सम्भाल करो …हे प्रेमियों ! मैं शपथ पूर्वक कह रहा हूँ ..वो तुम्हारे हर सुख दुःख में साथ देगा । पूर्ण विश्वास के साथ उसका आश्रय लो ।

बिल्वमंगल ये कहते हैं ….और चारों ओर फिर देखने लग जाते हैं ।

क्रमशः…
Hari sharan

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