श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! नख पे गिरवर लीयो धार, नाम “गिरधारी” पायो है !!
भाग 1
मेरे गिरधारी लाल !
बृजरानी नें नख पे गिरिवर उठाये हुए जब अपनें कन्हैया को देखा तो आश्चर्य से बोल उठीं ।
सब इस दिव्य झाँकी का दर्शन करके आनन्दित हो उठे थे ।
बृजवासी भूल रहे थे प्रलयकारी वर्षा के दुःख को……और भूलें क्यों नहीं सामनें खड़ा था गिरधारी ……….गिरवर को अपनी कनिष्ठिका में रखकर ……….नही नही ….कनिष्ठिका के नख पर ………….और ऊपर से वेणु नाद …………वेणु नाद इसलिये ताकि ये सब लोग भूख प्यास भूल जाएँ ……क्यों की ये वर्षा एक दो दिन की नही ….पूरे सात दिन सात रात तक बरसनें वाली थी ।
चरणों में नूपुर हैं , कमर में पीली काछनी है , गहरी नाभि है जिसके दर्शन हो रहे हैं ……..गले में झूलती वनमाला …..विशाल कन्धे पर चमचमाती पीताम्बरी है …….अधर पतले और अरुण हैं…….उठी हुयी नासिका है …..विशाल नेत्र हैं……..पर नेत्र चंचल हैं ।
सब चकित रह गए इस झाँकी के दर्शन करके …………..सबकुछ भूल गए ……….वस्त्र पूरे भींग गए हैं ……..पर किसी को भान भी नही है …….सबके नेत्रों के सामनें वह गिरधारी खड़ा है ।
दौड़ी बृजरानी अपनें गिरधारी लाल के पास…….तू हाथ हटा ! कितनी देर से हाथों को ऊपर किये खड़ा है……तेरी कोमल कलाइयाँ …….मुरक जायेगीं मेरे लाल !
बृजरानी का अपना वात्सल्य है ।
ए श्रीदामा ! मधुमंगल ! तुम अपनी अपनी लकुट क्यों नही लगाते …….मेरे लाला को ही सब दुःख देते हैं……मैया तो सबको डाँटनें लगी ।
हम भी कह रहे हैं इससे …….हाथ नीचे कर ले …..सुस्ता ले ……….तब तक हम अपनी लाठी लगाये रखेंगे……पर ये मानता ही नही ।
सभी सखाओं नें मैया बृजरानी को कहा ।
नही, मैया ! मैं ठीक हूँ…….तू और भीतर आजा……बाबा को भी बुला ले …………उसी समय बाबा भी अपनें परिकरों के साथ वहीं आगये थे …………बाबा ! सारे गौओं बछड़ों और वृषभों को यही ले आओ ……..यहाँ सब सुरक्षित हैं ।
आहा ! सर्वेश्वर श्रीकृष्ण, बृजवासियों की रक्षा करनें के लिये जो “गिरधारी” बन गया हो……वो बृजवासी भला यहाँ सुरक्षित नही होंगे !
पर देखो ना ! अब आप ही समझाओ………कितनी देर से गोवर्धन पर्वत को उठाया है इसनें…..अपनें हाथ नीचे करनें को बोलो ना !
ये सब हैं तो सही …….अपनी लकुटों में पर्वत को कुछ देर के लिये सम्भाल लेंगे । मैया बृजरानी नें अपनें पति बृजराज बाबा से कहा ।
हाँ हाँ, हाथ को नीचे कर ले……मनसुख भी जिद्द करनें लगा ….
तेरे हाथ को हम दबा देंगे …..तू बैठ जा ……..तेरे पाँव को हम दबा देते हैं ……तू जल पी ले …….मनसुख बोले जा रहा है ।
धीरे से कन्हैया नें मनसुख के कान में कहा …….”मैनें अगर अपनें हाथ नीचे कर लिये तो गोर्वधन पर्वत गिर जाएंगे”………
ओह ! सुन लो ये क्या कह रहा है ! मनसुख तो सब सखाओं को सुनानें लगा…….क्या कह रहा है ? श्रीदामादि सखा पूछनें लगे ।
ये कह रहा है इसनें अगर अपनी ऊँगली नीचे कर दी तो पर्वत गिर जायेगे……..ये सुनकर सब सखा हँसनें लगे…….
तो इसनें क्या सोच रखा है……इसकी ऊँगली पे टिके हैं इतनें बड़े गोवर्धन पर्वत , हमारी लाठी पे टिके हैं ।
और क्या ! मेरी ऊँगली पे ही तो हैं गोवर्धन !
कन्हैया नें भी कह दिया ।
अरे भाई ! रहनें दे……..थोडा सुस्ताले…..अपनें हाथ को नीचे कर ले …….हम दबा देते हैं……..बैठ जा !
मान नही रहे ये सखा ………….तो ठीक है ! ऐसा विचार कर कन्हैया नें थोड़ा हाथ नीचे जैसे ही किया …………
कट्ट कट्ट कट्ट , करके लाठियाँ टूटनें लगीं…….गोवर्धन पर्वत आनें लगे नीचे ।
कृष्ण बचा ! कन्हैया बचा !
क्रमशः ….


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