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August 1, 2025 9:58 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! गोपिका गीतम् – “रासपञ्चाध्यायी” !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! गोपिका गीतम् – “रासपञ्चाध्यायी” !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! गोपिका गीतम् – “रासपञ्चाध्यायी” !!

भाग 1

प्रेम का मार्ग बड़ा ही टेडा मेडा है तात !

कभी स्तुति शुरू हो जाती है अपनें प्रियतम की ….तो कभी गालियां ।

कभी महान बना देता है प्रेम अपनें प्रेमास्पद को…….तो कभी अति सामान्य ।

हृदय में उछलती वह प्रीत ……….अन्दाजा उसका लगाना मुश्किल है कि ………वो क्या कहेगी ! क्या कहलवाएगी !

गोपियों की यहाँ जो विरह स्थिति है …………वो जब गीत बनकर प्रकट होते हैं …….तब उसमें जो प्रेम के सूक्ष्म तत्व का निरूपण होता है …..वो हम जैसे शुष्क हृदय को अति सरस बना जाते हैं तात !

कालिन्दी के तट पर हजारों की संख्या में गोपियाँ बैठी हुयी हैं …….अर्धरात्रि है ……चन्द्रमा पूर्ण खिला है ………यही तो, उस खिले चन्द्रमा की चाँदनी इन गोपियों के विरह को और बढ़ा देती हैं ।

वो सब पुकार उठती हैं ……….वो कुछ भी बोलती हैं ……..ये अधिकार है प्रेम का ……..कि प्रेमी अपनें प्रियतम को कुछ भी कह सकता है ।

उद्धव कह रहे हैं इस प्रसंग को विदुर जी से ।

इस प्रेम गीत की एक विशेषता है तात ! कि ये गीत हमारे श्रीकृष्ण को बहुत प्रिय है ………….मुझे स्मरण हो रहा है ………मुझे .अंतिम उपदेश करते हुये श्रीकृष्ण जब गोमती के किनारे मौन हो गए थे तब मैने उनसे पूछा था ……..आपको क्या प्रिय है ? कोई विशेष स्तोत्र ? या कोई सहस्त्रनाम ? या कोई वैदिक मन्त्र या कोई तन्त्र ।

उस समय सजल नेत्र हो गए थे श्रीकृष्ण के …………..

“ऊधो ! तुम गाओ गोपी गीत”

इतना भी बड़ी मुश्किल से बोल पाये थे वे ….अश्रु एकाएक गिरनें लगे थे उन कमल नयन के ………ओह !

गोपियों नें 19 श्लोकों में इस गीत को गाया है …………उद्धव बोले –

प्रत्येक श्लोक में अश्रु धार हैं गोपियों के…….प्रत्येक श्लोक भींगें हुये हैं आँसुओं से……..वो सब बोल भी नही पा रही थीं ठीक ठीक ……क्यों की रुंधे हुये थे उनके कण्ठ…….भाव समुद्र में पूर्ण रूप से डूब चुकी थीं ये सब……उद्धव इतना ही बोले और कुछ देर के लिये मौन हो गए थे ।


हा प्यारे ! हमें छोड़कर कहाँ चले गए ?

पुकार रही हैं कालिन्दी के तट पर गोपियाँ ।

हम सब तुम्हारी हैं इस बात को क्यों भूल जाते हो प्यारे !

अच्छा अच्छा ! कोई बात नही गलती हो गयी नाथ ! अब तो क्षमा करो …..लो कान भी पकड़ रही हूँ……..अब खुश ? एक गोपी वहीं कालिन्दी के किनारे कान पकड़ कर उठक बैठक करनें लगी थी ।

*क्रमशः …

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