श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेम की बोली अटपटी – “गोपिकागीतम्” !!
उस गोपी के मुख से ये सुनते ही श्रीराधारानी हँसी ।
……….कुछ भी ! कुछ भी कह रही हो ! श्रीराधा नें कहा ।
नही , हम सच कह रही हैं ………..तभी तो कमल भी इनसे कपट करता है …………और जब इनको अपनें समीप आते हुए देखता है तो गहरे जल में चला जाता है ……अपनी बची कुची शोभा को बचानें के लिये ।
पर हम कपटी नही हैं……..हमारे साथ तुम कपट करते हो यार !
हम तो जैसी हैं वैसी ही रहती हैं तुम्हारे सामनें ………..हमें पता है कि तुम हमसे भी सबकुछ छीन लोगे ……….हमारा सब कुछ चुरा लोगे ।
गोपी के मुख से ये सुनकर श्रीराधारानी जोर से हँसती हैं ………..
चुरा लिया सखी ! सबकुछ चुरा लिया …….हमारा धर्म, हमारी मर्यादा , .हमारा शील, हमारी लज्जा, अरे ! हमारी सुख शान्ति सबकुछ चुरा लिया उसनें……..पर ना ! हम कमल की तरह नही हैं ………..हम छुपती नही हैं…….हम भी अहीर की छोरियाँ हैं ……….डरती नही हैं ।
हम जानती हैं प्यारे ! हमनें ही तुमसे निवेदन किया था कि हमारे साथ विहार करो …….हमारे साथ रास करो ….महारास करो …..हमनें ब्रत किये उपवास किये ……..तब तुमनें हमारे साथ महारास करना स्वीकार किया था …………फिर हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों ?
हम तो तुम्हारी बिना मोल की दासी हैं ……….क्यों हमें मार रहे हो ।
पर प्यारे कहाँ मार रहे हैं ? कहाँ वध किया है उन्होंने हमारा ?
श्रीराधारानी भोलेपन पूछती हैं ।
भावसमुद्र में डूबीं हुयीं वो गोपियाँ कहती हैं ……………
श्रीजी ! आपको क्या लगता है …..शस्त्र से मारना ही मारना होता है !
वो तो अच्छा वध है ……..कि कमसे कम एक ही बार में वो मर तो जाता है ……तलवार से काट दो ….तो तड़फ़ भी नही …..एक ही बार में खतम ।
पर यहाँ ? यहाँ तो मर भी रही हैं……और .तड़फ़ भी रही हैं…….
तड़फ़ ऐसी है कि लगता है मर ही जाएँ …………मरना बहुत सुखद होगा इस तड़फ़ से तो ………पर तुम हो ऐसे – कि मरनें में भी नही देते ।
किस शस्त्र से मारा है तुमको श्यामसुन्दर नें ? श्रीजी भावोन्माद में भरकर पूछती हैं ।
नयनों से ……इसके कटीले नयन लाखों कटार से भी तेज हैं ……..
शस्त्र क्या वध करेंगे किसी का ………इसके नयन कटारी से जो मरता है …….वो तो पानी भी नही माँगता ………….
ओह ! ओह ! तुम्हे क्या लगता है …….तुम नयनों से हमें चुपके चुपके मार दोगे और समाज को पता भी न चलेगा …..तो गलत सोच रहे हो तुम ………हे सुरतनाथ ! हमनें तुमसे प्रार्थना की थी कि हमसे रास करो ……और तुमनें हाँ कहा था …….इस बात को सब जानते हैं ……….
हम तो भोली भाली हैं ………हमें क्या पता था कि तुमनें हमारा वध करनें के लिये ये सब किया ……………..पर तुम बच नही सकते ……सबको पता है ……..सबको मालुम है …………..
पर ये अच्छी बात तो नही है ना ? हम अबलाओं का वध करना अच्छी बात है क्या ?
नेह किं वधः ?
श्रीजी इस गोपी का ये भावोन्माद देखकर फिर “हा प्रिय”……..कहकर रुदन करनें लगीं थीं ।
*शेष चरित्र कल –


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