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November 21, 2024 6:03 pm

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सत्य सनातन धर्म बडा ही उमदा एवं गहरा है।👏🇮🇳👏 : Kusuma Giridhar

सत्य सनातन धर्म बडा ही उमदा एवं गहरा है।👏🇮🇳👏 : Kusuma Giridhar


सत्य सनातन धर्म बडा ही उमदा एवं गहरा है।👏🇮🇳👏
बड़ा दिन !
अर्थात 25 दिसंबर
और भीष्म पितामह।

महाभारत युद्ध के पश्चात आज के दिन!
अर्थात 25 दिसंबर को सूर्य के उत्तरायण में आने के पश्चात भीष्म पितामह अर्थात उस समय के सबसे बड़े व्यक्ति ने प्राण त्याग किया था , इसीलिए विश्व आज भी इस महत्वपूर्ण घटना को ‘बड़ा दिन ‘ अर्थात ‘ महान दिवस : कहकर सम्मान देता है ।

और हम इसाई समाज के बहकावे में आकर इसे यूं ही किसी ईसामसीह के साथ जोड़कर देखने की मूर्खता करते चले आ रहे हैं।

जानिये सच्चाई

महाभारत का युद्घ 18 दिन चला था!
और 18 अक्षौहिणी ही सेना इसमें काम आयी थी।

एक अक्षौहिणी सेना में एक लाख नौ हजार तीन सौ पचास सैनिक 65610 घुड़सवार 21870 रथ और 11870 हाथी होते थे। इस प्रकार 47,23,920 पैदल सैनिकों को इस युद्घ में अपना प्राणोत्सर्ग करना पड़ा था।

इतने विनाशकारी युद्घ की आधारशिला राजधर्म से विमुख हुई राजनीति के छल प्रपंचों और छद्म नीतियों के हाथों रखी गयी थी, उस पर प्रकाश डालना यहां उचित नहीं है।

श्रीकृष्ण जी महाराज ने इस विनाशकारी युद्घ को टालने के लिए विराट नगरी से पाण्डवों के दूत के रूप में चलकर हस्तिनापुर की सभा में आकर पांडवों के लिए दुर्योधन से पांच गांव मांगे थे। जिनमें इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) वृकप्रस्थ (बागपत) जयंत (जानसठ) वारणाव्रत (बरनावा) और पांचवां गांव दुर्योधन की इच्छा से मांगा गया था।

लेकिन जब दुर्योधन ने कह दिया कि,
बिना युद्घ के तो सुई की नोंक के बराबर भी भूमि नही दी जाएगी तो केशव युद्घ को अवश्यंभावी मानकर वापिस चल दिये थे। उस समय हस्तिनापुर से बाहर बहुत दूर तक छोडऩे के लिए कर्ण कृष्ण जी के साथ आया था। उस एकांत में कृष्ण ने कर्ण को बता दिया था कि वह कुंती का ज्येष्ठ पुत्र है, इसलिए उसे पाण्डवों का साथ युद्घ में देना चाहिए।

लेकिन नीतिमर्मज्ञ कर्ण ने तब नीतिकार कृष्ण को
जो कुछ कहा था, वह बड़ा ही मार्मिक है।
और उस दानवीर के प्रति श्रद्घा भाव पैदा करने वाला है।
उसने कहा था-मधुसूदन मेरे और आपके बीच में जो ये गुप्त मंत्रणा हुई है, इसे आप मेरे और अपने बीच तक ही रखें क्योंकि-
यदि जानाति मां राजा धर्मात्मा संयतेन्द्रिय:।
कुन्त्या: प्रथमजं पुत्रं स राज्यं ग्रहीष्यति।। (उद्योगपर्व 24)
जितेन्द्रिय धर्मात्मा राजा युधिष्ठर यदि यह जान लेंगे कि मैं कुंती का बड़ा पुत्र हूं तो वे राज्य ग्रहण नही करेंगे। कर्ण ने आगे कहा था कि उस अवस्था में मैं उस समृद्घिशाली विशाल राज्य को पाकर भी दुर्योधन को ही सौंप दूंगा। मेरी भी यही कामना है कि इस भूमंडल के शासक युधिष्ठर ही बनें।

तब युद्घ के प्रारंभ के लिए,
श्रीकृष्ण जी ने यहीं पर घोषणा कर दी-
कर्ण इतो गत्वा द्रोणं शांतनवं कृपम।
ब्रूया सौम्योअयं वत्र्तते मास: सुप्रापयवसेन्धन:।। (उद्योग पर्व 31)
अच्छा कर्ण! तुम यहां से जाकर आचार्य द्रोण, शांतनुनंदन भीष्म तथा कृपाचार्य से कहना कि यह सौम्य (मार्गशीर्ष=अगहन) मास चल रहा है। इसमें पशुओं के लिए घास तथा जलाने के लिए लकड़ी आदि सुगमता से मिल सकती है।

इस श्लोक से आगे तीसरे श्लोक में कृष्ण जी ने कहा था कि आज से सातवें दिन के पश्चात अमावस्या होगी। उसके देवता इंद्र कहे गये हैं। उसी में युद्घ आरंभ किया जाये। आज के अंग्रेजी मासों के दृष्टिकोण से समझने के लिए 12 अक्टूबर को कृष्ण जी ने युद्घ की यह तिथि घोषित की थी।

आगे हम इसे स्पष्ट करेंगे। अब जब युद्घ आरंभ हुआ तो यह सर्वमान्य सत्य है कि भीष्म पितामह युद्घ के सेनापति दस दिन रहे थे। युद्घ 19 अक्टूबर से आरंभ हुआ और 28 अक्टूबर को भीष्म पितामह मृत्यु शैय्या पर चले गये। जब युद्घ समाप्त हुआ तो पांचों पांडवों और कृष्णजी ने भीष्म पितामह से उनकी मृत्यु शैय्या के पास जाकर उपदेश प्राप्त किया। युद्घ 19 अक्टूबर से आरंभ होकर 5 नवंबर तक (18 दिन) चला।

पांच नवंबर को ही भीष्म पितामह ने युधिष्ठर को आज्ञा दी थी कि अब तुम राजभवनों में जाकर अपना राजकाज संभालो और पचास दिन बाद जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगे तब मेरे पास आना। मैं उसी काल में प्राणांत करूंगा। 5 नवंबर से पचास दिन 25 दिसंबर को होते हैं। अब थोड़ा और महाभारत को पलटें। अनुशासन पर्व के 32वें अध्याय के पांचवें श्लोक को देखें:-

उषित्वा शर्वरी श्रीमान पंचाशन्न गरोत्त में।
समयं कौरवा ग्रयस्य संस्कार पुरूषर्षभ:।।

अर्थात पचास रात्रि बीतने तक उस उत्तम नगर में
निवास करके श्रीमान पुरूष श्रेष्ठ कुरूकुल शिरोमणि युधिष्ठर को भीष्म के बताये समय का ध्यान हो आया।

यह घटना 25 दिसंबर प्रात: की है।
क्योंकि 23 दिसंबर को दिन सबसे छोटा
और रात सबसे बड़ी होती है। 24 दिसंबर को दिन बढ़ता है
तो परंतु ज्ञात नही होता है।

सूर्य उत्तरायण में विधिवत 25 दिसंबर को ही
प्रवेश करता है। उत्तरायण और दक्षिणायन
की सूर्य की ये दोनों गतियां
भारतीय ज्योषि शास्त्र की अदभुत खोज हैं।

युधिष्ठर को अपने बंधु बान्धवों सहित सही समय पर
अपनी मृत्यु शैय्या के निकट पाकर
भीष्म पितामह को बड़ी प्रसन्नता हुई।
तब जो उन्होंने कहा वह भी ध्यान देने योग्य है-

अष्ट पंचाशतं राज्य: शयानस्याद्य मे गता:।
शरेषु निशिताग्रेषु यथावर्षशतं तथा।। (अनु 32/24)

अर्थात इन तीखे अग्रभागवाले बाणों की
शैय्या पर शयन करते हुए आज मुझे 58 दिन हो गये हैं,
परंतु ये दिन मेरे लिए सौ वर्षों के समान बीते हैं।

उन्होंने आगे कहा–

माघोअयं समनुप्राप्तो मास: सौम्यो युधिष्ठर।
त्रिभागेशेषं पक्षोअयं शुक्लो भवितुर्महति।।

अर्थात हे युधिष्ठर!
इस समय चंद्रमास के अनुसार माघ का महीना प्राप्त हुआ है। इसका यह शुक्ल पक्ष है। जिसका एक भाग बीत चुका है और तीन भाग शेष हैं। इसका अभिप्राय है कि उस दिन शुक्ल पक्षकी चतुर्थी थी। इन साक्षियों से स्पष्ट हो जाता है कि,
भीष्म पितामह का स्वर्गारोहण 25 दिसंबर को सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने पर हुआ।

25 दिसंबर को भीष्म यदि ये कह रहे थे कि,
आज मुझे इस मृत्यु शैय्या पर पड़े 58 दिन हो गये हैं
तो इसका अभिप्राय है कि 28 अक्टूबर को
वह मृत्यु शैय्या पर आये थे।
और युद्घ 19 अक्टूबर से प्रारंभ हो गया था।

अक्टूबर-नवंबर के महीने में ही
अक्सर मार्गशीर्ष माह का संयोग बनता है
और इस माह में ही वैसी हल्की ठंड और गरमी
का मौसम होता है
जैसा श्रीकृष्ण जी ने कर्ण को
युद्घ की तिथि बताते समय कहा था-

सर्वाधिवनस्फीत: फलवा माक्षिक:।
निष्यं को रसवत्तोयो नात्युष्ण शिविर: सुख:।।

सब प्रकार की औषधियों तथा फल फूलों से
वन की समृद्घि बढ़ी हुई है,
धान के खेतों में खूब फल लगे हुए हैं ,
मक्खियां बहुत कम हो गयीं हैं।
धरती पर कीचड़ का नाम भी नही है।
जल स्वच्छ तथा सुस्वादु है। इस सुखद मास में
(यदि युद्घ होता है तो) न तो बहुत गरमी है और
न अत्यधिक सर्दी ही है।

अत: इसी महीने में युद्घ होना उचित रहेगा।
हमारे पास मार्गशीर्ष की अमावस्या सहित 17 दिन, पौष माह के 30 दिन, माघ के कृष्ण पक्ष के 10 दिन + 4 दिन शुक्ल पक्ष कुल 68 दिन बनते हैं। 58 दिन भीष्म मृत्यु शैय्या पर रहे और दस दिन वे युद्घ के सेनापति रहे इस प्रकार युद्घ से 68 वें दिन वे स्वर्गारोहण कर रहे थे। इस सबका संयोग 19 अक्टूबर से 25 दिसंबर तक ही पूर्ण होता है।

भीष्म पितामह अपने काल के बड़े आदमी,
यानि सर्वप्रमुख महापुरूष थे।
उन जैसा योद्घा उस समय नहीं था।
कृष्ण भी उनका सम्मान करते थे।

वह दोनों पक्षों के सम्माननीय थे।
इसलिए उन जैसे महायोद्घा के जाने के पश्चात
उन्हें विशेष सम्मान दिया जाना अपेक्षित था।

महाराज युधिष्ठर भीष्म से असीम अनुराग रखते थे।
उनकी मृत्यु पर उन्हें असीम वेदना हुई थी और वह राजपाट तक को छोडऩे को उद्यत हो गये थे। अत: उनसे यह अपेक्षा नही की जा सकती कि उन्होंने भीष्म को मरणोपरांत कोई विशेष सम्मान न दिया हो, उन्होंने भीष्म को आज के गांधीजी की तरह राष्ट्रपिता जैसा सम्मान दिया।

सारे राष्ट्र ने उन्हें बड़ा माना और इसी रूप में पूजा।
इसीलिए कालांतर में धीरे धीरे 25 दिसंबर का दिन भी ‘ बड़ा दिन ‘ कहा जाने लगा।

यह घटना (विद्वानों की मान्यतानुसार)
अब से 5118 वर्ष पुरानी है। हमारा मानना है कि,
सत्यमत के प्रतिपादन एवं अनुसंधान के लिए शोधार्थी आगे आयें। हमारा लक्ष्य भारत के किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को चोट पहुंचाना नही है, अपितु सत्यमत के अनुसंधान के लिए प्रयास करना है। उसी भाव से यह लेख विद्वानों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। आपके सदाशयता पूर्ण सुझावों का आभारी हूंगा। हमें प्रयास करना है, केवल एक ही बात के लिए-

उगता भारत,
जगमगाता भारत बनाने के लिए!

जयपाल सिंह

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Author: admin

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