!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 65 !!
जब उग्रसेन की सभा में “वृन्दावन” की बात चली…
भाग 2
इसलिये हमें सावधान रहनें की आवश्यकता है ………इसके लिये हमारी क्या रणनीति होनी चाहिए इसपर हम विचार करें ।
इतना कहकर उद्धव बैठ गए ।
सब ठीक है ना ?
महाराज उग्रसेन नें धीरे से पूछा कृष्ण से ।
थोडा मुस्कुरा दिए बस कृष्ण ।
अब हम सब श्री कृष्ण चन्द्र की वाणी सुनना चाहेंगें ……….सभा से आवाज उठी ।
महाराज उग्रसेन और महामन्त्री उद्धव नें कृष्ण की ओर देखा ।
कृष्ण नें सिर हिला दिया “नही” में ।
क्या बात है ! क्या कृष्ण का स्वास्थ ठीक नही है ……….न बोल रहे हैं न मुस्कुरा रहे हैं ……..कितनें गम्भीर बने हैं ।
यहाँ उन्हें अच्छा तो लग रहा है ना ?
सभा में लोग बातें करनें लग गए थे ……………पर ये बातें कानों से होते हुए सभा में फैलनें लगी थी …………..
इनके लिये मथुरा में अच्छी से अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये ……..इन्हीं “कमलनयन” की कृपा से ही हम कंस के अत्याचार से मुक्त हुए हैं …….
बड़े बड़े लोग भी यही कह रहे थे ।
“कहीं वृन्दावन की याद तो नही आरही ?
एक वृद्ध यदुवंशी नें हँसते हुए ये प्रश्न कर दिया ।
सब हँसे ……पूरी सभा हँसी ।
नही ..ये विनोद की बात नही है ……..भई वो वृन्दावन में रहे हैं ……वो गांव है ………और ये नगर …..गाँव के लोग सहज सरल होते हैं …और हम नागरी लोग ? सब हँसे ये बात सुनकर ।
अब हम नागरी लोगों का अपमान न करो चाचा !
एक सभासद हँसते हुए बोला ।
नही, सही बात है ……..और सुना है वहाँ ये केवल माखन ही खाते थे ……खाते नही थे चुराते थे ……….वही वृद्ध स्नेह से बोले ।
कहीं याद तो नही आरही ?
राधा ! राधा की याद !
ये कोई फुसफुसाकर किसी के कान में बोल रहा था ।
कृष्ण मुड़े …..और जब पीछे देखा ……अक्रूर थे जो धीरे बोल रहे थे ।
राधा ! वृन्दावन ! और ये मथुरा ? कृष्ण के नेत्र सजल हो उठे ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –

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