श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 29
( फिर प्रतीक्षा…)
गतांक से आगे –
सन्ध्या होने को आयी है ..अभी भी ललिता सखी वृन्दावन की सीमा में ही बैठी है …उसके पाँव आगे बढ़ नही रहे ….वो काँप रही है …उसे यही डर है कि श्रीराधारानी को वो क्या कहेगी ।
“कल आऊँगा” यही कहा है श्याम सुन्दर । ललिता सखी को इस बात से थोड़ी हिम्मत आयी ।
क्यों झूठा ही समझूँ श्याम सुन्दर को ….वो रो रहे थे …ना, उनके अश्रु झूठे नही थे ….वो बिलख रहे थे ….उनका बिलखना झूठा नही हो सकता । ललिता सोच रही है …आयेंगे श्याम सुन्दर ।
किन्तु वो उठती नही है …..वो बैठी ही रहती है ।
अभी नही जाऊँगी …अभी सन्ध्या है ….सब लोग इकट्ठे होंगे ….लोग पूछेंगे । रात्रि में प्रवेश करूँगी । ऐसा सोचकर वो अपने आपको शान्त करती है ….फिर सन्ध्या की वेला में महादेव को मनाती है ….फिर देवि कात्यायनी को भी । बस मेरी स्वामिनी को हिम्मत देना …..और क्या बोले ललिता सखी । कुछ मोर आए हैं वो ललिता से पूछ रहे हैं …..किन्तु ललिता उनकी बातों का कोई उत्तर नही देती है । कुछ शुक पक्षी भी उड़ आये हैं …वो भी ललिता के आगे पीछे होकर पूछ रहे हैं …यही पूछ रहे हैं कि …श्याम सुन्दर नही आये ? ललिता अश्रु बहाती है बस ।
बोल ! क्या हुआ ? तेरे दाहिने स्वर का ? अरे बेकार की बातें हैं ये सब ।
श्रीदामा मनसुख को कह रहा है …..रात्रि होने वाली है …..अब सबके लौटने की तैयारी है अपने अपने घरों में । मनसुख कुछ नही कहता । उसे अपने स्वर विज्ञान पर आज से अविश्वास भी हो जाएगा ।
पर रात तक आसकते हैं ना ? बेचारा तोक सखा अभी भी आस लगाये है ।
मनसुख इतना आज तक नही टूटा था , जितना आज टूटा है । वो किसी से कुछ नही कह रहा ।
“मैया ! आज भी नाँय आयो तेरो लाला”
नित्य की तरह मनसुख ही ये बात नन्दालय में कहता हुआ अपनी कुटिया में जाता था ….पर आज उसे ये कहने की इच्छा ही नही हुई । वो सीधे अपनी कुटिया में चला गया था और अपनी पौर्णमासी माता से बोला था ….सब कुछ झूठा है …सब मिथ्या है ….ये कहता हुआ वो अपने पर्यंक में जाकर लेट गया था ।
वत्स ! क्या हुआ ? आज पता नही क्यों कुछ मंगल होने वाला है ….मेरा बायाँ अंग फड़क रहा है मनसुख ! मनसुख ने कहा …मैया ! ये सब बेकार की बातें हैं ….कुछ नही होता इन सबसे ….मनसुख को क्रोध आरहा था अपने ज्योतिष ज्ञान पर । बैठ गयी माता पौर्णमासी …वत्स ! ऐसा नही है ….मंगल होगा तो अस्तित्व हमें संकेत दे देता है …पौर्णमासी बोलीं ….देख ! आज गौ प्रसन्न हैं….आज बछड़े अपनी गौ का दूध भी पी रहे हैं ….एकाएक पौर्णमासी आनंदित हो उठी …..देख ! वृक्ष लता पत्र ….सब हरे हो गए हैं । मनसुख उठकर खड़ा हो गया ….वो आनंदित हो देख रहा है । हाँ , हाँ माता ! कुछ मंगल होने वाला है । पुत्र ! वृन्दावन का मंगल तो कृष्ण ही है …..कृष्ण से ही है । तो आप क्या कहना चाहती हो माता ! हाँ , कन्हैया आ रहा है , पौर्णमासी मुस्कुराते हुए कहती हैं ।
सुनिये ना ! आज मेरा बायाँ अंग फड़क रहा है …..हाँ , हाँ यशोदा ! मेरा भी दाहिना अंग ….नन्दराय आज प्रसन्नता पूर्वक बोले । सुनिए ! मनसुख नित्य कहता था ….आज उसने कहा नही कि …”मैया ! तेरो लाला नाँय आयो” । मैं दीया जला लेती हूँ ….यशोदा आज कितने दिनों के बाद प्रसन्न है …..सुनिये ! ग्यारह दीपक जलाऊँ ? कहते हैं ना …मनोरथ पूर्ण हो जाता है ग्यारह दीपक जलाने से । नन्दराय मुस्कुराते हैं …ये भी कृष्ण के जाने के बाद आज पहली बार मुस्कुराये हैं । यशोदा मैया दीपक जला रही है …..आपको क्या लगता है ? मेरा लाला आयेगा ? हाँ , आयेगा ! नन्दबाबा दृढ़ता से कहते हैं ।
यशोदा मैया मुस्कुराती हैं …दीपक जला रही हैं ….ओह ! जिसको उठने की हिम्मत नही थी आज लाला आयेगा …इस सोच से ही इनमें इतनी हिम्मत आगयी कि …ये दीपक जला रही हैं ।
बिलख उठते हैं नन्दबाबा तब ….जब यशोदा मैया दीपक जलाकर आँखें मूँद कर भगवान नारायण से प्रार्थना करती है …..मेरे लाला को बुला दो ना ! मेरे लाला को वापस बृज में ला दो ना ।
यशोदा ! एकाएक नन्दबाबा मैया को पुकारते हैं ।
हाँ , तुमने सुना है क्या ? बरसाने की ललिता सखी गयी है कन्हैया को लाने मथुरा ।
हाँ , यशोदा मुसकुराईं …..हाँ , वो अवश्य लेकर आएगी ।
किन्तु राजा को इस तरह ला पाना क्या सम्भव है ?
नन्दबाबा की इस बात पर यशोदा मैया को झुंझलाहट होती है ….आप भी ना ! अगर राजा ही आना चाहे तो ! उसका मन नही लग रहा होगा मथुरा में …उसे अपनी मैया के हाथों का माखन खाना है …उसे अपने बाबा के साथ यमुना नहाने जाना है । नन्दबाबा गम्भीर हो उठते हैं । क्या सच में कन्हैया वृन्दावन आएगा ? किन्तु नन्दबाबा का दाहिना अंग अभी भी फड़क ही रहा है ।
ओह !
क्रमशः….


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