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November 21, 2024 10:49 pm

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श्रीकृष्णकर्णामृत – 61 : : नीरु आशरा

श्रीकृष्णकर्णामृत - 61

“विचित्र सौन्दर्य”


एतन्नाम विभूषणं बहुमतं वेषाय शेषंरलं-
वक्त्रं द्वि-त्रि-विशेष-कान्ति-लहरी-विन्यास-धन्याधरम् ।
शिल्पेरल्पधियामगम्य-विभवै: श्रृङ्गार-भङ्गी-मयं-
चित्रं चित्रमहो विचित्रमहहो चित्र विचित्रं महः ॥५६॥

हे साधकों ! दिव्य ‘रस राज्य’ की यात्रा पर हम लोग हैं ……पूर्व में बताया जा चुका है कि ये रस राज्य कोई और नही श्रीवृन्दावन ही है । इसी श्रीवृन्दावन में नाना प्रकार की भाव स्थितियों से होकर बिल्वमंगल गुजर रहे हैं ….कुछ दिन पूर्व बिल्वमंगल को सर्वत्र श्याम सुन्दर दिखाई दे रहे थे …फिर वही श्याम सुन्दर आते हुए अकेले दिखाई देते हैं …..वो दौड़कर चरणों में गिर पड़ते हैं ….ये साक्षात्कार की स्फूर्ति है …..साक्षात्कार हो नही रहा ….बस स्फूर्ति है । कदम्ब वृक्ष के तने को ही चरण समझ कर वो अपने मस्तक को वहाँ रख देते हैं । कल के श्लोक में हमने सुना कि बिल्वमंगल श्याम सुन्दर के चरणों की सुकुमारता देखकर गदगद हो जाते हैं ….फिर वो थोड़े ऊपर दृष्टि ले जाते हैं ….तो उन्हें बाहु दिखाई देते हैं …..कर कमल को देखकर तो ये और मुग्ध ! फिर वो ऊपर देखते हैं ….तो उन्हें मुखारविंद दिखाई देता है ।

आज वो उस मुख कमल की दिव्यता , विचित्रता का वर्णन बड़े भावमय स्थिति में कर रहे हैं ।


अहो ! ये मुखकमल !

यही मुख कमल ही तो सौन्दर्य सम्पादन में विशेष अलंकार स्वरूप हैं ।

इनको किसी आभूषण की आवश्यकता नही हैं ….अरे ! इनके अंगों में जाकर आभूषण स्वयं भूषित हो उठते हैं …..ये तो अपने आपमें ही भूषित हैं । बिल्वमंगल का त्राटक लग गया है उस दिव्य श्याम के मुख कमल में । यहाँ वो कुछ रुक से जाते हैं ….वो बोल नही पाते …उनकी वाणी लड़खड़ाने लगती है …..लेकिन वो फिर साहस जुटाते हैं ….और बोलना आरम्भ कर देते हैं ।

ये क्या है !

परमाश्चर्य से बिल्वमंगल श्याम सुन्दर के मुख अरविंद को देखकर अपने आपसे पूछते हैं ।

ये चित्र है …नील ज्योति का चित्र ? फिर कहते हैं …नही नही ये कोई चित्र नही है ये तो परम विचित्र है । क्यों विचित्र है ? क्यों की इसका सौन्दर्य प्रति पल बढ़ रहा है ….ऐसा नही है कि जैसा देखा ये वैसा ही है ….नही ….बिल्वमंगल कहते हैं ….जैसे नदी का प्रवाह बहता रहता है और उसमें नवीन जल का वेग आता है ….ऐसे ही इनका सौन्दर्य है …..प्रवाह है एक सौन्दर्य का ….सौन्दर्य का अद्भुत तेज है …वह तेज श्याम है ….वही श्याम प्रकाश सर्वत्र व्याप रहा है । बिल्वमंगल कुछ कहने की स्थिति में नही है …फिर भी वो साहस जुटा कर बोल रहे हैं ।

चित्रं चित्रं चित्रं , अहो ! विचित्रं…….

वह चित्र अद्भुत है ….किन्तु विचित्र ज़्यादा है …क्यों ? बिल्वमंगल कहते हैं …..अद्भुत रूप से इन्हें तराशा गया है ….किसने तराशा पता नही …क्यों कि इनको कौन तराश सकता है । फिर बिल्वमंगल कहते हैं …ये स्वयं तराशे गए हैं । स्वयं ने स्वयं को तराशा है , इसलिए तो विचित्र है ।

वैसे इन श्याम सुन्दर के प्रत्येक अंग ही भूषण स्वरूप हैं किन्तु इनका मुखचन्द्र विशेष भूषण है ….इनको किसी भूषण की आवश्यकता नही पड़ती ये स्वयं में ही भूषण हैं । बिल्वमंगल यहाँ बड़े आनंदित होते हैं …बलैयाँ लेते हैं ।

ये “नीलं ज्योति” इनका विग्रह है …..जिसमें ‘शिल्प वैभव’ के द्वारा इनको सजाया गया है ।

अब ये शिल्प वैभव क्या है ? बिल्वमंगल इसकी अद्भुत व्याख्या करते हैं …कहते हैं –

अरुण अधर हैं …ये अधर भी कमल के समान ही हैं ….इन अधरों के ऊपर इनकी नासिका है ..वो नासिका थोड़ी उठी हुई है ….जैसे शुक यानि तोते की होती है । उसके ऊपर दो नेत्र कमल …कितने सुन्दर हैं ….अब इसके ऊपर नील कमल दल के समान उन्नत ललाट है । बिल्वमंगल भाव में भर जाते हैं वो आगे कहते हैं ….ललाट के नीचे कपोल …युगल कपोल …जैसे रस से भरे हों ….थोड़ा भी पिचका दो तो लगता है रस बाहर आजाएगा । ये भाव जैसे ही बिल्वमंगल के मन में आया तभी श्याम सुन्दर खिलखिलाकर हंस दिए ….बिल्वमंगल कहते हैं …ओह ! ये दंत पंक्ति ! ऐसे लग रहे हैं शुभ्र जैसे मोती समान और आकार अनार के दाने समान । और इनकी चिबुक ! ठोढी , कितनी सुन्दर लग रही है ।

इसी अद्भुत सौन्दर्य को ‘शिल्प वैभव’ बिल्वमंगल कहते हैं ….वो अपलक निहारते हैं अपने श्याम सुन्दर को । इनका शृंगार , इनकी भेष भूषा । अद्भुत अंग सौन्दर्य है , और विचित्र शृंगार है । बिल्वमंगल आह भरते हैं और कहते हैं …अब मेरी वाणी आगे बोल नही पाएगी ! क्यों की अगोचर है इनका सौन्दर्य ! बस निहार लो , अनुभव कर लो …किन्तु बोलें क्या ? बिल्वमंगल यहाँ चुप हो जाते हैं ।

क्रमशः…..
Hari sharan

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