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July 31, 2025 6:54 am

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श्री सीताराम शरणम् मम 156भाग 2″ तथा अध्यात्म पथ प्रदर्शक : Niru Ashra

Niru Ashra: 🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग 1️⃣5️⃣6️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,
भाग 2

 *(माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)*

🌱🌻🌺🌹🌱🥰🌻🌺🌹🌾💐

वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे –

मैं वैदेही !

“मैं सीता का त्याग करता हूँ “

हिलकियाँ फूट पड़ी थीं तीनों भाइयों की ।

जो मूर्छित होते होते बचा था उसी को आदेश मिला ।

लक्ष्मण ! तुम कल प्रातः होते ही जाओगे गंगा किनारे निर्जन वन में ।

वैदेही को लेकर जाओगे ………वो जो वस्तु ले जाना चाहें ले जाएँ ।

कठोर बन गए थे …………पाषाण से भी कठोर ।

पर तुम वैदेही को कुछ बताओगे नही…….तब तक नही बताओगे जब तक गंगा का किनारा और निर्जन वन नही आजाता……..वहाँ उतार देना ……..और मेरा आदेश सुना देना वैदेही को ।

“राम नें तुम्हारा त्याग कर दिया है….. अब कहीं भी जानें के लिए तुम स्वतन्त्र हो “

लक्ष्मण इतना कहकर लौट आना ……….तुरन्त लौट आना ……ये मेरा आदेश है ……….इतना कहकर शून्य में तांकनें लगे थे ।

स्तब्धता छा गयी थी उस कक्ष में ।

लक्ष्मण ! धीरे से पुकारा था श्रीराम नें…..पर लक्ष्मण तो रो रहे थे ………लक्ष्मण ! इस बार जोर से पुकारा ………

घबड़ाये लक्ष्मण आगे हाथ जोड़ते हुये आगये ।

तुमनें उत्तर नही दिया ?

आपकी आज्ञा को मैनें कब टाला है भैया ! …… हिचकियाँ चल ही रही थीं लक्ष्मण की ।

क्रमशः….
शेष चरित्र कल ….!!!!

🌹🌹जय श्री राम 🌹🌹
[] Niru Ashra: 🌼🌸🌻🌺🌼🍁🌼🌸🌻🌺🌼

        *💫अध्यात्म पथ प्रदर्शक💫*

                       *भाग - ५५*

                 *🤝 २. संसार 🤝*

                  _*जन्म-मृत्यु-विचार*_ 

   *‘मैं आत्मा हूँ’*—यह निश्चय होने के बाद की स्थिति समझाते हुए चन्द्रमुनि कहते हैं—

 *चिदात्मनि परिज्ञाते नष्टे मोहेऽज्ञसम्भवे ।*
 *देहः पततु प्रारब्धकर्मवेगेन तिष्ठतु ॥*
 *योगिनो नहि दुःखं वा सुखं वाज्ञानसम्भवम् ।*

   *‘मैं शरीर नहीं, बल्कि चैतन्यस्वरूप आत्मा हूँ'* - ऐसा दृढ़ अपरोक्ष निश्चय होनेपर अज्ञानजनित मोह सदा के लिये नष्ट हो जाता है। *‘मैं शरीर नहीं हूँ'*- यह निश्चय हो जानेपर शरीर आज नष्ट हो जाय, अथवा प्रारब्ध शेष हो तो उसके क्षयपर्यन्त जीता रहे, इससे इस प्रकार के ज्ञानी को अज्ञानजन्य सुख या दुःख कुछ भी नहीं होता। इस प्रकार जीवन-मरण को समान समझनेवाला ज्ञानी पुरुष जीवन्मुक्त कहलाता है।

    जीवन्मुक्त पुरुष ज्ञान सम्पादन करके अविद्या से निवृत्त हो जाते हैं। कारणशरीर की व्याख्या इस प्रकार है-

 *'अनाद्यविद्यानिर्वाच्या कारणोपाधिरुच्यते ।'*

   अनादि और अनिर्वचनीय अविद्या कारणशरीर कहलाती है। इस लक्षण से अविद्या की निवृत्ति ही कारणशरीर का नाश है, यह स्पष्ट हो जाता है। इसलिये जीवन्मुक्त का कारणशरीर नाश होनेके कारण वह दो ही शरीरों (स्थूल और सूक्ष्म) -में जीता है।

   आचार्य श्रीमधुसूदन सरस्वतीने अपने अद्वैतसिद्धि नामक ग्रन्थ में जीवन्मुक्त की व्याख्या करते हुए इस बात को स्पष्ट कर दिया है- *'जीवन्मुक्तश्च तत्त्वज्ञानेन निवृत्ताविद्योऽपि अनुवृत्तदेहादिप्रत्ययः ।'*

   *वह पुरुष जीवन्मुक्त कहलाता है, जिसने तत्त्वज्ञान के द्वारा अविद्या की निवृत्ति कर ली है। परंतु प्रारब्ध का भोग शेष रहने के कारण उसका शरीर जीवित रहता है तथा उससे यथायोग्य व्यवहार भी हुआ करता है। इस प्रकार आचार्यश्री ने यही बतलाया कि जीवन्मुक्त का कारण-शरीर नष्ट हो जाने के कारण वह दो ही शरीरों से जीवित रहता है।*

   सांसारिक पुरुष ज्ञान-सम्पादन न करनेके कारण तीनों शरीरों में जीवित रहता है, अर्थात् स्थूल, सूक्ष्म और कारण - तीनों शरीरों में उसका जीवन रहता है। स्थूल शरीर जीता है तो वह सूक्ष्म शरीर का आधार होता है, जब स्थूल शरीर नष्ट हो जाता है, तब कारण शरीर उसका आधार होता है ।

   *प्रारब्ध का भोग जब समाप्त हो जाता है, तब दोनों ही पुरुषों के स्थूल शरीर नाश को प्राप्त होते हैं; यह हम प्रत्यक्ष देखते ही हैं। इसमें कोई विलक्षणता नहीं होती।*

   जीवन्मुक्त का स्थूल शरीर जब नाश को प्राप्त होता है, तब सूक्ष्म शरीर स्थूल को छोड़कर जैसे ही बाहर निकलता है वैसे ही आधार के अभाव में नाश को प्राप्त हो जाता है। अपने-अपने तत्त्व में मिल जाता है। इस प्रकार के जीवन्मुक्त पुरुष के लिये ही कहा है-

   *'न तस्य प्राणा उत्क्रामन्ति तत्रैव प्रविलीयन्ते ।'* —उसके प्राण किसी दूसरे शरीर में प्रवेश नहीं करते, बल्कि बाहर निकलते ही महाप्राण में मिल जाते हैं। यह स्थिति *'विदेह कैवल्य'* कहलाती है।

   सांसारिक पुरुष का स्थूल शरीर जब नाश को प्राप्त होता है, तब सूक्ष्म शरीर स्थूल को छोड़कर बाहर निकलता है। उस समय उसको कारण-शरीर का आधार प्राप्त होता है, इसलिये वह नाश को प्राप्त नहीं होता।  उसकी रक्षा के लिये तुरंत ही उसको आतिवाहिक शरीर मिल जाता है और उसमें वे दोनों शरीर तबतक सुरक्षित रहते हैं जबतक पाञ्च- भौतिक शरीर प्राप्त नहीं हो जाता।

   क्रमशः.......✍

  *🕉️ श्री राम जय राम जय जय राम 🕉️*
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Author: admin

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