Niru Ashra: 🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग 1️⃣5️⃣6️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,भाग 3
*(माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)*
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वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे –
मैं वैदेही !
लक्ष्मण इतना कहकर लौट आना ……….तुरन्त लौट आना ……ये मेरा आदेश है ……….इतना कहकर शून्य में तांकनें लगे थे ।
स्तब्धता छा गयी थी उस कक्ष में ।
लक्ष्मण ! धीरे से पुकारा था श्रीराम नें…..पर लक्ष्मण तो रो रहे थे ………लक्ष्मण ! इस बार जोर से पुकारा ………
घबड़ाये लक्ष्मण आगे हाथ जोड़ते हुये आगये ।
तुमनें उत्तर नही दिया ?
आपकी आज्ञा को मैनें कब टाला है भैया ! …… हिचकियाँ चल ही रही थीं लक्ष्मण की ।
जाओ ! अब जाओ ! सो जाओ ! श्रीराम नें अपनें भाइयों से कहा ।
सुनो ! ये बात किसी से मत कहना……अपनी पत्नियों से भी नही ।
आज वो हृदय इतना कठोर हो गया था ……………ओह !
सुनिए ! मुझे वन में जाना है…….गंगा के पवित्र जल में स्नान करना है ……….वहाँ ऋषियों के आश्रम हैं …………उनके दर्शन करनें का मेरा बहुत मन है …………।
अन्तःपुर में आगये थे श्रीराम ……और बिना कुछ बोले लेट गए थे ।
मैं ही बक बक किये जा रही थी , पर वो तो कुछ और ही सोच के बैठे थे ।
“कल लक्ष्मण तुम्हे वन में ले जाएगा……मैने उसे बोल दिया है”
इतना ही बोले थे ……………..
आप कितना ध्यान रखते हैं ना मेरा ! मेरी इच्छा का कितना सम्मान करते हैं ना ! मैने उनसे और भी बहुत कुछ कहा ………पर उन्होंने कोई उत्तर नही दिया ।
उस दिन प्रातः ही सरजू स्नान के लिये श्रीराम चले गए ।
लक्ष्मण रथ तैयार कर रहे थे ….साथ में सारथि महामन्त्री सुमन्त्र थे ।
मैं बहुत खुश थी ………..सूखे मेवा, कुछ मिष्ठान्न भी रख लिए थे ।
हिरणों को देनें के लिये कुछ दानें ……..गायों के लिये गुड़ इत्यादि ।
वन में रहनें वाले विप्रों को देनें के लिये कुछ दक्षिणा ………..।
ओह ! मैं भी भूल गयी ……..वस्त्र तो रख लेती हूँ ……गंगा में स्नान करना पड़ा तो ! मैने वस्त्र भी रख लिए थे ।
उर्मिला ! तुम भी चलतीं ? उर्मिला आगयी थी …………मैने लक्ष्मण की ओर देखा ……उर्मिला को भी ले चलते हैं ना लक्ष्मण !
नही ……आप बैठिये भाभी माँ ! ऐसा नीरस उत्तर लक्ष्मण से मुझे मिलेगा मैने सोचा भी नही था ……..।
मैं बैठ गयी थी रथ में …………और रथ चल पड़ा था ।
शेष चरित्र कल ….!!!!
🌹🌹जय श्री राम 🌹🌹
Niru Ashra: 🌼🌸🌻🌺🌼🍁🌼🌸🌻🌺🌼
*💫अध्यात्म पथ प्रदर्शक💫*
*भाग - ५६*
*🤝 २. संसार 🤝*
_*बन्ध-मोक्ष-विचार*_
चित्तमेव हि संसारो रागादिक्लेशदूषितम् ।
तदेव तैर्विनिर्मुक्तं भवान्त इति कथ्यते ॥
श्रीवसिष्ठजी श्रीरामचन्द्रजी से कहते हैं-देखो, अब मैं तुमको संसार का स्वरूप समझाता हूँ। मनुष्य के चित्त अर्थात् अन्तःकरण में जब अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश-ये पाँच क्लेश घर कर बैठते हैं, तब सुख-दुःखरूप संसार की प्रतीति होती है। परंतु सद्गुरु के बतलाये हुए साधनों का आचरण करने से अन्तःकरण जब क्लेशरहित, वासनाशून्य हो जाता है, तब सुख-दुःख आदि की प्रतीति नहीं होती। वासनाशून्य अन्त:करण में यथार्थ ज्ञान अपने-आप प्रकट होता है और यथार्थ ज्ञान होने का नाम ही मुक्ति है। इसी बात को दूसरे प्रकार से समझाते हैं-
राम वासनया बन्धो मुक्त्यै निर्वासनं मनः ।
तस्मान्निर्वासनीभावमानयस्व विवेकतः ॥
हे रामचन्द्रजी! भौतिक पदार्थों में, इन्द्रियों के भोग की सामग्री में आसक्ति होने से, उनसे सुख प्राप्त करने की इच्छा होती है और यह इच्छा ही बन्धन कराती है। इसलिये मुमुक्षु लोग विवेक के द्वारा वैराग्य की प्राप्ति करते हैं, पदार्थमात्र में से आसक्ति हटा लेते हैं। मन को समझाते हैं कि भोग-पदार्थों से कोई सुख नहीं मिलता। आसक्ति के कारण उनमें सुखबुद्धि आती है और तब उनकी प्राप्ति के लिये प्रयत्न होता है और इस प्रकार प्रवृत्त होते-होते संसार का विस्तार होता है। अतएव सब प्रकार के बन्धन का कारण जो वासना, भोग-वासना है, उसका त्याग करना चाहिये।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।
बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥
फिर हे रामचन्द्रजी! यह मन ही बन्धन में डालता है। मन संसार के भोगपदार्थों में आसक्त हो जाता है और उनकी प्राप्ति के लिये, बन्दर के समान, एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ के लिये उछल-कूद मचाता रहता है; वह कदापि विषय-भोग से अघाता नहीं और रोज नये-नये भोग के लिये छटपट करता रहता है। इस प्रकार प्राणी-पदार्थों का संग्रह करने में ही सारा जीवन बीत जाता है, तथापि उसको तृप्ति नहीं होती। अतृप्त वासनाओं के कारण ही एक के बाद दूसरा यों अनेक प्रकार के देह धारण करता जाता है। अतएव सब अनर्थों का मूल कारण मन ही है। परंतु यह मन यदि विषयों से हटकर ईश्वर में लग जाय, तो वही भव-बन्धन को काट डालता है। जब अन्तःकरण विशुद्ध हो जाता है तो उसमें ईश्वर का साक्षात्कार होते देर नहीं लगती। इसलिये मुक्ति दिलानेवाला भी यह मन ही है। अतएव जैसे भी हो, इस मन को शान्त करना चाहिये।
*दूसरे प्रकार से देखनेपर हे रामचन्द्रजी! न बन्धन है और न मोक्ष ही है। केवल देहाध्यास के कारण आत्मा को संसार प्राप्त होता है।*
क्रमशः.......✍
*🕉️ श्री राम जय राम जय जय राम 🕉️*


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