श्री सीताराम शरणम् मम /भाग 1 तथा अध्यात्म पथ प्रदर्शक 60 : Niru Ashra

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श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग 1️⃣5️⃣9️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,
भाग 1

 (माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)

🌱🌻🌺🌹🌱🥰🌻🌺🌹🌾💐

“वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे

मैं वैदेही !

भाभी माँ ! अयोध्या में अब उत्सव नही होते …….चारों ओर उदासी पसरी हुयी लगती है ………..लोग हँसते तो हैं ……पर दिखावा से ज्यादा और कुछ नही ।

शत्रुघ्न कुमार मुझे बता रहे थे ।

लक्ष्मण भैया जब लौटे अयोध्या में …..तब वह अचेत से थे …….उनके हाथों में रथ की लगाम कहाँ थी …………..।

हम लोग प्रतीक्षा में थे लक्ष्मण भैया के …….जैसे ही रथ देखा …..

दौड़ पड़े ……….पर लक्ष्मण भैया को होश कहाँ था ।

जैसे तैसे हम लोगों नें उन्हें उठाया …….वो यही पूछ रहे थे कि मैं कहाँ हूँ ….ये अयोध्या तो नही लग रही ……इतनी वीरान अयोध्या कब थी…
🌼🌸🌻🌺🌼🍁🌼🌸🌻🌺🌼

        💫अध्यात्म पथ प्रदर्शक💫

                      भाग - ६०

               🤝 ३. उपासना  🤝

                      ईश्वर -पूजन 

   ईश्वर-पूजन का सामान्य अर्थ होता है-अपने इष्ट की प्रतिमा की पूजा करना। वह प्रतिमा कागज का चित्र हो तो केवल फूल चढ़ाकर, धूप-दीप-नैवेद्य रखकर संतोष करना पड़ता है और यदि वह प्रतिमा धातु, पत्थर या लकड़ी की हो तो उसका षोडशोपचार पूजन होता है और धूप, दीप, नैवेद्य रखकर भक्त अपने को कृतकृत्य मानता है।

   पूजन हो जानेके बाद भक्त अपने इष्टदेवता के सामने बैठकर यथाशक्ति इष्ट-मन्त्र का जप करता है।  पश्चात् स्वाध्याय के निमित्त अपने साधन के अनुकूल किसी स्तोत्र या सहस्रनाम आदि का पाठ करता है। इस प्रकार से ईश्वर-पूजन समाप्त करके साधक अपने दूसरे दैनिक व्यवहार के काम में लग जाता है।

   इतन…

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