श्री सीताराम शरणम् मम/ भाग 3 तथा अध्यात्म पथ प्रदर्शक💫भाग – ५९ : Niru Ashra

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Niru Ashra: 🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग 1️⃣5️⃣7️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,
भाग 3

 (माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)

🌱🌻🌺🌹🌱🥰🌻🌺🌹🌾💐

“वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे

मैं वैदेही !

ये क्या हुआ तुम्हे लक्ष्मण भैया ! वो हिलकियों से रो रहे थे ।

उनके आँसुओं से धरती भींग गयी थी ।

“माँ ! भैया श्रीराम नें आपका त्याग कर दिया है “

क्या ! मेरी बुद्धि स्तब्ध हो गयी…….मैं जड़वत् खड़ी रह गयी ……..मेरे लिये ये जगत शून्य हो गया ……….।

लक्ष्मण बोलते गए …….धोबी की बात ……..मैं अपावन हो गयी रावण के यहाँ रहनें से…….धोबी नें यही सब कहा……..यही सब कहते गए ।

लक्ष्मण ये सब बताकर   रथ की ओर बढ़ गए थे  ।

मैं खड़ी रह गयी थी अकेली ……….रघुवंश की बड़ी बहु ……….अयोध्या की सम्राज्ञी ……विदेह राज की लाडि…
Niru Ashra: 🌼🌸🌻🌺🌼🍁🌼🌸🌻🌺🌼

        💫अध्यात्म पथ प्रदर्शक💫

                      भाग - ५९

               🤝 ३. उपासना  🤝

मानव-शरीर केवल ईश्वर -प्राप्ति के लिए ही है

   अब मनुष्य-शरीर की महत्ता बतलाते हुए कहते हैं- 'इदं बहुसम्भवान्ते ( लब्धं – अतः) सुदुर्लभम् ।' यह मनुष्य शरीर चौरासी लाख के चक्कर में फिरते-फिरते प्रभु दया से प्राप्त होता है। इसीसे इसको सुदुर्लभ अर्थात् अतिशय दुर्लभ या देवदुर्लभ कहा है; क्योंकि देवता भी मनुष्य-शरीर की प्राप्ति के लिये अकुलाया करते हैं। कोई पूछे कि ‘यह किसलिये ?' तो कहते हैं— 'अनित्यमपि इह अर्थदम्।' अर्थात् यह मनुष्य-शरीर यद्यपि स्वभाव से तो अनित्य है, तथापि इस मर्त्यलोक में 'अर्थ' प्रदान करनेवाला है। यहाँ 'अर्थ' क्या है, इस बात को समझना है। अर्थ चार हैं— धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। मनुष्य को अपने मनुष्य-जन्म …

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