
“धर्म को सत्ता या राजनीति से दूर-दूर रखिए” का विचार एक महत्वपूर्ण और गहराई से विचार करने वाला विषय है। इसके कई पक्ष हैं, जिन्हें हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:
1. धर्म की स्वच्छता:
- धर्म का मुख्य उद्देश्य आत्मिक विकास, नैतिकता और समाज में सद्भावना स्थापित करना है। जब धर्म को राजनीति में लाया जाता है, तो इसके मूल उद्देश्यों से भटकने का खतरा होता है।
2. राजनीति का उद्देश्य:
- राजनीति का लक्ष्य सत्ता प्राप्त करना और उसके माध्यम से समाज की शासन व्यवस्था को संचालित करना है। इसमें चूकों और रणनीतियों का खेल शामिल होता है, जिससे धर्म की नैतिकता प्रभावित हो सकती है।
3. सामाजिक विभाजन:
- जब धर्म को राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो यह समाज में विभाजन और संघर्ष को बढ़ावा दे सकता है। धार्मिक आधार पर विभाजन से समाज में असमानता और टकराव बढ़ता है।
4. नैतिक मूल्यों की क्षति:
- राजनीति में धर्म को शामिल करने से नैतिकता और मूल्यों का ह्रास होता है। नेताओं की बातों में स्वार्थ, धोखाधड़ी और अन्याय का समावेश हो जाता है, जो लोगों के विश्वास को कमजोर करता है।
5. धर्मनिरपेक्षता का महत्व:
- अलग-अलग धार्मिक मान्यताओं वाले लोगों के बीच सामंजस्य और सहिष्णुता बनाए रखने के लिए धर्मनिरपेक्षता आवश्यक है। यह विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच समानता और सम्मान को बढ़ावा देता है।
6. सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन:
- धर्म और राजनीति के अलगाव से समाज में सकारात्मक परिवर्तन की गुंजाइश बढ़ती है। जब नीति निर्माण धार्मिक विचारधाराओं से मुक्त होता है, तब वह सर्वजनहित में बेहतर और प्रभावी कार्य कर सकता है।
निष्कर्ष:
धर्म को सत्ता और राजनीति से दूर रखना एक चुनौतीपूर्ण विचार है, लेकिन यह समाज के समग्र विकास और शांति के लिए आवश्यक हो सकता है। इससे धार्मिक मूल्यों की रक्षा हो सकती है, और विभिन्न समुदायों के बीच सद्भावना और समझ विकसित की जा सकती है।

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