श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! इन्द्र का कोप – “गोवर्धन पूजन” !!
भाग 2
नारायण नारायण !
इतना ही नही……….तुम्हारा जो इन्द्र ध्वज था उसे भी उखाड़ कर फेंक दिया है उन बृजवासियों नें ।
देवर्षि नारद जी आँखें मटका मटका कर इन्द्र को बता रहे थे ।
उन गोपों नें आपकी घोर अवज्ञा की है देवराज ! आपका आव्हान तक नही किया गया इस वर्ष………
पूजा अर्चना किसकी हुयी बृजमण्डल में इस वर्ष ?
इन्द्र नें देवर्षि से पूछा ।
आपका तो घोर अपमान ही हो गया …….गोवर्धन पर्वत की पूजा की गयी है इस वर्ष……..आपका नाम भी लेना उन लोगों नें उचित नही समझा ………इन्द्र ! सदियों से चली आयी आपकी पूजा रोक दी गयी……..ये आपका घोर अपमान है !
देवर्षि आग लगा रहे हैं………..इन्द्र का कोप बढ़नें लगा था ।
किसनें किया ये दुस्साहस ? कौन है वो जिसनें मेरी पूजा छुड़वा कर गोवर्धन की पूजा करवाई ! इन्द्र के क्रोध से उसका सिहांसन हिल रहा था ।
कृष्ण ! बृजपति नन्द का पुत्र है …..कृष्ण नाम है उसका ।
देवर्षि बोले जा रहे हैं – बृजवासी तो आपकी पूजा करना चाहते थे ……पर उस कृष्ण नें ही आपकी पूजा रुकवा दी …..और गिरी पर्वत की पूजा करवाई……..आप कुछ करिये …..नारायण ! नारायण !
इतना पर्याप्त था ………..देवर्षि मुस्कुराते हुए चल दिए ।
जाओ ! डुबो दो पूरे बृजमण्डल को !
इन्द्र चीखा अपनें मेघों पर……..उस कृष्ण की बात मान कर मेरी पूजा त्याग दी ….मुझे त्याग दिया उन ग्वालों नें ………अब मैं देखता हूँ मेरे क्रोध से कैसे बचेंगे वो लोग ।
बहा दो पूरे बृज को………प्रलयंकारी मेघ बरसो बृज मण्डल में …..
गोपों के समस्त पशु धन को बहा कर नष्ट कर दो ……….गरजो बृज में जाकर ……….मेघ !
इन्द्र को अत्यधिक क्रोध चढ़ गया था……..क्रोध जब अधिक चढ़ जाए तब आसुरी भाव प्रवेश कर जाता है……..और ये आसुरी भाव ही तो था – गायों को बहा दो ! ……गौ धन को नष्ट कर दो ! बृजवासियों को डुबो दो अतिजल वृष्टि से ……।
इतनें पर भी शान्ति नही मिली इन्द्र को तो उसनें “सांवर्तक” नामक मेघ को बुलाया………उद्धव बोले – ये मेघ प्रलय में ही बरसता है ……..उसको बुलाकर आज्ञा दी कि बरसों …………बृज को जैसे ही भी बहा दो ……….बृजवासियों को डूबा कर मार दो ।
मैं भी आरहा हूँ ………ऐरावत हाथी में बैठकर ……और मेरे हाथ मे बज्र भी होगा……….ऐसे नही मरेंगें बृजवासी तो मैं बज्रपात करूँगा ।
उद्धव बोले – देवर्षि नारद ऊपर से इन्द्र के क्रोध का निरीक्षण कर रहे थे ………….वो हँसे – अरे पागल इन्द्र ! ये ऐरावत हाथी समुद्र से ही तो निकला है ……..और समुद्र भगवान नारायण का घर है …..ये ऐरावत नारायण की वस्तु है तुम्हारी नही ………..ऐरावत मूल रूप से नारायण का ही है ………उनका एक संकेत मिले तो सूंड से उठाकर पैरों से तुझे ही तेरा वाहन ऐरावत कुचल देगा ………और हाँ बज्र पर भरोसा मत करना ………..उस बज्र में भी उन्हीं की ही शक्ति है ।
लेकिन देवर्षि प्रसन्न होकर अब आगे की लीला देखनें लगे थे ……..कि लीलाधारी इस इन्द्र को कैसे मजा चखाते हैं ।


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