श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “वेणु गीत”- महारास की पृष्ठभूमी !!
भाग 2
हे श्रीजी ! आगे बताओ …..श्याम सुन्दर कैसे लग रहे हैं ?
आहें भरते हुए सखीयों नें श्रीराधारानी से पूछा था ।
देखो ! देखो ! वे श्याम सुन्दर …….मोर मुकुट धारण किये हुए हैं …..आगे आगे गौओं का झुण्ड चल रहा है ….और पीछे वेणु नाद करते हुये वे चले आरहे हैं ………अरी देख तो वीर ! इनकी शोभा को ………..क्या लग रहे हैं ! ……….नील वर्ण, चमकता मणि हो मानों …….नही नही – मणि तो कठोर होता है ……पर ये तो नवनीत से भी कोमल हैं ……देख तो सखी ! मोर नाच रहा है ……..उसका पंख गिर गया है ……गिरा नही है……..श्याम सुन्दर को अपनी भेंट चढ़ा रहा है ।…….फिर कुछ देर रुक जाती हैं श्री राधारानी…..मुस्कुराते हुए फिर कहती हैं – यमुना रुक गयी है इनको देख कर…….अरे ! यमुना की धारा श्याम सुन्दर के चरणों के पास आगयी है……कमल पुष्प चढ़ा रही है उन अरुण युगल चरणों में ………..
अरे ! इन भीलनियों को तो देख !……श्रीराधा कहती हैं – श्याम सुन्दर के चरणों में लगे केशर तृण में लग गए हैं ………उन तृण के केशर को उठाकर भीलनियाँ अपनें वक्ष पर मल रही हैं ………इससे इनकी कामना शान्त हो रही है ।
पर केशर श्याम सुन्दर के चरणों पर लगे कैसे ?
श्रीराधारानी सोचती हैं ……..फिर हँसते हुए कहती हैं …….अरे ! ये तो कपटी हैं…………..फिर हँसती ही रहती हैं ।
वो नन्दगाँव की गोपी आज वन में गयी …….गयी क्या थी ….अपनें पति को भोजन देंने गयी थी …………पर हृदय में तो श्याम के दर्शन की ही कामना भरी है…….सामनें आगये उसी समय श्याम सुन्दर …….वो तो अपलक देखती रही……तन की सुध खो गयी ……….वस्त्र कब गिर पड़े उसे पता ही नही …….मूर्छित भी हो गयी ……तभी उस गोपी का पति आगया …..खोजता हुआ आगया था ।………श्रीराधा मुस्कुराते हुए बन्द नेत्रों से ये दर्शन कर रही हैं ।
श्याम सुन्दर नें देखा ………….पति आगया है …….अब मुझे देखेंगा तो इस बेचारी को ही घर जाकर डांटेगा …………श्याम सुन्दर भागे ……..झटपट भागते समय उस गोपी के वक्ष पर चरण पड़ गए ……गोपी नें केशर लगा रखा था वक्ष में …….वो केशर चरणों में लग गया …….तृण में वो केशर लग गए …….तृण का केशर अब ये भीलनियाँ हाथों में लेकर अपनें वक्ष पर ही मल रही हैं ……ओह !
कुछ देर तक मुस्कुराती रहीं श्रीराधारानी………..फिर बोलीं –
आकाश की इन अप्सराओं को तो देखो ……..श्याम सुन्दर की मोहनी मूरत को देखकर कैसी बाबरी हो गयी हैं …….चोटी ढीली हो रही है प्रेम की अधिकता के कारण …………उसमें लगे नन्दनवन के पुष्प झर रहे हैं और सीधे श्याम सुन्दर के ऊपर ही झर रहे हैं ……..आहा !
मुखमण्डल लाल हो उठा श्रीराधारानी का ……..शरमा गयीं एकाएक ।
फिर अपनें आपको सम्भालकर बोलीं ……….सखी ! दाऊ भैया साथ में हैं …….वो भी कितनें अच्छे लग रहे हैं ।
ललिता नें पूछा …..हे श्रीराधा ! ये बीच में दाऊ भैया कहाँ से आगये !
श्रीराधारानी चुप हो गयीं ।
…….प्रेम की बड़ी अटपटी चाल होती है ………कुछ गोप्य रखना हो तो फिर बात किसी और कि, की जाती है ।
भाव को छिपाना भी है ….और बताना भी है ……..ये दोनों प्रेम गली में साथ साथ चलते हैं ।
तभी ……श्याम सुन्दर नें फिर बाँसुरी बजा दी ……………..
प्रेम अब चरम पर पहुँच चुका था ।
“यही तो है महारास की पृष्ठभूमि” …….उद्धव नें भाव में डूबकर कहा ।


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