श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! हा सखे, दर्शय – “रासपञ्चाध्यायी” !!
भाग 1
ऐसी हैं श्रीराधारानी ……करुणा की खानि !
ओह ! मेरी गोपियाँ कहाँ हैं ? उनको कितनी पीड़ा हो रही होगी ….उनका हृदय जल रहा होगा प्रिय के वियोग में !
फिर मैं यहाँ कैसे अकेले सुख लूटूँ ……………..
श्रीकिशोरी जी का हृदय गोपियों के लिये द्रवित हो उठा था ………”और जब तक मैं उनको नही मिलती ये प्यारे भी उनको मिलनें से रहे ! “
श्रीजी विचार करती हैं ……….कृपालुता की राशि श्रीजी मन ही मन संकल्प कर लेती हैं ……….”मैं गोपियों के पास जाऊँगी” ।
तात ! इनसे बड़ी दयालुता स्वभाव में किसके पास होगी ?
उद्धव बोले थे ।
अब चलो प्यारी !
श्याम सुन्दर नें श्रीजी के कोमल कर पकड़ कर कहा ।
हाँ , गोपियाँ भी अब आही रही होंगी …………वो यहाँ आएं उससे पहले ही हम निकल जाते हैं……श्याम सुन्दर श्रीजी के कर को पकड़े हुए हैं ।
“पर नहीं ……….अब मुझ से चला नही जा रहा” ।
श्रीजी बोल उठीं ।
मैं अब आगे नही चल सकती …….श्रीजी नें स्पष्ट कह दिया था ।
तो आप मेरे कन्धे में बैठ जाएँ …….मैं आपको ले चलूँगा …….
श्याम सुन्दर बैठ गए……और अपना कन्धा नीचे कर लिया ।
श्रीजी उठीं ………और जैसे ही बैठनें के लिये उद्यत हुईँ ………श्यामसुन्दर वहाँ से भी अंतर्ध्यान हो गए ।
हा प्राण ! हा नाथ ! हा रमण ! हा प्रियतम !
धरती में धड़ाम से गिरीं हैं श्री किशोरी जी …………उनके नेत्रों से अश्रु प्रवाह चल पड़े थे …………..
ये कौन बैठी हुयीं हैं ?
नही नही , बैठी नही हैं ……..ये तो धरती में ……..
चन्द्रावली सखी आगे आगे चल रही थीं ………..उनके पीछे ललितादि समस्त सखियाँ थीं………….चरण चिन्हों को देखती हुई जब वो आगे बढ़ीं तो देखा ………कोई वधू , नववधू जो सुन्दरता की राशि …..वो धरती पर पड़ी – हा नाथ ! हा बल्लभ ! पुकार रही थीं ।
ललिता दौड़ी ………चन्द्रावली ! ये तो हमारी स्वामिनी हैं !
उफ़ ! कैसा क्रन्दन था ……कैसा करुण विलाप था…..श्रीराधारानी का विरह देखकर तो वृन्दावन भी मानों सुबक रहा हो ……ऐसा लगता था ।
हिचकियाँ शुरू हो गयीं थीं कज्जल मिश्रित अश्रु उन गोरे कपोलों को काला कर रहा था …………..
स्वामिनी ! ललिता पागलों की तरह दौड़ी थी ……विशाखा तो स्तब्ध सी हो गयी थी अपनी स्वामिनी की ये दशा देखकर ………….
स्वामिनी ! नेत्रों को खोलिए ! रंगदेवी जल का छींटा उन मुखारविन्द में डालते हुए कहती जा रही थीं …….पर श्रीराधारानी को कुछ भान न था ………..वो बस……हा श्याम सुन्दर ! हा प्राण ! हा सखे !
यही बोलती जा रही थीं………उनकी साँसों की सुगन्ध से पूरा वृन्दावन महक रहा था……स्वेद निकल रहे थे उनके गौरांग देह से ….उसकी सुगन्ध अद्भुत थी ………पशु पक्षी सब घेरकर खड़े थे श्रीराधारानी को ….मोरों का झुण्ड चारों ओर था……..उनके भी नेत्रों से अश्रु बह रहे थे……..शुक, कोयल आदि पक्षी शान्त होकर वृक्षों में बस बैठे थे ….पर उदास थे सब ।
श्याम सुन्दर !
एकाएक पता नही क्या हुआ श्रीजी को …..उठकर बैठ गयीं ।
कहाँ हैं मेरे प्यारे ! कहाँ हैं मेरे नाथ ! श्रीजी बिलख रही थीं ।
क्रमशः …


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