श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ऊधो ! प्रीत किये पछतानी -“उद्धव प्रसंग 22” !!
भाग 2
इन्दु बोल रही थी ।
मानों झड़ी लगा दी सबनें उद्धव के सामनें प्रश्नों की ।
वो अभी भी रसिक शेखर बनें हैं या सुधर गए ?
ललिता नें सहज पूछा ।
अजी कहाँ रसिकता छोड़ेंगे वो….कुबड़ी को अपनी रानी बना बैठे हैं ।
सुदेवी नें कहा था ।
तात ! अब मुझे कुछ कहना था तो मैने कहा…..
हे गोपियों ! आप लोग भाग्यशाली हो ….धन्य हो …..शायद इस पृथ्वी में जितनें देह धारी हुए हैं उन सबमें भाग्यशाली तुम ही हो ……..क्यों की श्रीकृष्ण ही तो जीव का परम लक्ष्य है ……..तुम लोगों नें उसे पा लिया …..कितनें सुन्दर क्षण बिताये श्रीकृष्ण के साथ……आह ! तुमसे बड़ा भाग्य शाली और कौन हुआ है ? न आगे होगा । हे तात ! मैने गोपियों की प्रशंसा की थी ….किन्तु –
अरे ! रहनें दो उद्धव ! ऐसे भाग्य से अच्छा था दुर्भाग्य ही !
न मिलता हमें ये सुख ! बहुत अच्छा होता……हम खुश रहतीं ……हम प्रसन्न रहतीं……..अपनें घर गृहस्थी में मस्त रहतीं …….पर ये प्रेम ! और प्रेम भी किया तो तेरे यार छलिया श्याम सुन्दर से…..हट्ट !
ये कहते हुए फिर नेत्रों से अश्रु धार बह चले थे गोपियों के ।
हाय ! हम सो नही पातीं……..उद्धव ! जब से श्याम गए हैं तब से नींद नही है…….जब से श्याम गए हैं इन नयनों से बस वर्षा ही होती रहती है …….न करतीं प्रेम तो जी भरके सो तो पातीं …….न करती प्रेम तो बेटा बेटी पति इन सबके हाथ हम भी बैठतीं और हंसी ठिठोली करतीं …….न करतीं प्रेम तो कमसे कम भोजन तो कुछ जाता पेट में ……पर उद्धव ! सच कहतीं हैं …….हम पछता रही हैं कि हमनें प्रेम क्यों किया ! क्यों किया ? और प्रेम भी किया तो उस छलिया श्याम से ……….सब गोपियाँ सुबुक रही थीं ………..सबकी स्थिति विरह-वेदना के कारण गम्भीर बनी हुयी थी ।
उद्धव ! हमनें नही सोचा था, हम कसम खाती हैं , हमनें नही सोचा था कि प्रेम का परिणाम ऐसा होगा ?
पर दूसरे के मन की बात हम क्या जानें ? हम कुछ और सोच कर बैठी थीं पर श्यामसुन्दर तो कुछ और ही ठानें हुए थे ……
उद्धव ! हंसी आती हैं हमें……हमको योग – ज्ञान की शिक्षा दी जा रही है और स्वयं उस कूबड़ी को अपनी महारानी बनाकर बैठे हैं …..वाह जी ! वाह ! ……….
गोपियों के अश्रुधार तेज होनें लगे थे …….वो आँसु अब नाले के रूप में परिणत होकर बह चले थे ।
हमें आलिंगन किया है श्याम सुन्दर नें …..हाँ ….उनकी छुअन अभी भी हमें जलाती है ……….उस छुअन की सुगन्ध हमें जीनें नही देती !
क्या इसे सौभाग्य कहोगे उद्धव ! हम न जी पा रही हैं ….न मर सकती हैं …ये कहते हुये सब गोपियाँ धड़ाम धड़ाम से धरती पर गिरनें लगीं थीं ।
ओह ! मैं समझ ही नही पा रहा था कि ये हो क्या रहा है !
शेष चरित्र कल –
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877