श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! मणि की खोज में – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 19” !!
भाग 1
श्रीकृष्ण नें रात्रि में ही आपातकालीन सभा बुलाई …..गुप्तचरों को भेजकर ये पता लगवाया कि स्यमन्तक मणि लेकर प्रसेन गया कहाँ !
महाराज ! आखेट करनें गया था वो प्रसेन ! गुप्तचरों नें सभा में आकर सूचना दी ………
किन्तु ! आखेट से वो लौट कर आया क्यों नही ? श्रीकृष्ण सचिन्त हो उठे थे ।
हे द्वारकेश ! आप विश्राम करें चिन्ता छोड़ दें…….महाराज उग्रसेन नें समझाना चाहा वासुदेव को ।
नही महाराज ! बात केवल मेरी होती तो कोई बात नही थी ……किन्तु मैं जुड़ा हुआ हूँ द्वारिका के राजकीय व्यवस्था से ………प्रजा में इस व्यवस्था के प्रति अविश्वास हो जायेगा तो ये राज्य के लिये अच्छा नही है ……..इसलिये ये कलंक तो मैं मिटा कर ही रहूँगा ।
कुछ देर विचार करनें के बाद श्रीकृष्ण नें कहा …….हे महाराज ! मुझे इक्कीस लोग दीजिये………उन लोगों को लेकर मैं जाऊँगा उस मणि की खोज में और प्रसेन को किसनें मारा है उसका पता लगा कर आऊँगा ।
मैं भी चलूँगा ……..बलराम बोले ।
नही दादा ! आप यहीं द्वारिका में ही रहिये…….और यहाँ का राजकार्य देखते रहिये……..आप और हम दोनों ही चले जायेंगे द्वारिका से तो जरासन्ध आदि इसी प्रतीक्षा में ही हैं …..वो कुछ भी कर सकते हैं ।
बलराम कुछ नही बोले ।
आपको कौन लोग चाहिये ? महाराज उग्रसेन नें पूछा ।
पाँच लोग जो सेना के हैं ………..पाँच लोग जो आखेट के जानकार हैं ……….तीन लोग जो द्वारिका के विशिष्ठ लोगों में से आते हैं ….और दो लोग जो आम प्रजा से हैं …..बाकी मेरे यदुवंशी । ……महाराज ! प्रजा में विश्वास भरने के लिये मुझे ये सब करना पड़ रहा है ……..श्रीकृष्ण नें कहा ।
ठीक है ………उद्धव बोले तात ! मैं मन्त्री था मैने ही सारी व्यवस्था देख ली थी ……..इक्कीस लोगों के दल को लेकर अश्व में श्रीकृष्ण प्रातः ही चल पड़े थे मणि को खोज में ……………….
हे वासुदेव ! ये अश्व के पैरों चिन्ह ……..प्रसेन का अश्व यहीं से होकर गया था ……आखेट के जानकार श्रीकृष्ण को बता रहे थे ।
चलो …….इसी चिन्ह के पीछे पीछे चलो …………..
ऊपर नीचे, पहाड़ी में नदी नालों वनों को पार करता हुआ वो अश्व चला था …………सब उसी का पीछा करते हुये चले ……….
आखेट के जानकार यहां रुक गए थे ……….क्या हुआ ? श्रीकृष्ण भी अश्व से उतरे ………….
यहाँ अश्व भयभीत हो गया है ……………
क्यों ? श्रीकृष्ण नें पूछा ।
आगे गए …….तो अत्यन्त दुर्गन्ध से वातावरण दूषित था ……….पीताम्बरी श्रीकृष्ण को अपनी नासिका में रखनी पड़ी ।
ओह ! सिहं नें आक्रमण कर दिया अश्व पर ………….मृत पड़ा था अश्व …………..उसकी अस्थियाँ ही थीं बाकी चील कौए खा चुके थे ।
अश्व मारा गया पर प्रसेन ? श्रीकृष्ण सोच ही रहे थे कि ………
हे वासुदेव ! ये देखिये …………..कुछ लोग आगे चिल्लाये ।
तेज चाल से चलते हुये जब श्रीकृष्ण वहाँ पहुँचे तो ………
ओह ! तो प्रसेन को भी सिंह ने मार दिया …………
हाँ वो डर के कारण अश्व को छोड़कर भागा है ……..उसके भी यहाँ चिन्ह बनें हैं ………….किन्तु !
ओह !……..प्रसेन तो मारा गया ।
किन्तु स्यमन्तक कहाँ हैं ?
सिंह ही ले गया है उस मणि को ……………आखेट के जानकार बोले ।
हूँ ………कुछ विचार करके श्रीकृष्ण नें कहा ……….पाँच लोग जो सेना के हैं वो इस प्रसेन के शरीर को ले जाएँ और उसके भाई सत्राजित को देदें ….ताकि वो अंतिम संस्कारादी कर सके ।
जो आज्ञा वासुदेव !
पाँच लोग प्रसेन के मृत देह को लेकर लौट गए थे ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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