नटखट कान्हा और ‘हाऊ’ का भय. ..by Kusuma Giridhar
नटखट कान्हा को अपने बाल सखाओं के साथ खेलते खेलते घर से दूर चले जाने का बहुत चाव है। मैया यशोदा उन्हें दूर खोलने जाने के लिये मना करती रहतीं हैं,किंतु कान्हा सदैव दूर जाने को तत्पर रहते हैं। मैया बार बार समझातीं है-
“मेरे लाड़ले लला, तुम यदि एक क्षण के लिये भी मेरी आँखों से ओझल हो जाते हो तो मैं व्याकुल हो जातीं हूँ। इसलिये तुम सदैव मेरी आँखों के समक्ष ही रहा करो।”
किंतु नटखट कान्हा को मैया की यह राय स्वीकार नहीं। वह सिर हिला कर मैया की बात मानने से इंकार कर देते हैं। मैया पुन: मनुहार करती है-
“लला, तुम अपने बाल सखाओं को बुला कर भिन्न भिन्न प्रकार के खेल इसी आँगन में खेला करो। मैं भी तुम्हारी सुन्दर सुन्दर बाल क्रीड़ाओं को देखूँगी। मेरे लला, तुम्हें और तुम्हारे सखाओं को मधु,मेवा,पकवान,मिठाई और जो भी व्यंजन चाहिये तुम तुरन्त माँग लिया करना, किंतु मेरे मनमोहना तुम खेलो यहीं मेरे समक्ष इसी आँगन में।”
मैया यशोदा के लाख कहने पर भी जब कान्हा अपनी दूर खेलने जाने की हठ नहीं छोड़ते, तब मैया एक युक्ति निकालती है। वह कान्हा के सभी सखाओं को बुलाकर उनके साथ कुछ मंत्रणा करतीं हैं और कान्हा को दूर खेलने जाने से रोकने के लिये एक योजना बनाती है। कान्हा के बाल सखा मैया का साथ देने के लिये सहमत हो जाते हैं।
अगले दिन प्रात:काल जब कान्हा अपने सखाओं के साथ खेलने जाने के लिये तत्पर होते हैं,कब उन सखाओं में से एक कहता है-
“मित्र, आज घर के पास ही खेलेंगे, अधिक दूर नहीं जायेगें। घर की चौखट के बाहर या अंदर घर के आँगन में। देखो निकट ही कितना सुंदर मैदान है।”
किंतु कान्हा मित्र मंडली की बात नहीं मानते और दूर खेलने जाने की हठ पकड़ लेते हैं। बाल सखाओं के बार बार कहने पर भी वह अपनी हठ नहीं छोडतें। तब एक सखा कहता है-
“कान्हा, तुम दूर खेलने जाने की बात क्यों कर रहे हो? क्या तुम्हें मालूम नहीं यहाँ एक ‘हाऊ’ (हौआ) आया हुआ है, जो दूर खेलने जाने वाले बालकों को पकड़ कर ले जाता है। तुम तो नन्हें से हो, अभी ‘हाऊ’ को क्या जानो?”
इसी बीच एक दूसरा सखा बोल उठता है- “कान्हा, अभी अभी एक लड़का रोता हुआ यहाँ ले भागा हुआ गया है, संभवत ‘हाऊ’ उसे मिला है,उसने उसके कान भी उमेढ दिये हैं। चलो कान्हा, भाग कर घर के अंदर चलते हैं, आँगन में मैया के समक्ष ही खेलेंगे।”
अपने प्रिय सखाओं की इतनी बात सुन कर कान्हा बहुत बुरी तरह भयभीत हो गये और उन्होंने दौड़ कर बलराम जी का हाथ पकड़ लिया। वह ‘हाऊ’ के भय से थर थर काँपने लगे और मैया के पास जाने की शीघ्रता मचाने लगे। मैया ने भयभीत कान्हा को बलराम जी का हाथ पकड़ कर बाल सखाओं के साथ घर की ओर दौड़ कर आते देखा, को मन ही मन मुस्करा उठी। मैया की युक्ति काम कर गई।
भयभीत कान्हा दौड़ कर मैया से लिपट गये और काँपते हुये मैया से पूछने लगे- “मैया से ‘हाऊ’ कौन है? इसे किसने भेजा है? यह कहाँ से आया है? क्या करता है?”
मैया लला पर बलिहारी जाते हुये बोली- “लला, इसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता। मेरे लाल, तुम घर के आँगन में ही खेलो। दूर मत जाना, वहाँ बहुत सारे ‘हाऊ’ घूम रहे हैं।”
बलराम जी श्री कृष्ण को भय से थर थर काँपते और मैया से भोली बातें करते देख मन ही मन हँसने लगे-
“वाह ! अब आप ‘हाऊ’ से भी डरने लगे।उस समय ‘हाऊ’ से डर नहीं लगता जब सात पातालों के नीचे शेष शैया पर विराजते हैं। जब मत्स्यावतार लेकर प्रलय के जल में कूद पड़े, जब वाराहवतार में अपनी ढाडों पर पृथ्वी को उठा लिया तब ‘हाऊ’ नहीं दिखाई पड़े। जब इक्कीस बार धरा को क्षत्रियहीन कर दिया,दस मस्तक और बीस भुजा वाले रावण का अंत किया-तब ये ‘हाऊ’ कहाँ थे।
बलराम जी नटखट कान्हा की ‘हाऊ-लीला’ देख कर मन ही मन अति आन्नदित हो रहे हैं और प्रत्यक्ष में अपने छोटे भैया का कस कर हाथ पकड़े हुये उन्हें भयमुक्त भी कर रहे हैं। अपरम्पार प्रभु की इन मनमोहनी लीलाओं का तो क्या, किसी भी लीला का कोई पार नहीं पा सकता ,तभी तो वेदों में भी “नेति-नेति” कह कर इनका वर्णन किया है।
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877