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December 4, 2024 7:02 pm

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दादरा नगर हवेली एवं दमन-दीव क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रभारी श्री दुष्यन्त भाई पटेल एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री दीपेश टंडेल जी के नेतृत्व में संगठन पर्व संगठन कार्यक्रम दादरा नगर हवेली के कार्य पाठशाला का आयोजन किया गया.

श्रीकृष्णचरितामृतम् – !! श्रीकृष्ण की “कृष्णा” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 53 !! – भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम् – !! श्रीकृष्ण की “कृष्णा” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 53 !! – भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! श्रीकृष्ण की “कृष्णा” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 53 !!

भाग 2

विदुर जी को उद्धव श्रीकृष्णचरित सुनाते हुए आगे बोले – इस तरह सबको सांत्वना प्रेम स्नेह देकर अपने दारुक सारथी के साथ श्रीकृष्ण द्वारिका लौट आए थे ।


इस बार इन्द्रप्रस्थ में श्रीकृष्ण बहुत दिनों तक रुके , ये राजसूय यज्ञ से पूर्व ही जाकर जरासन्ध आदि का वध करवा कर …..यज्ञ की व्यवस्था भी स्वयं ने ही देखी थी , हाँ राजसूय यज्ञ के समय अपनी रुक्मणी आदि रानियों को , और वसुदेव देवकी माता पिता को भी यज्ञ में बुलवाया था श्रीकृष्ण ने , और यज्ञ के पूर्ण होने पर द्वारिका भिजवा दिया था , पर स्वयं रुके रहे , अपने प्रिय सखा अर्जुन के साथ , अपनी प्यारी सखी द्रोपदी के साथ , भीम युधिष्ठिर महाराज , नकुल सहदेव इन सबके साथ ।

आपकी तर्जनी कट गयी थी शिशुपाल का वध करते समय ?

द्वारिका में श्रीकृष्ण से आज रात्रि में उनकी तर्जनी देखते हुए ये प्रश्न किया था रुक्मणी ने ।

हाँ, शीघ्रता से सुदर्शन चक्र चलाते समय तर्जनी कट गयी थी , पर द्रोपदी ने उसी समय से मुझे अपना ऋणी बना लिया है रुक्मणी ! श्रीकृष्ण गम्भीर होकर बोले ।

हाँ, मैंने भी देखा था और मैं उस समय वस्त्र लेने के लिए भागी भी थी , रक्त बह रहा था आपकी तर्जनी से नाथ , रुक्मिणी ने कहा ।

हंसे श्रीकृष्ण , रुक्मणी ! इसलिए तो कह रहा हूँ कि उस पगली द्रोपदी ने मुझे अपना ऋणी बना लिया है । पता है रुक्मणी ! तुम तो मेरा रक्त न देख सकीं और वस्त्र लेने के लिए भागीं , पर द्रोपदी उस समय महारानी थी स्वर्ग के राजा इन्द्र की पत्नी शचि ने द्रोपदी के लिए विशेष साड़ी भिजवाई थी वही साड़ी पहन कर बैठी थी द्रोपदी किन्तु , मेरी तर्जनी का रक्त उससे भी देखा नही गया था और उसने वो साड़ी , स्वर्ग से आयी हुई वो दिव्य साड़ी मेरे लिए तुरन्त फाड़ कर मेरी तर्जनी में बांध दी थी । श्रीकृष्ण की बात सुनकर रुक्मणी ने सिर झुका लिया कुछ नही बोलीं ।

प्रिये ! मैं तुम्हें कुछ नही कह रहा , पर मैं सोच रहा हूँ उस रेशम के धागे का ऋण कैसे चुकाऊँगा ।

इतना बोलकर श्रीकृष्ण कहीं खो गए थे ।

शेष चरित्र कल

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