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November 21, 2024 9:04 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम् Part 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम् Part 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! आज – “मैया यशोदा के दर्शन कीजिये” !!


भाग 2

यशोदा मैया में ऐसी क्या विशेषता है ?

तो पहले दर्शन कीजिये…….आज केवल मैया के ही दर्शन करनें हैं …….इधर उधर मत देखना तात ! कन्हैया को आज मत खोजना…..केवल ध्यान करना मैया यशोदा का ।

आज कुछ जल्दी ही उठ गयीं हैं………कई दिनों से परेशान थीं ……चिन्तन करते करते ……..चिन्ता करनें लगीं थीं ………

इनका एक नाम है “नन्दगेहनी”….”आनन्दगेहनी”……. जो आनन्दित है …..सदैव आनन्द में ही रहता है ……आनन्द, जिसके घर की बात है ….वो आज चिन्ता कर उठीं……..कि – मेरा बालक मेरे घर माखन क्यों नही खाता ! गोपियों के यहाँ जाकर क्यों खाता है ?

जहाँ प्रेम होता है ……वहाँ चिन्ता होती ही है…….और जहाँ चिन्ता होती है ……मन भी वहीँ होता है……..उद्धव बोले ।

ओह ! अब समझीं मैं …….मेरे घर का माखन तो दास दासियाँ निकालती हैं……….पर गोपियाँ तो अपनें घर में बड़े प्रेम से स्वयं ही माखन निकालती हैं…….तो मेरे लाल को …….

बृजरानी समझ गयीं …….सब समझ गयीं ………..कि लाला के लिये अब स्वयं ही माखन निकालना होगा ।

इसलिये आज कुछ जल्दी ही उठ गयीं हैं ये ।

स्नान किया है …….श्रृंगार किया है …….इत्र फुलेल लगाया है ……वेणी बनाई है ……उसमें गजरा लगाया है …………

इतना श्रृंगार क्यों ? विदुर जी नें पूछा ।

ये श्रृंगार अपनें लिये नही ……….अपनें लाला के लिये ……..शरीर से सुगन्ध आये …….क्यों की लाला बैठेगा गोद में ………इत्र फुलेल इसीलिये लगाया है ।

बेणी बनाई ……….उसमें गजरा लगाया है ……..

इसलिये कि कन्हैया जब कुछ रोष प्रकट करता है तो सबसे पहले मैया की चोटी ही खींचता है……..चोटी में फूल लगे हों तो इसे और अच्छा लगता है……….

अपनें आपको आईने में देखती हैं………कुछ मोटी हो गयी हैं आज कल ……हो नही गयी हैं ……ये मोटी बनी हैं……..उद्धव बोले ।

क्यों ? विदुर जी नें पूछा ।

इसलिये कि……..लाला जब दौड़ता आएगा …….गले लगनें के लिये …..तब मेरी हड्डियाँ लाला को चुभें नहीं……..

नितम्ब बढ़ा किया है यशोदा मैया नें……..तात ! इसलिये कि …..मैया के पीछे गले में दोनों हाथ डालकर कन्हैया झूलता है…….उस समय लाल अपनें चरण कहाँ रखे ……तो नितम्ब बड़ा कर लिया ।

सज धज कर अब तैयार हो गयीं …………

बाहर आयीं …….तो देखा दास दासी सब लगे हैं ……….

सबसे पहले तो इन सब को हटाया ……और अन्य कामों में लगा दिया ……फिर माखन की मटकी में दही भरकर बैठ गयीं ……….

आराम से बैठीं हैं …….और रईं चलानें लगीं ।

अपनें हाथों से पद्मगन्धा नामक गाय का दूध ये बृजरानी स्वयं दुहति हैं ………उसी को रात में जमा देतीं…….उसी जमें हुए दही का ये अभी मन्थन कर रही हैं ।

रईं तेज चलानें के कारण अब बेणी में लगे फूल गिरनें लगे थे …….और गिर रहे थे नन्दरानी के चरणों में ……..

पता है तात ! पुष्प भी सोचनें लगे …….अहो ! ब्रह्म की माँ हैं ये …….हम इनके सिर में रहनें लायक कहाँ ?

रईं को तेज चलानें के कारण उनके हाथों में जो चूड़ियाँ थीं …..वो बजनें लगी थीं ………उससे मधुर मधुर ध्वनि वातावरण में फैलनें लगी ।

कृष्ण कृष्ण कृष्ण ! कृष्ण कृष्ण कृष्ण !

ऐसा मधुर मधुर स्वर में गान कर रही हैं यशोदा मैया………।

तात ! “कृष्ण” कहते ही मैया के हृदय से वात्सल्य फूट पड़ा था ……वक्ष से दूध की धार बह चली थी ………..पर मैया को सुध नही है कुछ भी …..वो बस लगातार रईं को चलाये जा रही हैं ।

बृजरानी की दोनों भुजाएँ कमलनाल के समान सुन्दर लग रही थीं …….

वो कभी मुस्कुरातीं तो कभी गम्भीर हो जाती थीं ………

मुस्कुराती तो तब थीं ……जब कन्हैया के बाल चापल्य लीलाओं का स्मरण करतीं ……..उस समय खो जातीं ……..दधि मन्थन करना भी भूल जातीं…….फिर जब देह भान होता ………तब गम्भीर हो, फिर रईं चलानें लगतीं ………..कहीं मेरा लाला जग न जाए ………और जगेगा तो माखन मागेगा …….जगते ही माखन चाहिये उसे …..इसलिये अब ये शीघ्र कर रही हैं…………परिश्रम ज्यादा हो गया …….स्थूल शरीर भी हैं इनका………इसलिये पसीनें बह रहे हैं ।🙏

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