श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जब कन्हैया नें क्रोध में मटकी फोड़ी…!!
भाग 2
कन्हैया अपनी मैया की गोद में बैठकर “स्नेह रस” का पान कर रहे हैं ।
पर तभी –
मैया नें एकाएक कन्हैया को धरती पर रख दिया और भागी रसोई की ओर…….उद्धव नें विदुर जी को कहा ।
पर क्यों ? विदुर जी नें पूछा ।
रसोई में दूध बैठाकर आईँ थीं बृजरानी…….और वो दूध उफ़न गया था …….इसलिये भागीं मैया……..उद्धव नें कहा ।
नही नही तात विदुर जी ! आप ऐसा मत सोचना कि …….कन्हैया से ज्यादा ममता मैया की दूध पर है ……नही ऐसा नही है ।
उद्धव रुके कुछ देर के लिये……..फिर बोले – तात ! प्रेम की गति बड़ी अटपटी है…….टेढ़ी मेढ़ी गैल है ये प्रेम की ।
तात ! कभी कभी प्रियतम की प्रिय वस्तु प्रियतम से भी ज्यादा प्यारी लगनें लगती है…….उसमें भी अगर “प्रिय” के खानें की वस्तु हो …….तब तो उसका प्रियतम से भी ज्यादा ध्यान सम्भाल किया जाता है ……..ये प्रेम का अनूठा प्रसंग है……..उद्धव नें कहा ।
तात ! ये सुरभि गाय का दूध था जो रसोई में आँच पर बृजरानी बिठाकर आईँ थीं…….मैया यशोदा का दूध पीनें के पश्चात्……..अगर किसी गाय का दूध कन्हैया पीते थे…..तो वो सुरभि गाय का दूध ही था……..मैया अगर न जातीं कन्हैया को छोड़कर तो वो दूध उफ़न गया था पूरा फैल जाता…..कन्हैया फिर किसका दूध पीते ? इसलिये कन्हैया के लिये ही कन्हैया को छोड़कर मैया गयीं रसोई में ।
पर – बालक ये सहन नही कर सकता…..बालक सब सह लेगा ….पर अपनी मैया का नजरअंदाज करना, ये उससे सहन नही होता ।
बस – कन्हैया अकेले धरती पर पड़े हैं……बृजरानी चली गयीं हैं दौड़ती हुयी दूध के पास, रसोई में ।
अब तो कन्हैया को क्रोध आया……और क्रोध भी बड़े जोर का आया …….लाल लाल नेत्र हो गए ….. अरुण अधर फड़कनें लगे उनके ।
नेत्रों में भी जल भर आये अब ………..भृकुटी टेढ़ी हो गयी ………
इधर उधर देखनें लगे ……………ये कैसे हो गया ? मैया नें मुझे कैसे पटक दिया और चली गयी दूध के पास ?
“दूध प्यारो है , पूत प्यारो नही है मैया कूँ”………..बस क्रोध और बढ़ा ये सोचकर ………..
इधर उधर दृष्टि घुमाए जा रहे हैं ………..तभी सामनें वही मटकी दीखी ……जिसमें से माखन अब निकलनें ही वाला था …..मैया, अभी मथानी जिसकी चला रही थीं ……….
बस – उसके पास गए कन्हैया ………….मटकी को हिलाया …..पर मटकी हिली नही ………बड़ी कोशिश की ……..कि मटकी को गिरा दिया जाय …और माखन फैला दिया जाए ……पर नही …..कुछ न हो सका ।
क्रोध से भरे हुए हैं कन्हैया ।
कन्हैया को भी क्रोध आता है ? विदुर जी नें सहजता में पूछा ।
उद्धव हँसे ……क्रोध से ही तो ये प्रलय करता है सृष्टी का ।
तात ! उसी समय सामनें एक लोढ़ी ( पत्थर का टुकड़ा ) दीखा ……वो बड़ा था …….कन्हैया उसे जैसे तैसे ले आये …….और ऊपर से मटकी में जोर से मार दिया ……….मटकी फूट गयी ……..माखन फ़ैल गया आँगन में ……………
मटकी फूटी ……..तो डर गए कन्हैया …………मैया की ओर , रसोई घर की ओर देखनें लगे ………..पूरा माखन फ़ैल गया था आँगन में ………
कन्हैया सोचनें लगे …….अब तो पीटेगी मैया !
तो करें क्या ?
उद्धव बोले …………रोनें लगे का कन्हैया …………सच में नही तात ! झूठे अश्रु लगाकर रोनें लगे ……………🙏
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