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November 22, 2024 3:03 am

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श्रीकृष्णचरितामृतम् : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम् : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! अहो ! जब “ब्रह्म” को पीटनें भागीं यशोदा !!

मैं वास्तु देवता !

…….नन्दमहल को पाकर मेरे भाग्य से देवता ही क्यों स्वयं विधाता भी ईर्ष्या करनें लगे हैं ।

उस दिन मैं था ………..मैने दर्शन किये उस लीला के ………..जब क्रोध में आकर नन्दनन्दन नें मटकी फोड़ दी थी ।

मैने सब देखा ……….मैं अपनें आपको बहुत भाग्य शाली मानता हूँ ……मानता नही …….”हूँ” ।

ब्रह्म , शिशु रूप में मेरे सामनें थे…………देवताओं की छोडो बड़े बड़े सिद्धात्मा भी इनकी एक छलक के लिए पागल हैं ……….कन्दराओं में , हिमालयों में हजारों वर्षों से तप कर रहे हैं…………पर ब्रह्म की अनुभूति उन्हें हुयी नही ……….मैं तो एक सामान्य वास्तु देवता हूँ ……मैं तो धन्य हो गया ……..मैं तो कृतकृत्य हो गया ……..मेरे सामनें नीलमणी दीखते हैं ………बाल चापल्य लीला करते हैं ……..और मैं उन्हें देखकर आनन्दित होता हूँ ……..अहो !

उस दिन वास्तु देवता नें ही कन्हैया के कान में कह दिया था ………

हे यशोदा के नीलमणी ! आपनें बहुत बड़ा अपराध कर दिया ……ये क्या किया ? अब झूठे आँसुओं से कुछ होनें वाला नही है ……..परदादी की मटकी थी ये ……….इस खानदान की सबसे पुरानी मटकी थी ये ………तुमनें तोड़ दी ।

डर गए कन्हैया ………..मैं वास्तुदेवता ………….उस रूप को देखकर मुझे बड़ा आनन्द आया ……काल जिससे डरता है ………..वो नन्दलाल आज यशोदा से डर रहा था ………रोना बन्द कर दिया ।

धरती में देखनें लगे कन्हैया …….मटकी फोड़ दी थी …….उसके टुकड़े चारों ओर बिखरे हुए थे ।

“अब तो मैया पीटेगी”………..आँखों में भय था ।

बचाव तो किया जाए……….पर कैसे ?

क्रमशः …

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