श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “जब ब्रह्म डरनें लगा”- वात्सल्य की एक झाँकी !!
मन में सोच रही हैं बृजरानी ………..तो क्या हुआ अगर ये नारायण है तो ! हो तो हो ……..मेरा पुत्र बनकर आया है तो उपद्रव का दण्ड इसे मिलेगा ही ………हाँ ये पक्का है ।
बृजरानी उठीं ………सामनें देखा, कन्हैया अंगूठा दिखा रहे हैं …….पर डरे हुए भी हैं ………कि जाना तो मैया के पास ही है ……….और जब जायेंगे तो पीटेगी ये …..और अच्छे से पीटेगी ।
बृजरानी बोलीं ………आजा ! आ मेरे पास आ ! लाला ! आ ।
ना ! तू मारेगी ………कन्हैया बोले ।
ना मारूँगी ! सच ! तू आ तो जा ……तेरी पूजा करूंगी …..आरती उतारूंगी …..आ ! आजा ! मैया आगे बढ़ रही हैं ये कहते हुए ।
पर तेरे हाथ में छड़ी है याकुं देख के मोय डर लगे ! कन्हैया बोले ।
लाला ! या छड़ी ते कहा डरनों…….ले ! मैने फेंक दियो …….
ऐसा कहते हुये बृजरानी नें अपनें हाथ की छड़ी फेंक दी ।
उद्धव प्रसन्नता में बोले ………तात ! जीव के हाथ में अहंकार रूपी छड़ी जब तक है ….तब तक परमात्मा कहाँ हाथ आवे ?
उद्धव ! क्या कन्हैया फिर हाथ में आये बृजरानी जु के ?
विदुर जी नें ये प्रश्न किया ।
नही ……..अभी भी भागनें में लगे हुए हैं ……………
भगवत्तत्व का बोध हुआ बृजरानी को ……..वो स्मृति आगयी …….ब्रह्माण्ड मुख में दीखा था ……वो स्मृति ।
“तुझे अपनें सतयुग के भक्तों की सौगन्ध है लाला ! “
मैया आवेश में बोलीं ।
सतयुग में तो मेरे बहुत भक्त हैं………..कन्हैया हँसे ।
तो फिर तुझे त्रेता युग के भक्तों की सौगन्ध है ……तू मेरे हाथ आजा ।
ना ! मैया ! त्रेता युग में भी मेरे भतेरे भक्त हैं……कन्हैया सहज ही रहे ।
द्वापर के समस्त भक्तन की सौगन्ध है तुझे ……….अब तो आजा !
मैया बोलीं, कसम देकर ।
पर कन्हैया नही आये ………कन्हैया नें सोचा द्वापर में भी मेरे बहुत भक्त हैं ।
“तुझे कलियुग के भक्तों की सौगन्ध है”……मैया के ये कहते ही , रुक गए कन्हैया……सजल नेत्र हो गए कन्हैया के…….
कलियुग में तो मेरे बहुत कम भक्त हैं……..भक्तों की संख्या कम है कलियुग में…….फिर उनकी सौगन्ध ? मैं कैसे टालूँ !
खड़े रहे कलियुग के भक्तों का स्मरण करते हुए कन्हैया …..आँखें बन्दकर ली थीं उस समय …………..
फिर उसी समय बृजरानी को………भगवतभाव की विस्मृति भी हो गयी ……सामनें पुत्र ही दीखा …..कोई भगवान नही ……बस ….वो दौड़ीं ………और धम्म् से जाकर पकड़ लिया…………
दो थप्पड़ पहले ही लगा दिए ………रो गए कन्हैया ।
करेगा ऊधम ? मचायेगा उपद्रव ?
कान पकड़ रही हैं ………गाल में थप्पड़ मार रही हैं…….क्रोध से भर गयी थीं बृजरानी आज……..चल ! बताउंगी मैं आज तुझे ।
गोपियां आगयीं नन्दालय के आँगन में……….कन्हैया को पीट रही हैं मैया यशोदा …………और हिलकियों से रो रहे हैं कन्हैया ………छड़ी दिखातीं हैं तो काँप जाते हैं एक अपराधी की तरह …………
मत मार ! बृजरानी ! “तेरो कठिन हियो री माई” ।
कैसा कठोर हृदय पाया है री बृजरानी ! मत मार अपनें लाला को …….
देख कितना कोमल है ये …..मत मार ! देख ! कैसे रो रहा है ……तुझे दया नही आरही ? बूढी गोपियाँ समझा रही हैं ।
हाँ नही आरही मुझे दया ! और तुम कौन होती हो ये बोलनें वाली …..कल तक तुम्ही आकर कहती थीं ना ……….कि तेरा लाला चोर है ….माखन चुराता है ………..फिर आज क्या होगया ? बोलो !
बृजरानी सच में आज बहुत क्रोधित हैं………..
कन्हैया बारबार कह रहे हैं ……..मत मार ! तू मुझे मत मार ! आँखों का काजल बह रहा है कपोलों में……….डर रहे हैं !
तात ! आँखें बन्द करो ……और इस झाँकी का ध्यान करो ………
ब्रह्मा से ये डरता नही है ………महाकाल इससे डरते हैं ………..पर ये एक सामान्य गोप पत्नी से डर रहा है !……..आहा ! कान पकड़े हैं ब्रह्म के इस नन्दगेहनी नें ………….नयन सभीत हैं इसके ।
उद्धव इतना बोलकर स्वयं ध्यान करनें लग गए थे ।
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