श्रीकृष्णचरितामृतम्
!!”दामोदर” – यानि बंधा हुआ ब्रह्म !!
भाग 1
-पर नन्दरानी मानती नही हैं । कन्हैया भय के कारण रोते जा रहे हैं …….. नन्दरानी का हृदय लगता है आज कुछ कठोर हो गया है ।
कन्हैया अपनें आपको छुडानें की कोशिश कर रहे हैं ………वो कभी आगे आते हैं मैया के………फिर पीछे की ओर चले जाते हैं ……..धरती में गिर जाते हैं ……….पर बृजरानी हाथ छोड़ नही रहीं ।
सच में तात ! आज बुरी बीती कन्हैया पर……सोचा न था कन्हैया नें कि मैया इतना गुस्सा करेगी……एक मटकी फोड़नें पर ।
“अब तो बाँधूंगी मैं तुझे”……….मैया गुस्से में बोलीं ।
ये सुनते ही कन्हैया और जोर से चीखे………पर आज बृजरानी पर कोई असर नही हो रहा रोनें का …..न चिल्लानें का ……..
हाथ पकड़ती हैं……..दूसरे हाथ से पास में रखी गाय को बाँधनें वाली रस्सी लेती हैं …….उस रस्सी से बाँधनें का प्रयास करती हैं ……..पर डोरी कम पड़ गयी ……..दो अंगुल कम पड़ी ।
बृजरानी फिर परेशान हो उठीं …….दूर एक रस्सी और पड़ी थी ……..वहाँ गयीं ……….एक हाथ से कन्हैया का हाथ पकड़ा है ………दूसरे हाथ से वहाँ पड़ी रस्सी उठाई ………फिर बाँधनें लगीं ……पर ये क्या ! रस्सी फिर दो अंगुल कम ।
उद्विग्न हो, चारों ओर देखा बृजरानी नें ………गोपियाँ खड़ी हैं ………हाथ जोड़ रही हैं ……….मत मारो लाला को …..मैया ! मत बाँधों लाला को ।
पर मैया आज इनकी बातों पर क्यों ध्यान देनें लगीं ।
दूर ऊखल है ……….बृजरानी नें तुरन्त विचार किया …….ऊखल से बाँधूंगी इसे ……और वहीँ पास में एक रस्सी भी दीखी बृजरानी को ।
कन्हैया का हाथ पकड़ कर वहाँ लेकर गयीं……….दाऊ वहाँ आगये थे ……..रस्सी के पास ही खड़े थे ………बस स्तब्ध हो – खड़े थे ।
कन्हैया नें अपनें दाऊ भैया को देखा……तो और जोर से रोनें लगे ।
दाऊ से ये सब देखा नही जा रहा……उनका कान्हा आज इतनें जोर से रो रहा है…….कन्हैया के रोनें की आवाज नें दाऊ का हृदय मानों विदीर्ण ही कर दिया था । वो रुदन सुननें की स्थिति में नही थे ।
दाऊ ! रस्सी दे ……..बृजरानी नें आदेश किया ।
दौड़ पड़े दाऊ ……चरणों में गिर गए मैया के ……….मैया ! छोड़ दे लाला को ……….मैया ! तू तो इतनी कठोर न थी ……..फिर आज क्या हो गया है तुझे ……..! एक मटकी ही तो फोड़ी है ……….नीलमणी को देख …….एक मटकी के लिये तू इसे बान्धना चाह रही है …….नही मैया ! मत बाँध इसे …….छोड़ दे मैया ! छोड़ दे ।
दाऊ के नेत्रों से अश्रु गिरनें लगे थे ……………
क्रमशः …
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