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November 21, 2024 1:30 pm

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 32 !! -“निभृत निकुञ्ज” – प्रेम के सर्वोच्च लोकभाग 1: Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 32 !! -“निभृत निकुञ्ज” – प्रेम के सर्वोच्च लोकभाग 1: Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 32 !!

“निभृत निकुञ्ज” – प्रेम के सर्वोच्च लोक
भाग 1

प्रेम के कुछ लोक हैं ……ये यन्त्रवत् हैं…..और सर्वोच्च हैं …..वैकुण्ठ लोक “शान्तलोक” है …..वो भगवान श्री नारायण का लोक है और भगवान नारायण का रूप शान्त है …इसलिये वैकुण्ठ “शान्त रस” के उपासकों का लोक है ……पर इस वैकुण्ठ में “दास्य रस” भी “शान्त रस” के साथ चलता है…..अपनें आपको दास मनाते हैं ….वैकुण्ठ के पार्षद …….और भगवान नारायण “शान्ताकारं” हैं …..इसलिये शान्त रस इस लोक की विशेषता है ।

इस वैकुण्ठ लोक के उत्तर दिशा की ओर …..”गोलोक’ है ……वहाँ की उपासना “वात्सल्य रस और सख्य रस” की है …..कृष्ण , मुरली मनोहर के रूप में वहाँ नित्य रहते हैं ……यशोदा, नन्द बाबा …..बलभद्र मनसुख मधुमंगल श्रीदामा इत्यादि सखा अपनें शाश्वत सखा श्रीकृष्ण के साथ खेलते हैं …….और नवीन नवीन लीलायें वहाँ होती रहती हैं ।

इस गोलोक से कुछ ऊँचाई पर ……..एक दिव्य “कुञ्ज” है …….जहाँ यमुना बहती हैं …..सखियाँ अपनी स्वामिनी श्रीराधा रानी को नित्य लाड लड़ाती हैं…और कुञ्ज लोक की स्वामिनी आल्हादिनी शक्ति हैं ।

इस कुञ्ज में रहनें का अधिकार मात्र सखियों को ही है ………यहाँ सखा या किसी भी पुरुष का वास सम्भव ही नही हैं ……

पर हाँ …इस “कुञ्ज लोक” में ….कृष्ण के सखाओं का आना जाना सम्भव है ……और गोलोक से ये सब आते जाते भी हैं …..जब जब कुछ विशेष लीला का सम्पादन श्याम सुन्दर को करना होता है तब ।

अब इस कुञ्ज लोक के ऊपर एक “निकुञ्ज” है ………..इस निकुञ्ज में पुरुष का प्रवेश वर्जित है ……….पुरुष यानि अहंकार ………..ये विशुद्ध प्रेम लोक है …….और विशुद्ध प्रेम में ……….अहंकार की तनिक भी सम्भावना नही है …………….

इस निकुञ्ज में कृष्ण सखाओं का भी प्रवेश नही है ……यह निकुञ्ज लोक अष्ट कमल दल के समान है …….इसके मध्य में दिव्य सिंहासन है ……जिसमें श्रीश्याम सुन्दर अपनी आल्हादिनी के साथ विराजते है …….सखियाँ कमल के एक एक दल की तरह आठ आठ हैं ……यानि आठ सखियाँ हैं ………मुख्य ……..वही इन युगलवर की सेवा में नित्य रहती हैं ………इनकी उपासना ….इनकी साधना यही है कि युगलवर प्रसन्न रहें ………इन्हें अपनें सुख की तनिक भी चिन्ता नही है ……इन्हें ये सुख भी नही चाहिये कि …श्याम सुन्दर हमें देखें …….इन्हें इतना सुख भी नही चाहिये कि ……श्याम सुन्दर हमें छूएं ……..इन्हें इतना सुख भी नही चाहिए कि हमारी स्वामिनी श्रीराधा रानी कभी हमसे भी बतिया लें …….नहीं……इन्हें केवल केवल यही चाहिए कि ……..हमारे ये दोनों युगल सरकार प्रसन्न रहें ……खुश रहें ……….और इनको खुश देखकर हमें अपनें आप ख़ुशी मिल जायेगी ।

इतनी उच्चतम स्थिति है इन सखियों की .।

अब इस “निकुञ्ज लोक” से भी ऊपर एक लोक और है………..”नित्य निकुञ्ज”………..इस “नित्य निकुञ्ज” में प्रेम से भरे ये दो दम्पति श्याम सुन्दर और उनकी आल्हादिनी ही विहार करते हैं ………सेवा के लिये निरन्तर सखियाँ तत्पर रहती हैं …….निकुञ्ज से भी ऊपर ये “नित्य निकुञ्ज” है इसकी विशेषता ये है कि ………इसमें “सुरत सुख” का दर्शन और “रति विपरीत” का दर्शन समस्त सखियों को होता है …..उस सुरत सुख का दर्शन कर ……….ये माती फिरती हैं …….प्रेम की मत्तता इनमें छायी रहती है ……ये उस सुख का दर्शन करती हैं ….जिसका दर्शन बड़े बड़े योगियों को तो दुर्लभ है ही ………नारदादि जैसे भक्तों की भी वहाँ तक गति नही है ……..वहाँ की देवता श्रीराधा रानी ही हैं …….और वहाँ के मुख्य पुजारी स्वयं श्याम सुन्दर है ……….जैसे उपासक कामना करता है …….भावना करता है ……अपनें इष्ट के प्रति मनोरथ करता है ….ऐसे ही इस नित्य निकुञ्ज में स्वयं उपासक बने श्याम सुन्दर और अपनी उपास्य श्रीराधा रानी के प्रति ऐसा दिव्य मनोरथ करते हैं !

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल ……

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