!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!
( नवमोध्याय:)
गतांक से आगे –
इन दिनों माँ शचि गंगा घाट जाने लगीं हैं …..
शचि देवि ! कैसे यहाँ गंगा में आकर बैठी रहती हो ?
तू भी ना , कुछ भी पूछती है …अकेला घर काटने को दौड़ता होगा ना ….बहु लक्ष्मी का भी देहान्त हो गया ….निमाई को कहाँ फुर्सत है कि वो अपनी माँ के साथ बैठकर उसका दुखड़ा सुने । अब तुम भी ज़्यादा मत बोलो ….निमाई क्या , कौन युवा लड़का अपनी माँ के पास बैठकर उसकी बात सुनता है क्या ? लड़के हैं …बाहर जायेंगे खेलेंगे अपना भविष्य बनायेंगे ….हम लोगों का क्या है …हम तो हर समय की दुखी ही हैं ।
शचि माँ आज गंगा घाट पर आकर क्या बैठीं …..महिलायें पास बैठ कर अपनी अपनी बात कहने लगीं । शचि ! दुखी मत हो निमाई के लिए दूसरी लड़की देख ले ….ये वृद्ध महिला थी …सब नवद्वीप की महिलायें इसका आदर करती थीं ….ये आकर माँ शचि के पास बैठ गयी थीं ….और इन्होंने माँ शचि को अपनी बात कह भी दी थी । पर शचि माँ कुछ नही बोलीं ….अपने सफेद साड़ी के पल्लू से अपने अश्रु ही पोंछती रहीं ।
देख शचि ! अपने हृदय की बात हमें बता ….ऐसे रोने से काम नही चलेगा , तू किसी को नही बतायेगी ना तो तो अस्वस्थ हो जायेगी ….बोल , बता दे । महिलाओं ने शचि माँ से आत्मीयता भरे शब्द बोले ।
लम्बी साँस ली शचि माँ ने …..फिर उन्होंने बताना प्रारम्भ किया ।
श्री ईश्वर पुरी नाम है उन सन्यासी महात्मा का ….वो दो चार दिन से मेरे घर में आरहे हैं ….और घर में आकर सीधे पूछते हैं ….माँ ! निमाई है ? दो बार तो मैंने झूठ बोल दिया ….नही है ….तो कहने लगे कि आए तो बोल देना ….ईश्वर पुरी आये थे ….वो समझ जायेंगे ।
शचि माँ इतना बोलकर चुप हो गयीं ……सारी महिलायें सुन रही थीं शचि माँ की बात…..पर इसके आगे जब माँ शचि ने कुछ नही बोला । तो ? सारी महिलाओं ने पूछा ।
तो क्या ! निमाई जब घर में आया तो मैंने उसे बता दिया ….कि कोई सन्यासी महात्मा आये थे …..बस , श्रीईश्वर पुरी जी ? मैंने कहा …हाँ ….तो वो उछलते कूदते भागा । मैंने उसे रोकना चाहा ….क्यों की भोजन का समय हो गया था …..पर उसे मेरी कहाँ चिन्ता ? शचि माँ फिर इतना बोलकर अश्रु बहाने लगीं ।
शचि ! पर हम ये समझ नही पाईं कि …एक सन्यासी महात्मा के प्रति निमाई अगर भाव भक्ति रखते हुए चला गया तो इसमें रोने की क्या बात है ? उस वृद्ध महिला ने समझाना चाहा ।
निमाई उस दिन अर्धरात्रि में आया ….मैं उसकी प्रतीक्षा करती रही ….बाहर जाकर अड़ोस पड़ोस में भी पूछ आई …पर कहीं उसका पता नही ….परेशान हो गयी थी इस तरह आधी रात जब बीती तब आता है निमाई ….और निमाई ऐसे आया था जैसे मदिरा पी ली हो उसने ।
हाय ! पण्डित निमाई ने मदिरा ? महिलायें जब “हाय-होय” करने लगीं …तो शचि माँ ने कहा …मेरा निमाई सपने में भी मदिरा आदि नही पी सकता ….पर उस समय उसकी चाल , उसके हाव भाव ऐसे थे कि जैसे मत्त मदिरा का पान करके वो आया हो ।
अच्छा , वो कहाँ गया था , और क्या करके आया था ?
उन्हीं सन्यासी के पास गया था …और उसके मुख से “कृष्ण कृष्ण” अपने आप प्रकट हो रहा था ।
मैंने उसे डाँटना चाहा पर वो तो मुझे बड़े प्रेम से अपने पास बिठाकर बोला ….माँ ! श्रीकृष्ण की लीला लिखी है श्रीमान ईश्वर पुरी जी ने ….श्रीकृष्ण लीलामृत ….आहा ! रस ही रस है उसमें …मैं भी पागल हूँ ना माँ ! रसराज में रस नही होगा तो फिर किसमें होगा ? श्रीकृष्ण तो रस सिन्धु हैं …रस सागर हैं …रसेंदु हूँ …रस शेखर हैं ….अरी मेरी माँ ! वो स्वयं रास हैं । रास । ये कहते हुए वो सोने के लिए चला गया । मैंने उसे कहा …निमाई कुछ खा ले …वो बिना उत्तर दिये जाकर सो गया ….पर सोने से पहले वो इतना अवश्य बोला था ….कल श्रीईश्वर पुरी जी भिक्षा के लिए आरहे हैं …माँ , तैयारी करना । माँ शचि इतना ही बोलीं और मौन हो गयीं ।
गंगा घाट की सभी महिलायें मौन ही रहीं ….कुछ देर बाद शचि माँ ने फिर बोलना प्रारम्भ किया ….श्रीकृष्ण लीलामृत नामका ग्रन्थ लिखा है उन सन्यासी महात्मा ने …मेरे निमाई को सुनाना है उन्हें ….दूसरे दिन भिक्षा में आये ….मेरे निमाई को नज़र लगायेंगे वो सन्यासी ….मुझे डर लगता है ……..माँ शचि ने कहा । हाँ , शचि ! तेरा बड़ा बेटा भी तो सन्यासी हो गया था ना ! वृद्ध महिला ने शचि माँ से कहा ।
हाँ , यही तो डर है मुझे …..मेरा इकलौता निमाई अगर सन्यासी हो गया तो मुझ बूढ़ी शचि की देख रेख कौन करेगा ? चलो , मेरा क्या है …मैं तो कुछेक वर्षों में मर जाऊँगी …पर निमाई का क्या होगा ? उसका तो जीवन बर्बाद ही हो गया ना ।
और सुनो , जब वो सन्यासी मेरे निमाई को देख रहे थे …मुझे तो लग रहा था पक्का ये निमाई को बाबा जी बनाकर ही रहेंगे । अरे हद्द तब हो गयी …जब भिक्षा न लेकर वो निमाई को ही देख रहे हैं ….ये भी कोई बात है ।
अब कहाँ है वो सन्यासी ?
निमाई कह रहा था …कि गया तीर्थ में चले गये हैं …मैं भी जाऊँगा वहाँ ।
ना , शचि ! जाने मत देना निमाई को ऐसे किसी भी सन्यासी के पीछे । पर ये शचि बेचारी भी कहाँ तक रोकेगी ….रोकती तो बहु है । ऐ शचि ! कोई लड़की देख ना ! नवद्वीप में कोई कमी थोड़े ही है लड़कियों की ….और अपना निमाई सुन्दर है विद्वान है …हंसमुख है …और क्या चाहिए ।
पर दूसरी शादी है ना ! एक महिला ने ये भी कह दिया । क्यों तेरे पति ने दो नही रखीं ? उसी महिला को पहली ने जबाब दे दिया था । और निमाई की पहली पत्नी तो स्वर्गवासी हो गयी ना ! निमाई कोई भोग-विलास के लिए तो दूसरी रख नही रहा …जो भी आएगी वही रहेगी । वृद्ध महिला ने स्पष्ट कह दिया था । तू देख शचि ! हमें बता दियो कौन सी तुझे अच्छी लगी …बिचौलिया हम भिजवा देंगे ….और निमाई के लिए कौन मना करेगा ?
तभी –
ये कौन है ? सुन्दर , अत्यन्त सुन्दर कन्या , सुवर्ण के समान गौर वर्ण …मृग के समान नयन …..वय कम ही थी पर काम पत्नी रति पूर्ण रूप से इन पर प्रसन्न थी …..गंगा स्नान करते हुए अपनी सखियों द्वारा जल छींटे जाने पर जो उसकी हंसी गूंज रही थी वो वातावरण को मधुरातिमधुर बना रही थी ।
ये कौन है ? माँ शचि उठ गयीं …उस कन्या का भी स्नान पूरा हो गया था ….गीली साड़ी में ही बाहर आई ….फिर अपने केशों को झटका …साड़ी पहनी ….साड़ी भी बड़े सलीके से बांधा था ।
जब चलने लगी ….तो ध्यान गया माँ शचि पर ….शचि देवि थोड़ा झेंप गयीं …उन्हें लगा कन्या को मैं घूरे जा रही थी इसे बुरा तो नही लगा । पर वो शचि देवि के पास आई ….और झुककर शचि देवि के चरण छूए …..क्या नाम है पुत्री ? शचि माँ ने पूछा । विष्णुप्रिया ….कन्या ने उत्तर दिया । किसकी पुत्री हो ? तुम्हारे माता पिता ? क्या नाम है तुम्हारे माता पिता का ?
“आपकी ही पुत्री है” ….पीछे से महामाया देवि आयीं थीं …ओह ! ये आपकी पुत्री है ? शचि माँ ने विष्णुप्रिया को अपने हृदय से लगा लिया ….और मन ही मन भगवान को मनाने लगीं यही मेरी बहु बने ….हे हरि ! मेरी इतनी सी प्रार्थना सुन लेना । शचि माँ बहुत प्रसन्न थीं आज ।
आप इतना क्यों सोच रहे हैं ….निमाई सुन्दर है …विद्वान है ….प्रेमी है …फिर क्या दिक्कत है अपनी विष्णुप्रिया को देने में ? रात्रि में मिश्र दम्पति चर्चा कर रहे हैं ….सनातन मिश्र जी बोले …मुझे कोई दिक्कत नही है …देवि ! निमाई हमारे दामाद बनेगे तो ये हमारे कुल का गौरव होगा …फिर क्या बात है ? महामाया देवि ने पूछा …निमाई का विवाह दूसरा है , इसलिये आप किन्तु परन्तु सोच रहे हैं । नही देवि ! निमाई जैसा जामाता मिले तो ये बात गौण हो जाती है ।
फिर आप क्या सोच रहे हैं ? हम किसके द्वारा ये बात शचि देवि तक पहुँचायें ! आप भी ना , सनातन मिश्र जी को महामाया देवि ने कहा ….हमारे पास पण्डित जी हैं ना….जो विवाह की बात शचि देवि के पास जाकर करेंगे । किन्तु निमाई ने मना कर दिया तो ? सनातन मिश्र अपनी पत्नी से बोले । आप भी ना , हमारी विष्णुप्रिया चन्दा की उजियारी है ….उसे निमाई मना नही कर सकते । सनातन मिश्र कुछ देर के लिए अब मौन हो गये थे ।
विष्णुप्रिया को आज नींद नही आरही …निमाई का मुखचन्द्र इसके हृदय में बार बार उभर रहा है । ये अकेले ही हंसते हुए जब अपने हृदय में हाथ रखती है ….तो उसकी धड़कनें तेज हो रही हैं …वो अनुभव करती है…..ये फिर करवट बदल लेती है …मेरे प्रियतम के नयन …प्रिया आँखें मूँद लेती है …मेरे प्राण के वो घुंघराले केश ….और हाँ …उन केश की एक लट जब उनके कपोल को छूती है तब ऐसा लगता है मानों कमल को भौंरे ने छू लिया ….ओह ! विष्णुप्रिया आज अपने में नही है ।
।। विष्णुप्रिया चाहे निमाई भालोवासा ।।
शेष कल –


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