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June 23, 2025 2:10 pm

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!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( उन्मद युगल नयन – “कहा कहौं नैननि की बात” ) : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( उन्मद युगल नयन – “कहा कहौं नैननि की बात” ) : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!

( उन्मद युगल नयन – “कहा कहौं नैननि की बात” )

गतांक से आगे –

क्या उच्च प्रेम की वो दशा होगी …भावना करो कि प्रेयसी का मुख अरविन्द सामने है …अत्यन्त निकट है …फिर भी प्रीतम को लग रहा है कि ये “प्रिया ही हैं” । मिले रहने पर भी ..लग रहा है कि “मिले कहाँ हैं” । महाप्रेम समुद्र में अवगाहन करने पर भी प्रेम की एक बूँद के लिए तरस है ।

ये प्रेम है , ये महाप्रेम है , ये उन्मद प्रेम की दशा है …इस दशा में प्यास बनी ही रहती है । निरंतर देखने के बाद भी …आँखें तरसती ही रहती हैं । ठीक ही तो है …मधुरातिमधुर वो रस , अगर तृप्त कर दे तो वो रस ही क्या हुआ ? ये उन्मद दशा प्रेम में ही सम्भव है । और प्रेम भी निकुँज का प्रेम । जो क्षण क्षण में बढ़ता ही जाता है । और नव नूतन बन प्रकट हो जाता है ।


          खंजन मीन मृगज मद मेटत , कहा कहौं नैंननि की बातैं ।
          सुनि सुंदरी !  कहाँ लौं सिखई , मोहन वशीकरण की घातैं ।।

           बंक निशंक चपल अनियारे , अरुण श्याम सित रचे कहाँ तैं ।
            डरत न  हरत परायौ सर्वसु, मृदु मधु मिव मादिक दृग पातैं ।।

           नैंक प्रसन्न दृष्टि पूरन करि , नहिं मो तन चितयौ प्रमदा तैं ।
            श्रीहरिवंश हंस कल गामिनी , भावै सो करहु प्रेम के नातैं। 73 ।

खंजन मीन मृगज मद मेटत ………

पागलबाबा ने गौरांगी के इस पद गायन पश्चात् नित्य की तरह ध्यान की गहराई बताई ….सब लोग ध्यान में डूब गये थे ।


                                       !! ध्यान !! 

सुन्दर हवा बह रही है ….हवा शीतल है ….यमुना का जल निर्मल है …इतना निर्मल है कि बालू के कण भी स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं । किनारे पर कमल खिले हैं …उनमें भँवरे गुनगुना रहे हैं । सुगन्ध पूरे वातावरण में फैल रही है ….लताओं की डाली पुष्पों के भार से झुकी हुई हैं …..मोर नृत्य कर रहे हैं ….पक्षियों का कलरव संगीत का अनुभव करा रहा है । इन्हीं के मध्य एक सुन्दर सा कुँज है ….उस कुँज में प्रिया प्रियतम विराजमान हैं ….शैया में विराजमान हैं । शैया सुमन की है । श्याम सुन्दर अभी अभी आये हैं और विराजे हैं । प्रिया जी ऐसे बैठीं हैं जैसे नवेली दुल्हन हों …हाँ , ये नवेली दुल्हन हैं , अनादि काल से है और अनादि काल तक रहेंगी नयी नवेली।

श्याम सुन्दर को प्रिया जी ने देखा ….प्रिया जी ने मन्द मुस्कुराकर एक बार दृष्टिपात किया ….बस फिर क्या था ! श्याम सुन्दर तो प्रिया जी के दृष्टि पात से ही प्रेमोन्मत्त हो गए थे । रस विवश की स्थिति हो गयी थी । श्याम सुन्दर प्रेम उन्मद हो अपनी प्रिया को अंक में भरने के लिए आगे बढ़े ..किन्तु अब प्रणय कोप करने लगीं श्रीराधा । नहीं, उन कमल नयनी ने अपने नयनों को कोपपूर्ण बनाया ….इसको देखकर श्याम सुन्दर शान्त हो गये और चुप होकर बैठ गये बेचारे । सामने हित सखी है ….उसकी ओर श्याम सुन्दर ने देखा तो हित सखी को दया आगयी । वो बहुत देर से देख रही थी श्याम सुन्दर को …अब तो श्यामसुन्दर को गुमसुम देख प्रिया जी को अनुकूल बनाने के पक्ष में ये लग गयीं हैं ।


क्यों नाराज़ हो सुन्दरी ! बताओ ना क्या हुआ ?

चरण चाँपती हुई हित सखी ने प्रिया जी से पूछा ।

वो मुझे छू रहे थे …प्रिया जी ने भी कह दिया ।

आपसे प्रेम करते हैं वो …..इसलिए तो आपको छू रहे थे …और ये तो साधारण सी बात है …पर आपके नयन जो अनीतिपूर्ण कार्य कर बैठे उसकी और आपका ध्यान नही । हित सखी ने कहा ।

प्रिया जी ! आपके नयनों के कारण ही तो …देखो ! आपके प्यारे दुखी हो गए हैं ।

सच में आपके नयन बड़े तीखे और घायल करने वाले हैं ….क्या कहूँ आपके नयनों के विषय में !

प्रिया जी ने हित सखी की ओर देखा ……मानौं कह रही हों …कहो ! क्या कहना है ?

चंचलता में खंजन पक्षी के समान हैं आपके नयन , तिरछे में मछली के समान हैं …और कजरारेपन में हिरणों के समान हैं …..समान नही इन सबका मान मर्दन करने वाले हैं आपके नयन । हित सखी फिर चरण दबाकर कर कहती है ….सच कहो ना ! मोहन को वश में करने की ये चालें आपको किसने सिखाईं ?

प्रिया जी हित सखी को देखकर फिर शान्त हो जाती हैं ।

ये कटार जैसे नुकीले हैं …कोई भी मर जाये । और ये लालन जू हैं …कोई भी डर जाये ….क्यों की प्रिया जी ! लाल रंग तो वीरता का प्रतीक होता है ना ? किन्तु आपके नयन तो कभी कभी सफेद भी लगते हैं …जब इनमें हास्य उतर आता है तब , इतनी विविधतायें आपके नेत्रों में कहाँ से आयीं ? हित सखी कहती है ….सर्वस हरण करने के बाद भी ये डरते नही हैं । क्यों ?

प्रिया जी ने ये सब सुनकर मौन धारण कर लिया …..हाँ , हित सखी की ओर देखा फिर ।

हये ! मादकता से भी भरे हुई हैं आपके नयन , मानौं मृदु और मधु दोनों के मिश्रण से जो तैयार होता है वो आपके नयनों में है । पूरी मधु आपके ही नयनों में उतर गयी है ….जो देखेगा वो तो उन्मद होकर , पता नही क्या होगा उसका । ये कहते हुए हित सखी ने जब अपना सिर पकड़ा …..तब तो प्रिया जी श्याम सुन्दर की ओर देखकर हंसीं ….श्याम सुन्दर के सारे दुःख दूर हो गये उसी क्षण ।

पर हित सखी भी कम नही है ….प्रिया जी को श्याम सुन्दर की ओर देखकर हंसने पर …वो बोल पड़ी …हाँ , मेरी ओर देखकर क्यों हंसोगी ! प्रीतम तो आपके वही हैं …ठीक है जो आपको अच्छा लगे आप वही करो । इतना कहकर हित सखी जैसे ही मौन हुई ….प्रिया जी ने तुरन्त हित सखी को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया …आनन्द के अश्रु बह चले हित के । बहुत देर तक वो अपना सिर प्रिया जी के चरणों में ही रखी रही थी ।


पागलबाबा ने कहा – ये प्रिया जी के नयन हैं …जिनमें सबके लिए कुछ न कुछ है ।

हम लोगों के लिए तो बस करुणा से भरे हैं ।

इसके बाद गौरांगी ने इसी पद का गायन किया ….अद्भुत गायन था इस पद का ।

खंजन मीन मृगज मद मेटत …..

शेष चर्चा कल –

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