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November 21, 2024 5:09 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! कुबेर के पुत्र जब वृक्ष बनें – यमलार्जुन !!भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! कुबेर के पुत्र जब वृक्ष बनें – यमलार्जुन !!भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! कुबेर के पुत्र जब वृक्ष बनें – यमलार्जुन !!

भाग 2

” महत्पुरुषों का श्राप भी मंगलकारी होता है “

नारद जी की बातों को प्रकृति भी सुन रही थी ……और आनन्दित थी ।

पर तभी मन्दाकिनी गंगा में स्नान करते हुए कुबेर के पुत्रों की ओर देवर्षि नारद जी की दृष्टि गयी ………मदिरा के कारण आँखें उनकी लाल हो गयीं थीं …..मत्त , उन्मत्त होकर वे सब नहा रहे थे ।

दया आई देवर्षि को …………कुबेर के पुत्रों की ये दुर्दशा ?

उनके ऊपर करुणा करनी थी इसलिये देवर्षि पास में ही गए ……….

क्या कर रहे हो ? मुस्कुराते हुए देवर्षि नें पूछा था ।

हँसे कुबेर के पुत्र ………….हम ? हम जो कर रहे हैं वो आपको बता नही सकते ! ये कहते हुए वो फिर हँसे ………और अप्सराओं के ऊपर जल का छींटा देनें लगे ……….।

हँसे तो अब देवर्षि…………..तुमनें मुझे प्रणाम नही किया ?

बड़ी सहजता में बोले थे ………”तुम्हे प्रणाम करना चाहिए था” ……..देवर्षि की सहजता देखते ही बन रही थी ।

कुबेर के पुत्र ठहाका लगानें लगे…….हम ? हम आपको प्रणाम करें ?

हम कुबेर के पुत्र हैं…….कुबेर ! धनाध्यक्ष कुबेर …….जानते हो ना ?

पर देवर्षि नें दूसरी ही बात कही …….क्या तुम्हे पता है जिन वृक्षों पर फल लगे होते हैं वो झुकते हैं ……..फलहीन वृक्ष, और गुणहीन व्यक्ति झुकता नही है ……………

हमें कौन सिखाएगा झुकना ? कुबेर के पुत्रों नें अहंकार में भरकर कहा ……..बताइये देवर्षि ! कौन सिखाएगा हमें ?

वृक्ष !

देवर्षि नारद जी के मुखारविन्द से निकला ।

क्या ? चौंक गए कुबेर के ये पुत्र ………….

हाँ …..तुम वृक्ष बनोगे ……जाओ ! फिर तुम उनसे सीखना कि झुकते कैसे हैं ? हँसते हुए नारद जी चल दिए आगे के लिये ।

तात ! सारा नशा उतार दिया था देवर्षि नें……….वो वस्त्र पहन कर भागे नारद जी के पास………और चरणों में साष्टांग गिर गए थे ।

देवर्षि ! क्षमा करें ! हमसे अपराध हो गया …….आगे से ऐसा नही होगा………कुबेर के पुत्र गिड़गिडाते रहे ।

क्या नही होगा ? देवर्षि मुस्कुरा रहे थे…………..देखो ! वृक्ष तो तुम्हे बनना ही पड़ेगा ………….ये बात अटल थी देवर्षि की ।

पर मैं एक बात कह देता हूँ ……..जो तुम्हारे जीवन को धन्य बना देगा ………..नारद जी आँखें मटकाते हुए बोले ।

क्या ? कुबेर के पुत्रों नें पूछा ।

यही कि …….तुम वृक्ष भी बनोगे तो नन्दालय के आँगन में खड़े वृक्ष ।

कन्हैया माखन खाते हुए अपनें हाथ का जूठन तुम्हारे में पोंछेंगे …………धन्य हो जाओगे तुम !

तुम्हारे आस पास ही रहेंगे कन्हैया……..तुम्हे अपनें गले से लगाएंगे …..तुम पर चढ़ेंगे…….तुमसे खेलेंगे …….आहा ! धन्य हो जाओगे ।

इतना कहते हुए देवर्षि आगे बढ़ गए थे ……………

कुबेर के पुत्रों को ये श्राप मिला था………उद्धव नें कहा ।

उद्धव ! ये श्राप कहाँ है ? ये तो वरदान है …….परम वरदान ।

इन कुबेर के पुत्रों की कोई गिनती है……..कि नन्द नन्दन के दर्शन भी कर लेते ये ………पर देवर्षि की कृपा से ………..आहा !

विदुर जी नें उद्धव से कहा ।

तात ! ऊखल में बंधे कन्हैया नें अब उन्हीं अर्जुन नामक दो जुड़वे वृक्षों को देखा था ………और मुस्कुराये थे ।🌹

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