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November 21, 2024 5:53 pm

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*श्रीकृष्णचरितामृतम्* -!! “यमलार्जुन उद्धार” – जब वृक्ष गिरे !! भाग 2 : Niru Ashra

*श्रीकृष्णचरितामृतम्* -!! “यमलार्जुन उद्धार” – जब वृक्ष गिरे !! भाग 2 : Niru Ashra

*श्रीकृष्णचरितामृतम्*
!! “यमलार्जुन उद्धार” – जब वृक्ष गिरे !!
भाग 2
हम हैं शापित  वृक्ष –  यमलार्जुन  ।

बाँध दिया था   उस परब्रह्म को  आज बृजरानी नें………वो कितना रोया था ……..अंजन  उसके  आँखों से बहकर कपोलों में फैल गया था ……वो लीलाधारी  सिसक रहा था …………
हम ये सब लीला देखकर आनन्दित थे ……….अति आनन्दित  ।
ऊखल से बाँध दिया था……….और  चली गयीं थीं  बृजरानी  रसोई घर में……….रोहिणी से,  बृजरानी को  ये कहते  सुना था हमनें …….कि …….कुछ देर बन्धनें दो इसे……अभी  छोड़ दूंगी  तो कहीं भाग जायेगा  ।
तात !      अब आगे सुनो …….कैसे   ये अर्जुन नामक वृक्ष गिरे  ।
उद्धव , विदुर जी को अब आगे की लीला सुनानें लगे थे  ।
दाऊ !  भैया !  भैया !  
  बृजरानी के जानें के बाद ,  रोते हुए   बड़ी जोर से चिल्लाये थे कन्हैया ।
पर दाऊ   वहाँ थे नही………बृजरानी नें भगा दिया था वहाँ से  ।
कुछ देर  दाऊ को पुकारनें के बाद  कन्हैया  चुप हो गए  …..पर सुबुक रहे थे  अभी भी   ।
हाँ  तोक सखा  आगया था ……..चुपके से उसनें  रस्सी खोलनी चाही ……..पर ये तो 4 वर्ष का है ….कन्हैया से भी एक वर्ष छोटा ……इससे वो रस्सी क्या खुलती  !     
कन्हैया नें  इधर उधर देखा ……गोपियाँ भी नही दीखीं ……….बृजरानी नें उन सबको भी आज भगा दिया था ………..।
तोक सखा  तोतली बोली में बोला –  मैं देखता हूँ …………वो गया ……..दो तीन अपनी आयु के बालकों को  ले आया ……….
इनसे क्या होगा  ?    कन्हैया  अब  थोडा हँसे ………..
ये ऊखल को गिरा देंगें……..तोक नें कहा  ।
“चलो गिराओ”……….कन्हैया  सहज ही बोले थे  ।
इन बालकों नें  खूब जोर लगाया…………परिणाम स्वरूप  वो ऊखल गिर गया ……जैसे ही ऊखल गिरा …….कन्हैया बड़े खुश हुये ………
और  ऊखल को खींचते हुए    ले चले  थे  ।
इतनें प्रसन्न थे अब ……रोना धोना सब खतम हो गया था…..ऊखल  पीछे पीछे  आरहा था ….आगे  कन्हैया उसे खींच रहे थे……..
पर  अब  रुक गया था…….कन्हैया पीछे मुड़े …..रुका कहाँ ?  ये कहीं अटका है …..पर कहाँ अटका  ?     पीछे मुड़कर देखा…….
तो –  अर्जुन नामक वो दो  वृक्ष जो थे….उनमें ही अटक गया था ऊखल ।
खींच के  झटक दिया  ऊखल को  कन्हैया नें  ।
क्षण भी न लगा होगा ………एक  भीषण आवाज आयी……..आवाज बड़ी भीषण  थी ……पूरे गोकुल गाँव में  ये आवाज गूँजी …….सब भयभीत हो उठे  थे  ।
पर यहाँ  तो   वो पुराना वृक्ष …….जड़ के सहित ही उखड़ गया था  ।
उखाड़ दिया था कन्हैया नें…….एक तीव्र झटका –  और  यमलार्जुन का उद्धार  कर दिया……….आँधी न आयी थी ……न तूफ़ान आया था …..ग्वाल बाल  समझ न पाये थे  कि  इतना बड़ा,   पुराना वृक्ष जड़ सहित  गिरा कैसे ?   
पर  –    हमारा  उद्धार हो गया था………हम अपनें स्वरूप में आगये थे ……..हम हाथ जोड़े  उन नन्दनन्दन के सामनें खड़े थे  ।
वो मुस्कुराये  –   कुबेर के पुत्रों नें कहा  –  आहा !   क्या रूप माधुरी थी  वो ……मुस्कुराता  मुखमण्डल …..घुँघराली अलकें ……श्याम वर्ण ….पीताम्बरी…..कटि में काँछनी….हमें देखकर वो मन्द मन्द मुस्कुरा रहे थे  ।
“जाओ  अब  अपनें यक्ष लोक”………कमलनयन कन्हाई के मधुर बोल गूंजे  हमारे कानों में……….
हमारा “बृजवास” छुड़ा रहे हो ?    हमनें  हाथ जोड़ कर कहा  ।
हाँ  तो  ?   जाओ  फिर विलासिता में जीयो …….फिर किसी साधू सन्त का अपराध करो…….व्यंग में भी कितना सुन्दर बोल रहे वे ।
पर  अब हम  विलासिता को त्याग रहे हैं……..भोगों के प्रति हमारी अब कोई रूचि नही है ।
………फिर मुक्त हो जाओ ?     बोलो – मुक्ति दूँ ?   नन्दनन्दन नें कहा  ।
नही ….नाथ !  मुक्ति नही ………..हमें तो  प्रेम दीजिये  …..हमें तो भक्ति दीजिये ……..नाथ !     दीजिये हमें  कि  –  हमारी वाणी मात्र आपके ही गुणों का गान करती रहे …….हमारे कान आपकी लीलाओ ं को ही  सुनते रहें ……… हाथ   आपकी सेवा में ही लगे रहें ……..और ये सिर !   ये सिर अब अहंकार में न उठे ………..ये अब झुके  ……..नाथ !  आपके चरणों में झुके ………निरन्तर , सदा सर्वदा ……….ये कहते हुए   कुबेर के   पुत्रों नें  नन्द नन्दन के चरणों में  अपना मस्तक रख दिया था  ।
तात !     भक्ति का वरदान प्राप्त करके  ये कुबेर  पुत्र  अपनें लोक में चले गए………उद्धव नें  विदुर जी को  ये कथा सुनाई  थी ।🙏

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