🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 विरही- गोपी- उध्धव छे- संवाद-१२🦚
🌹 भ्रमर -गीत🌹
🪷 गोपियों का व्यथा भाव 🪷
🙏 उपर से दो पेरे- बातका असर नहीं पडता गोपियों की व्यथा भाव
एक सुखी दुःखी-व्यथित हो दूसरी सखी से कह रही मथुरा गये श्याम के दर्शन बिना ऐसा लगता है कितना लम्बा समय हुआ। हम सब अत्यंत दु:खी हैं। अरे सखी रथ में जाते समय मेरे ऊपर नजर ऐसी कि मैं अपना होश खो बैठी। श्याम तो दूर हो गये, रथ चला गया।
🪷 दूसरी सखी गोपी उदास हो कहती है तुम सखी सही कहती हो श्याम के दर्शन बिना तरस गई है, अब यहाँ रहने का क्या मतलब ? यहाँ मन लगता ही नहीं, अब तो प्रभु तीन भुवन के स्वामी हो गये हैं। वहाँ सोने, हीरे-रत्नों के सिंहासन पर (बैठते) बिराजते होंगे। हम ग्वालों का ध्यान क्या होगा ? दौड़-दौड़ते क्या गौ चराने आवेंगे ? वहाँ तो सुंदर वस्त्रों को धारण करते होंगे, तो अब काली कमली क्यों ओढ़ेंगे सखी ?
🪷 तीसरी गोपी सखी निराशा भरे भाव में कहती है जाने दो ना सारी बातें ? जो श्याम अपने माँ-बाप को ही भूल गया है, सखी सुन हमारी क्या बिसात ? इतना कठोर हो गया कि एक चिट्ठी, संदेश तक नहीं ?
विशेषः
गोपियों को यह जानकारी खबर नहीं हैं कि उद्धवजी मथुरा से चिट्ठी-संदेश लेकर आ रहे हैं, किन्तु गोपियाँ विरह-ताप में अपनी मनोदशा व्यक्त कर रही हैं।”
*उसी समय एक सखी बोली ये तो अच्छा है चिट्ठी-संदेश खबर नहीं। कल राधा मिली थी, विरह ताप से शरीर सूख गया, देखते नहीं बनता। बिचारी दिन-रात चकोर की तरह चन्द्र निहार मथुरा रास्ते की तरफ श्याम की राह में बाट जोह ताकती रहती है, और रोती रहती है, हमने खूब समझाने की कोशिश की ज्यादा सांत्वना देने से और ज्यादा आंसू बहाती है। और श्याम के लिखे प्रेम-पत्रों को हाथ में ले आँसूओं से भीग गये हैं जो अब पढ़ भी नही पा रही है, और क्या कहूँ अब तो खानापीना छूट गया है, नींद भी नहीं ? कपड़ों का भान नहीं कपड़े बिना धोये ही पहने रहती है। समझाती हूँ तो कोई बात का असर नहीं पड़ता।🍁 *विरही गोपी-१३* 🍁 क्रिष्णा 🍁🍁🍁🍁🍁🍁

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