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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 47 !!
प्रेम की टेढ़ी मेढ़ी पगडंडी
भाग 1
दिया तो प्रियतम नें है ………..फिर दर्द कैसे हुआ …….नही ये तो समस्त दर्दों की दवा दी है …..प्यारे ! तुम्हारे द्वारा मुझे कभी भी दर्द मिल सकता है क्या ? उफ़ ! श्रीराधा रानी को वह जख़्म भी प्यारा लग रहा था ………इसलिये तो बराबर जख़्म को ताज़ा रखनें की जिद्द में थीं श्रीराधा रानी ।
क्या सुनाऊँ वज्रनाभ ! ये प्रेम की पगडंडी है…..बहुत टेढ़ी मेढ़ी है ।
कुछ देर तक कुछ बोल ही न सके महर्षि शाण्डिल्य ………
कुछ दिन बाद मिलना हुआ था श्याम और श्यामा का ।
उस दिन मोर कुटी में अकेली बैठीं थी…..श्याम सुन्दर चले गए थे …….
पीछे से जाकर आँखें बन्दकर दीं…………..
ओह ! आज समय मिला है बरसानें के लिये !
राधे ! तुम पहचान कैसे लेती हो ?
आँखों से अपनें हाथों को हटाते हुये …….वहीँ बगल में ही बैठ गए थे ।
हँसी श्रीराधा रानी ……….तुम जब चले थे नन्दगाँव से मुझे तभी पता चल गया था कि तुम आरहे हो ।
कोई गुप्तचर बैठा रखे हैं क्या ? श्याम नें हँसते हुए फिर पूछा ।
तुम नही समझोगे ! इतना ही बोलीं श्रीराधा और अपलक निहारनें लगीं अपनें “प्राण” को ।
हम अनाडी नही है …….हम भी समझते हैं …….बताओ तो !
श्याम जिद्दी हैं ………जिद्द करनें वाली कोई बात ही नही थी ।
छोडो ना ……..और बताओ ! कैसे हो तुम प्यारे !
श्याम सुन्दर के चेहरे को बड़े प्रेम से छूआ था ये कहते हुए ।
पर …….ये क्या है ? श्रीराधा रानी के हाथ में घाव ?
ओह ! हृदय द्रवित हो गया श्याम सुन्दर का ………..मेरी कोमलांगी श्रीजी के हाथों में ये जख़्म !
ये जख़्म कैसा ? ये कैसा घाव ? बताओ ना राधिके !
कैसी विचित्रता है ना ! कोई कोई दाता इतनें महान होते हैं कि बहुत कुछ देकर भी भूल जाते हैं …………इतना कहकर श्रीराधा उठीं और सामनें आ पहुँचे मोरों को दानें खिलानें लगीं ।
क्या बात है ! वाह ! हमारे दातापन का क्या प्रमाण दिया है आपनें ?
पर हमें सच में कुछ याद नही है ।
हाँ सच्चे दाता कहाँ याद रखते हैं ………..वो तो नकली दानी होते हैं जो एक रूपये भी दें तो दुनिया को बताते हुए चलते हैं ……श्रीराधा रानी मुस्कुराते हुए बोल रही थीं ।
तो क्या ये घाव मैने दिया है ? श्याम सुन्दर नें श्रीजी से ही पूछा ।
नही नही ……ये घाव कहाँ है प्यारे ! ये तो घाव में लगाये जाने वाला शीतल लेप है ………….श्रीराधा नें कहना जारी रखा ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल…🙏
💕 राधे राधे💕

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