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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 50 !!
“चौं रे लंगर ! एक झाँकी होरी की
भाग 2
फागुन की हवा में कुछ मत्तता होती ही है ……….युवा की क्या बात करें …..वृद्धों में भी यौवन छलकता हुआ दिखाई देता है ……समस्त प्रकृति ही एक नवीन चेतना, नया उमंग, नई स्फूर्ति का उन्मुक्त – वितरण करनें लग जाती है…….और फिर होरी ? ओह ! ये होरी तो बृजवासियों का निजी त्यौहार है ……सर्वाधिक प्रिय महामहोत्सव है ।
आज जिधर देखिये काजल लगाये, ललाट और कपोल पर चन्दन से चित्रित किये, अटपटे वस्त्रों से सुसज्जित …….पान चबाते हुए , गारी गाते हुये………गलबैंया दिए ग्वाल बालों की टोली मस्तानी अदा से घूम रहे हैं ।
कहीं दूर बरसानें की पहाड़ियों में कोई बृजवासन मधुर कण्ठ से होरी गा रही है………कहीं परस्पर मीठी नोक झोंक हो रही है ।
बरसानें में मीठी छेड़छाड़ – ऊधम – हाँसी”
जिधर देखो उधर ही चल रही है ।
अरी बहू ! तू कहाँ जा रही है ? देख ! आज होरी है ………आज हमारे बरसानें की होरी है ………इसलिये तू मत निकले ।
सासू नें अपनी उसी नवोढ़ा बहू को समझाया ।
माँ ! कुछ नही होगा मुझे …………मुझे बरसानें में सब जानते हैं मैं बहुत मर्यादित हूँ …….मेरी ओर इस बरसानें का कोई ग्वाला भी देखनें की हिम्मत नही करता ……डरता है ……..बहू बोलती गयी ।
पर वो नन्द का लाला ? सासू जानती है कि ये नन्दगाँव वाले कितना ऊधम मचाते हैं…….पिछली साल का पता है ……..पर इस नई बहू को नही पता……न ये माननें वाली थी……तो इस ऊधम भरे होरी के माहौल में, वो मना करने पर भी घर से निकली यमुना जल भरनें ।
अरे ! ये कौन है ऊधमी ! टक्कर मार के चलो गयो ।
गुस्सा तो बहुत आया ……..पर कोई बात नही ………उलझनें से लाभ भी नही था ……..बहू आगे बढ़ती गयी …………
भाभी ! देवर ते घूँघट कैसो ?
बड़ी मीठी आवाज थी ………..मिश्री से भी मीठी ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल…🙏
🦜 राधे राधे🦜
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