!! राधा बाग में – श्रीहित चौरासी !!
( रसिक अनन्य श्याम – “कौन चतुर जुवती प्रिया” )
गतांक से आगे –
हे कृष्ण ! तुम पूर्ण प्रेमी नही हो सकते ..क्यों की पूर्ण प्रेमी के लिए “अनन्य” होना आवश्यक है ।
रास लीला के मध्य में श्रीकृष्ण अन्तर्ध्यान हो गये थे …गोपी गीत सुनाकर इन्हें प्रकट किया गोपियों ने…बहुत बातें हुईं …दोनों के मध्य शास्त्रार्थ भी हुए. ..हार गये श्रीकृष्ण …वो बोले …सच्ची प्रेमिन तो तुम लोग हो …प्रेम क्या है ये तुमने ही जाना है ।
“तुम प्रेम में पूर्णता पा भी नही सकते” …दो टूक कह दिया था गोपियों ने ।
सिर झुका लिया श्रीकृष्ण ने …तो गोपियाँ बोलीं …प्रेम के लिए अनन्य होना आवश्यक है …बिना अनन्यता के कोई प्रेमी बन ही नही सकता …बन तो सकता है किन्तु अपूर्ण ही रहेगा ।
श्रीकृष्ण क्या बोलते …वो चुप रहे …क्यों की बात सही थी गोपियों की ।
हम हैं प्रेमिन …हमने प्रेम के लिए सब कुछ त्याग दिया है …सब कुछ । हमारे जीवन में सिर्फ तुम हो …पर तुम्हारे जीवन में ? नाना भक्त हैं ….सबकी तुम्हें सुननी पड़ती है ….क्यों की तुम ईश्वर हो । हम लाख कहें तुमसे ….कि हम सिर्फ तुम्हारी है ….पर तुम नही कह सकते कि ….हम भी सिर्फ तुम्हारे हैं ।
हाँ रसिक हो तुम , तुम भ्रमर हो ….पर भ्रमर होना कोई बड़ी बात नही है ….जहाँ फूलों का पराग देखा वहीं बैठ गये …पी लिया रस …फिर उड़ चले । भक्तों का हृदय कमल है उसमें प्रेम का पराग देखा तो वहीं रुक गये ….फिर दूसरा भक्त ….अनन्त भक्त हैं सृष्टि में तुम्हारे …देखो कृष्ण ! बड़ी बात है अनन्य होना । प्रेम राज्य में आदर भ्रमर का नही होता …मछली का होता है चातक का होता है ….क्यों की ये अनन्य हैं ।
गोपियाँ बोलती जा रही थीं ,श्रीकृष्ण बैठ गये …हाथ जोड़ लिये और कहा ..मुझे अनन्य बनना है ।
“इसके लिए तो ईश्वरत्व से मुक्ति पानी होगी”….आगे आकर ललिता सखी ने कहा ।
हाँ , मुझे ईश्वरत्व से ही मुक्ति चाहिये …और तभी ललिता सखी ने श्रीराधा रानी के चरणों में लगी महावर अपनी उँगली में ली और श्याम सुन्दर के मस्तक में लगा दिया …बस ये तभी से मुक्त हो गये ईश्वरत्व से …ये निकुँज के श्याम सुन्दर …रसिक तो थे ही अब अनन्य भी हो गये ।
अब ये श्रीराधा रानी के सिवाय किसी को नही देखते …उन्हीं के रस में मत्त रहते हैं …उन्हीं में मत्त रहते हैं …तो ये विरोधाभास रसिक और अनन्य …ये सिर्फ श्याम सुन्दर में हैं , अवतारी कृष्ण में नहीं …निकुँज विलासी श्याम सुन्दर में ।
आज वर्षा हुई …अच्छी वर्षा हुई ….राधा बाग के वृक्ष लतायें ये भी नहा धोकर श्रीहित चौरासी जी के इस उत्सव के लिए तैयार हो गये ….रज की भीनी भीनी सुगन्ध आरही थी …जो वातावरण को मन मोहक बना रही थी । गुलाब के फूल आज मथुरा से किसी ने भेजें हैं …..ढेर है ….किसने भेजे ये पता नही ….बस एक गाड़ी आई और फूलों से भरी चार बोरी डाल गयी ।
पागल बाबा बाग में ही हैं आज ….वो श्रीजी मन्दिर भी नही गये …ध्यान में थे ….जब गौरांगी और शाश्वत फूलों के विषय में आपस में बातें कर रहे थे तो बाबा बोले …फूल आगये ? अब इनको चारों ओर सजा दो ….वृक्षों की क्वाँरी बना दो …और रंगोली भी ।
गौरांगी ने वही किया ……शाश्वत ने भी साथ दिया ….मैं तो बाबा के साथ ध्यान में ही था …..हाँ सजाते हुए देखने वाले दर्शक राधा बाग के मोर पक्षी आदि ही मात्र थे ।
लोग आये समय हो गया था …..सब आकर बैठ गये …..यहाँ कोई सट कर नही बैठता ….जिसको जहां रुचिकर लगे ….कोई कदम्ब के नीचे तो कोई तमाल के ….कोई मोरछली के नीचे तो कोई पारिजात के । सब उच्च स्थिति के हैं …..इस रस के जानकार है ।
बाबा को बाँसुरी अच्छी लगती है ….वो कल बोले भी थे …वीणा और सारंगी दोनों तार के वाद्य हो गये …एक बाँसुरी होती तो ! बस बाबा का कहना था कल …तो आज एक लड़का आगया …सुन्दर छोटी आयु का था …केश घुंघराले …शान्त गम्भीर । मैं बाँसुरी बजाऊँगा …बाबा को प्रणाम करते हुए वो बैठ गया और सारंगी वाले से कहने लगा …बाँसुरी निकाली …बाबा की ओर देखकर मैं मुस्कुराया … बाबा भी मुस्कुराये ….”श्रीजी सब व्यवस्था कर देती हैं” ..गौरांगी बोली …और श्रीहित चौरासी जी का गायन प्रारम्भ हो गया । आज तो चौरासी जी के गायन के समय मन्द मन्द वर्षा भी होने लगी थी …..वो बड़ा सुखद लग रहा था…और दिव्य लग रहा था ।
कौन चतुर जुवती प्रिया, जाहि मिलत लाल चोर ह्वै रैंन ।
दुरवत क्यों अब दूरैं सुनी प्यारे , रंग में गहले चैंन में नैंन ।।
उर नख चंद विराने पट , अटपटे से बैंन ।
श्री हित हरिवंश रसिक , राधा पति प्रमथित मैंन ।6।
श्रीहित चौरासी जी के छटे पद का गायन था आज …गायन हुआ …सबने वाणी जी बन्द करके रख दी …बाबा अब इसी पद का ध्यान करायेंगे …सबने नेत्र बन्द कर लिये हैं ।
!! ध्यान !!
लता मन्दिर अद्भुत है ….उसमें माधवी के जो पुष्प लगे हैं उसकी सुगन्ध वातावरण में फैल रही है ….अभी सूर्य उदित नही हुए हैं ….निकुँज के सूर्य और चन्द्रमा भी यही हैं …भू पर उदित होने वाले सूर्य यहाँ के नही है …ये दिव्य धाम है …यहाँ सब दिव्य और चिन्मय है …तो सूर्य अभी उदित नही हुये हैं …जब तक सखियाँ नही चाहेंगी यहाँ कुछ नही होगा …और सखियाँ भी तब चाहेंगी जब ये युगल चाहेंगे । दिव्य अद्भुत । सखियों ने लता मन्दिर के भीतर युगल को देखा …लता रंध्रों से देखा ….रति सुख के चिन्ह इनके अंग पर देख ये सब आनन्द विभोर हो गयीं थीं …पर भ्रमरों ने गान किया तो सखियों ने भी उनके गान में साथ दिया …सखियों को गाता श्याम सुन्दर ने देख लिया उस रंध्र से …जहां से सखियाँ निहार रही थीं …मुस्कुराते हुये श्याम सुन्दर उस लता मन्दिर से बाहर आगये …किन्तु श्रीजी नही आईं ….वो रात्रि के सुरत सुख का चिन्तन करते हुए मत्त थीं ….तुरन्त ललिता सखी लता मन्दिर में गयीं और श्रीराधा जू को सम्भाल लिया ।
किन्तु हित सखी श्याम सुन्दर के पीछे चली गयी…आज ये श्याम सुन्दर को छेड़ना चाहती है ….श्याम सुन्दर में अभी भी वही मत्तता है …वो झूमते हुये चल रहे हैं …..उनके अंग में जो नीलांबर है वो अवनी पर गिर रहा है …..उनके गले की माला उनके कानों के कुण्डल में उलझ कर उसके फूल नीचे झर रहे हैं …उनका वो नीला श्रीअंग ….जिसमें से सुगन्ध प्रकट हो रही है ….पर इनके अंग की सुगन्ध नही है …..इनके अंग से प्रिया जू के अंग की सुगन्ध आरही है ।
अब वो पीछे आने वाली हित सखी श्याम सुन्दर को छेड़ती है ……..
सुनो ! सुनो लालन !
एक सखी दौड़ती हुई श्याम सुन्दर के पास आती है ..वो मुस्कुरा रही है उसकी मुस्कुराहट में व्यंग है …कुछ कटाक्ष है ..रहस्य से भरी मुस्कान देखकर श्याम सुन्दर भी रुक जाते हैं ।
सखी पास में आती है ..श्याम सुन्दर उसे देख रहे हैं ..नयनों के संकेत से ही पूछते हैं ..क्या बात है ?
तब सखी नयनों को मटकाते हुए कहती है – लाल ! कौन है वो ?
कौन ? श्याम सुन्दर उसी से प्रतिप्रश्न करते हैं ।
अब छुपाओ मत ….कौन है वो चतुर प्रेयसी जिससे तुम रात में चोरी चोरी मिलते हो ?
ये सुनते ही श्याम सुन्दर कुछ शरमा गये ….उन्होंने अपना सिर थोड़ा झुका लिया ।
नही , बड़े भोलेपन से उन्होंने अपना सिर हिलाया ।
फिर ये आँखिन की रँगाई ? प्यारे ! आँखें सब बोल देती हैं ….तुम्हारी ये आँखें जो लाल हो रही हैं …ये इस बात का सूचक हैं कि किसी सुन्दर युवती ने तुम्हारे आँखों को रंग दिया है । वो सुख , वो आनन्द जो तुमने लूटा है वो तुम्हारी आँखों में सब दीख रहा है …..श्याम सुन्दर सखी की बात सुनकर फिर शरमा गये । सखी कुछ नही बोली तो श्याम सुन्दर ने कहा …कमल पराग का कण उड़कर मेरी आँखों में चला गया था …मैं मलने लगा तो लाल हो गया होगा ।
सखी हंसते हुए बोली ….फिर ये चित्र आपके वक्षस्थल में किसने उकेरे ? और ऐसा दिव्य लग रहा है ……जैसे अर्ध चन्द्रमा को आकाश में ही उकेर दिया हो । श्याम सुन्दर तुरन्त अपने आपको श्रीजी की नीलाम्बरी से छुपाने लगते हैं …तो आगे बढ़कर सखी फिर हटा देती है नीलाम्बरी को …और श्याम सुन्दर के वक्षस्थल को ध्यान से देखती हुई कहती है ….आहा ! किसी चतुर नायिका ने अपने नख से ये चित्र उकेरा है ….सच में तुम रसिक हो तो वो भी कोई परम रसिकनी ही होगी ….ऐ ! बताओ ना कौन है वो ? सखी फिर छेड़ती है । पर श्याम सुन्दर अब बोल नही पाते …उन्हें रात्रि के विलास का स्मरण हो आया है ..वो उसी रति केलि का स्मरण कर मौन हो गये हैं ।
बलैयाँ लेती है हित सखी …कहती है …मैं अब ज़्यादा आपको परेशान नही करूँगी …हे मेरे राधा पति ! हे रसिक ! तुम ही हो जो राधा के पति हो तो अनन्य हो …रस के पियासे हो तो रसिक हो …..तुम काम देव से मथे गये हो …अच्छे से मथे गये हो । हे राधा पति ! इसलिये मेरे सामने तुम बोलने में असमर्थ हो । इतना कहकर मुस्कुराते हुए वो हित सखी वहाँ से अपनी श्रीराधा रानी के पास चली जाती है ।
आहा !
। साँची कहौ इन नैनन रंग की , दीन्ही कहाँ तुम लाल रँगाई ।
जय जय श्री राधे ! जय जय श्री राधे ! जय जय श्रीराधे !
पागल बाबा रसोन्मत्त हो गये …
गौरांगी ने फिर इसी चौरासी जी के छटे पद का गायन किया ।
कौन चतुर जुवती प्रिया , जाहि मिलत लाल चोर ह्वै रैन……..
आगे की चर्चा अब कल –
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