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May 9, 2025 7:29 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! नन्दीश्वर पर्वत !! भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! नन्दीश्वर पर्वत !! भाग 1 : Niru Ashra

!! नन्दीश्वर पर्वत !!

भाग 1

गिरिराज गोवर्धन को दाहिनी ओर करके बृषभान जी के साथ बृजराज श्री नन्द जी , नन्दीश्वर पर्वत की ओर चल दिए थे ………

और पीछे पीछे सारे गोप ग्वाल, गोपी , गौएँ सब ।

क्या दिव्य शोभा थी गिरिराज की ………

अपलक नयनों से कन्हैया गोवर्धन के शिखर को देखते चल रहे थे ।

ये पर्वत भगवान नारायण का स्वरूप है…….महर्षि शाण्डिल्य नें बृजराज को बताया …….ये सुनकर बृजराज की श्रद्धा गिरी गोवर्धन के प्रति ओर बढ़ गयी , और बड़े प्रेम से हाथ जोड़कर प्रणाम किया था बृजराज नें ।

तीनों देव यहीं वृन्दावन में ही वास करते हैं ……..महर्षि प्रसन्नचित्त से ये बात कहते हुए चल रहे थे ।

कैसे भगवन् ! बृजराज नें प्रश्न भी किया ।

बृषभान जी भी बड़ी श्रद्धा से सुन रहे हैं महर्षि की बातें ।

गोवर्धन पर्वत ये नारायण स्वरूप हैं…….और जहाँ बृषभान जी रहते हैं ….जिस पर्वत की तलहटी में ये रहते हैं …….इनका महल है …..उस पर्वत का नाम है “ब्रह्माचल पर्वत” …..वो ब्रह्मा जी का स्वरूप है ।

और नन्दीश्वर पर्वत जो इनके बरसाना के पास ही है ……..वो भगवान शंकर का स्वरूप है ।

महर्षि ! मैं चाहता हूँ कि उसी नन्दीश्वर पर्वत की तलहटी में बृजराज अपना महल बनावें …..और उसके आस पास की जितनी भूमि है …..और मित्र बृजराज को जितना चाहिये – मै दूँगा ………महर्षि को ये बात हाथ जोड़कर विनम्रता पूर्वक बृषभान जी बोले थे ।

“आप जैसा उचित समझें” ……….बृजराज मुस्कुराते हुए बोले ।

बैल गाड़ियां चल ही रही थीं …..रथ अपनी गति से दौड़ ही रहे थे ।

गौएँ आनन्दित, और स्वतंत्रता अनुभव कर रही थीं ।


भगवान शंकर अति आनन्दित हैं…….और क्यों न हों स्वयं परब्रह्म श्रीकृष्ण चन्द्र उनके यहाँ रहनें के लिये पधारे थे ।

शनिदेव तो इसी दिन की प्रतीक्षा में ही थे ……….कि कब हमारे यहाँ श्रीकृष्ण चन्द्र जु पधारेंगे …….और आज वो सुदिन आही गया था ।

मणिमाणिक्य सब प्रकट कर दिए थे शनिदेव नें ।

यक्ष लोक में कुबेर के पुत्रों नें जाकर श्रीकृष्ण के बारे में सब बताया था ……”जीवन का लक्ष्य मात्र श्रीकृष्ण प्रेम ही हो सकता है”…………

*क्रमशः ….

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! नन्दीश्वर पर्वत !!

भाग 1

गिरिराज गोवर्धन को दाहिनी ओर करके बृषभान जी के साथ बृजराज श्री नन्द जी , नन्दीश्वर पर्वत की ओर चल दिए थे ………

और पीछे पीछे सारे गोप ग्वाल, गोपी , गौएँ सब ।

क्या दिव्य शोभा थी गिरिराज की ………

अपलक नयनों से कन्हैया गोवर्धन के शिखर को देखते चल रहे थे ।

ये पर्वत भगवान नारायण का स्वरूप है…….महर्षि शाण्डिल्य नें बृजराज को बताया …….ये सुनकर बृजराज की श्रद्धा गिरी गोवर्धन के प्रति ओर बढ़ गयी , और बड़े प्रेम से हाथ जोड़कर प्रणाम किया था बृजराज नें ।

तीनों देव यहीं वृन्दावन में ही वास करते हैं ……..महर्षि प्रसन्नचित्त से ये बात कहते हुए चल रहे थे ।

कैसे भगवन् ! बृजराज नें प्रश्न भी किया ।

बृषभान जी भी बड़ी श्रद्धा से सुन रहे हैं महर्षि की बातें ।

गोवर्धन पर्वत ये नारायण स्वरूप हैं…….और जहाँ बृषभान जी रहते हैं ….जिस पर्वत की तलहटी में ये रहते हैं …….इनका महल है …..उस पर्वत का नाम है “ब्रह्माचल पर्वत” …..वो ब्रह्मा जी का स्वरूप है ।

और नन्दीश्वर पर्वत जो इनके बरसाना के पास ही है ……..वो भगवान शंकर का स्वरूप है ।

महर्षि ! मैं चाहता हूँ कि उसी नन्दीश्वर पर्वत की तलहटी में बृजराज अपना महल बनावें …..और उसके आस पास की जितनी भूमि है …..और मित्र बृजराज को जितना चाहिये – मै दूँगा ………महर्षि को ये बात हाथ जोड़कर विनम्रता पूर्वक बृषभान जी बोले थे ।

“आप जैसा उचित समझें” ……….बृजराज मुस्कुराते हुए बोले ।

बैल गाड़ियां चल ही रही थीं …..रथ अपनी गति से दौड़ ही रहे थे ।

गौएँ आनन्दित, और स्वतंत्रता अनुभव कर रही थीं ।


भगवान शंकर अति आनन्दित हैं…….और क्यों न हों स्वयं परब्रह्म श्रीकृष्ण चन्द्र उनके यहाँ रहनें के लिये पधारे थे ।

शनिदेव तो इसी दिन की प्रतीक्षा में ही थे ……….कि कब हमारे यहाँ श्रीकृष्ण चन्द्र जु पधारेंगे …….और आज वो सुदिन आही गया था ।

मणिमाणिक्य सब प्रकट कर दिए थे शनिदेव नें ।

यक्ष लोक में कुबेर के पुत्रों नें जाकर श्रीकृष्ण के बारे में सब बताया था ……”जीवन का लक्ष्य मात्र श्रीकृष्ण प्रेम ही हो सकता है”…………

*क्रमशः ….

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