!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( रस सिन्धु श्रीराधा – “सुनि मेरौ वचन छबीली राधा” )
गतांक से आगे –
आज श्यामसुन्दर के मुखमंडल में गोरज लग गया ….तभी सामने से अपनी सखियों के साथ श्रीराधा हंसती खिलखिलाती आईं । श्यामसुन्दर ने जैसे ही अपनी प्रिया को देखा वो स्तब्ध हो गये …जड़वत् हो गये …श्रीराधा आयीं स्तब्ध खड़े श्याम सुन्दर को देखा , रुकीं , फिर ऊपर से लेकर नीचे तक उन्हें देखकर मुस्कुराईं …श्याम के मुखमण्डल में गोरज लगा हुआ है ….वो पास में गयीं और फूंक मार कर उस गोरज को उड़ा दिया …उफ़ ! श्याम सुन्दर तुरन्त मूर्छित होकर गिर पड़े ।
खेल रहे हैं श्यामसुन्दर ….खेलने में मग्न हैं …..सखाओं से जीत रहे हैं वो ….इस बात की उन्हें खुशी है कि वो जीत रहे हैं ….तभी सामने से श्रीराधा आयीं …..श्रीराधा को आते देखते ही वो सब कुछ भूल गये …सखा इन्हें पुकार रहे हैं …..पर इन्हें वो पुकार सुनाई नही दे रही ….सखा इन्हें उत्साहित करना चाहते हैं खेलने के लिए पर इन्हें भान ही नही है …वो स्तब्ध हो गये …..श्रीराधा इनके पास आईं ……स्वेद, भाल में झलक रहे हैं …..अपना आँचल उठाया और श्रीराधा ने भाल के स्वेद को पोंछ दिया …..उफ़ ! आँचल की सुगन्ध ! ये वहीं मूर्छित हो गये ।
अपने नन्द महल की अटारी पर ये खड़े हैं ……बार बार उछल कर देख रहे हैं वृषभान महल की ओर …..पर वो वृषभान की बेटी आज सुबह से इन्हें दिखाई नही दी …..ओह ! सुबह से साँझ होने आयी ….इतना लम्बा वियोग ! इनके लिए तो क्षण का वियोग भी युगों के समान लगता है ….
ये उछल रहे हैं …..उचक कर देख रहे हैं …..बहुत देरी हो गयी ….स्वेद से पूरा मुखमंडल भर गया है …..मोर मुकुट गिर गया है …इन्हें मुकुट की अब क्या परवाह ! पीताम्बर भार लग रहा है ….उतार कर फेंक दिया है …वो माला , वनमाला , वैजयन्ती माला सब उतार दिया है ….स्वेद गिर रहा है ….हाथ से पोंछते हैं ….फिर उछलते हैं …ऋतु भी तो ग्रीष्म है ….उफ़ ! ये प्रेम देवता जो कराये वो कम ही है ….तभी सामने वृषभान महल के ऊपर श्रीराधा आयीं ….ये सोकर उठीं थीं ….आकर शीतल हवा में उन्होंने अंगड़ाई ली …..ये स्तब्ध हो गये …..केश उनके खुले थे …..ये जड़वत् देखते रहे …इनका रोम रोम पुलकित हो गया था …तभी हवा चल दी …हवा में उनके केश उड़ने लगे बिखरने लगे थे ….वही हवा इनके पास आई ….पर हवा में श्रीराधा के अंगों की सुगन्ध थी ..उनके केशों की ख़ुशबू थी …..आहा ! श्याम सुन्दर मूर्छित हो गये ।
अजी ! ये प्रेम की रीत समझते हैं …समझते ही नही …निभाते भी हैं ….
इन्हें जब उन्माद चढ़ जाता है , प्रेम का उन्माद , तब ललिता सखी श्रीराधा जू की चरण धूल लेकर इनके माथे में मल देती है …इनका उन्माद शान्त हो जाता है ।
ब्रह्म परब्रह्म , परात्परब्रह्म , अनन्तानन्त ब्रह्माण्डनायक श्रीकृष्ण चन्द्र जू हैं ये ….कोई साधारण नही …..किन्तु क्या करें ….जब इनकी श्रीराधा रूठ जातीं हैं …ओह , तब इनकी जो दशा होती है ….उसका वर्णन नही किया जा सकता । इन्हें उस समय सृष्टि की चर्चा व्यर्थ लगती है …भक्त लोग इन्हें उस समय याद नही रहते …सखाओं से दूर होना ही इन्हें अच्छा लगता है । और जब इनकी प्यारी प्रसन्न होती हैं तब तो इनका रोम रोम पुलकित हो उठता है …ये नाच उठते हैं ।
अजी ! छोडिये ….ये प्रेम है और ये प्रेम के खिलौना हैं ….जो खेल रहे हैं प्रेम खेल ।
“श्रीहित चौरासी जी” , आज का जो पद है वो पागलबाबा को बड़ा ही प्रिय है ….श्रीहितचौरासी जी का अठारहवाँ पद ….गौरांगी आज इसी पद को राधा बाग में दिन भर गुनगुनाति रही थी ।
आज वर्षा हुई …अच्छी वर्षा हुई ….मिट्टी भींग गयी….उसमें से सोंधि ख़ुशबू आरही है ….इससे वातावरण गमक उठा था ….कदम्ब के अनेक फूल आज कोई लेकर आया है ….इसकी सुगन्ध बड़ी मादक होती है …जो महक रही है ……चारों ओर राधा बाग में आज फूल ही फूल हैं …गुलाब तो हैं हीं ….उसकी सुगन्ध कदम्ब के फूल से मिलकर एक अलग सा सुरभित वातावरण तैयार कर दिया है । चन्दन घिस कर शाश्वत ने श्रीजी को लगाया फिर बाबा को …..प्रसादी सबने लगाई …..आज बाबा की आज्ञा से प्रसाद सबको पहले ही दिया गया …मिट्टी के कुल्हड़ में शीतल दूध जिसमें गुलाब डाला गया था …सबको प्रसादी माला मोगरे की …और पान ।
श्रीजी की प्रसादी पान लेकर सब अपने अपने स्थान पर बैठ गये हैं । वाणी जी सबने खोल ली है ….कलाकार आज कुछ ज़्यादा ही हैं …सारंगी भी है …शहनाई भी हैं ….बाँसुरी भी है ….और वीणा स्वयं गौरांगी लेकर बैठ गयी है ….आज के पद गायन में सबको बड़ा ही उत्साह आरहा है ….गौरांगी के सुमधुर कण्ठ से तो और अद्भुत लगा था …आइये ! सब गायें इस पद को ।
सुनि मेरौ वचन छबीली राधा , तैं पायौ रस सिन्धु अगाधा ।।
तू वृषभानु गोप की बेटी , मोहनलाल रसिक हँसि भेंटी ।।
जाहि विरंचि उमापति नाये , तापै तैं वन फूल बिनाये ।।
जो रस नेति नेति श्रुति भाख्यौ, ताकौ तैं अधर सुधा रस चाख्यौ ।।
तेरौ रूप क़हत नहिं आवै, श्रीहरिवंश कछुक जस गावै ।18 ।
सुनि मेरौ वचन छबीली राधा ………..
इस पद के गायन में ही अद्भुत आनन्द आया था सबको ….बाबा आज सीधे ध्यान की गहराई में हम सबको ले गये ….ध्यान भी आज का रस पूर्ण था …हो क्यों नहीं …पद ही देखिए ना , कितना प्यारा है । अब ध्यान ………
!! ध्यान !!
निकुँज वन में श्याम सुन्दर अपनी प्यारी के साथ चले जा रहे हैं …..सामने एक मार्ग आता है ..मार्ग संकरा है …..मार्ग के दोनों ओर लता हैं …घने लता …उनमें फूल लगे हैं …इतने फूल हैं कि उनका भार अब ये सहन नही कर पा रहे …इसलिए मार्ग में ही पूरी तरह से झुक गये हैं …..उन फूलों में मतवारे भौंरे गुंजार कर रहे हैं …..संगीत का भान हो रहा है …..अब आगे बढ़ते हुए श्याम सुन्दर और श्रीराधिका जू परम प्रसन्न हैं ….अति प्रसन्न हैं क्यों की उसी समय शीतल पवन ने बहना शुरू कर दिया था …जिसके कारण लताएँ हिलने लगीं और फूल झरने लगे ….अब वो संकरा मार्ग फूलों से भर गया है ….ओह ! श्रीराधा जू ये देखकर रुक जाती हैं और मुस्कुराती हैं …अपनी प्यारी को मुस्कुराता देख श्याम सुन्दर मुग्ध हो जाते हैं ….उन्हें अब कुछ भी भान नही रहता ….पर श्रीराधारानी अपने प्रियतम को सम्भाल लेती हैं ….और एक सुन्दर सी शिला का बैठ जाती हैं ….श्याम सुन्दर नीचे ही बैठ गये हैं …….सखियाँ चारों ओर हैं ….वो इन दोनों की लीलाओं को देखकर आनंदित हो रही हैं ….तभी …नयनों से संकेत करती हैं श्रीराधा कि …प्यारे ! ये पुष्प चुनकर मेरी वेणी में लगा दो …..सेवा मिल गयी ….इन्हें और क्या चाहिये ये तुरन्त उठे और फूल चुनने लगे …अपने पीताम्बर में भर लिया और लगाने लगे , प्यारी की वेणी में सजाने लगे । सजा रहे हैं ..वेणी में फूल लगा रहे हैं उस समय श्याम सुन्दर की अवस्था विचित्र होने लगी …वो सब कुछ भूलने लगे …उनमें प्रेम का उन्माद प्रकट होने लगा …उनके हाथ काँपने लगे ..अधर सूख गये ……पसीने माथे में छलक गए …..ये देखकर श्रीराधा जी ने तुरन्त अपने प्रियतम को अपने हृदय से चिपका लिया …पर ये क्या हृदय से लगते ही ये तो और और उन्मादी हो उठे …इनकी साँस रुकने लगीं ….ये हा राधा , हा राधा ! पुकार उठे …..तब अपने गोद में लिटा कर श्रीराधा अपने प्रीतम को अधर रस का पान कराने लगीं ……सखियाँ देख रही हैं ….वो सब नाच उठीं …..ओह ! ये तो अद्भुताद्भुत झाँकी थी ….ओह !
श्री राधे ! राधे ! राधे ! राधे राधे ! राधे ! श्रीराधे !
एक साथ सब सखियाँ गा उठीं ….मोर भी गा रहे थे और पक्षी भी ।
हित सखी आगे आकर कहती है – हे छबीली राधा ! तूने जो रूप पाया है वो अगाध रस समुद्र है ।
हे राधा ! तेरे इन प्रियतम का नाम इस रस देश में ही नही बाहर भी विख्यात है …बाहर तू भी विख्यात है स्वामिनी ! वृषभान की बेटी के रूप में ….वहाँ भी ये अपना प्राण हंसते हंसते तुझ पर न्योछावर करते रहते हैं ……
अरी राधा ! तेरे प्रीतम का सुयस तो अखिल ब्रह्माण्ड में है ….ये अखिल ब्रह्माण्ड के अधिपति हैं ….सृष्टि कर्ता ब्रह्मा और उमा के पति शंकर इनको सदा दूर से ही नमन करते रहते हैं …पास भी नही आ पाते पर तुम इनसे फूल बिनवाती हो और कहती हो मेरी वेणी में लगाओ । और इस पर ये अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं ….जय हो ।
हे राधा ! और सुयस सुनोगी अपने प्रीतम का ? तो सुनो ….ये वो ब्रह्म हैं जिनका वेद भी वर्णन करते हुए थक जाते हैं और बाद में नेति-नेति कह देते हैं ……पर तुम उनको अपने अधर सुधा का पान कराती हो जिससे ये रस मत्त हो उठते हैं ….तुम्हारे अधर रस को चखकर जगत को तृप्त करने वाले स्वयं तृप्त हो उठते हैं …जय हो ।
नही, नही कह सकती मैं तुम्हारे रूप सुधा के विषय में ….ब्रह्म को तृप्ति देने वाली तुम हो उसके विषय मैं क्या कहूँ ….बस फिर भी कुछ गा कर अपने को उस रस में डुबोने प्रयास कर रही हूँ ।
इतना कहकर वो सहस्रों सखियाँ नाच उठीं …..पूरा निकुँज नाच उठा ….वृक्ष लता पक्षी सब नाच उठे ….फूल बरस पड़े …ढँक दिया इन दोनों सनातन प्रेमियों को …पर ये अभी भी उन्मत्त होकर अधर रस का पान कर रहे थे……..
श्री राधे ! राधे ! राधे ! राधे ! राधे ! राधे ! राधे ! श्री राधे !
सब गा रही हैं …………
राधा बाग में भी सबने गाना शुरू किया ….उन्मत्त होकर सब नाचने लगे …..आहा ।
“सुनि मेरौ वचन छबीली राधा”
अंतिम में एक बार और इस पद का गायन किया गया था ।
आगे की चर्चा अब कल –


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