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May 9, 2025 7:01 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम् – !! “वृन्दावन में प्रथम वेणु नाद” – एक अलौकिक नाद !! : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम् – !! “वृन्दावन में प्रथम वेणु नाद” – एक अलौकिक नाद !! : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “वृन्दावन में प्रथम वेणु नाद” – एक अलौकिक नाद !!

कब सीखा बंशी बजाना श्याम नें – पता नही ।

पर आज श्याम आनन्दित हो अकेले ही निकल पड़े थे श्रीधाम वृन्दावन की शोभा को देखते हुए ………..

पीताम्बर धारी , मोर मुकुट सिर पर …….घुँघराले केश ……गले में लम्बी पुष्पों की झूलती हुयी माला ,

वृक्षों को छू रहे हैं ……….लताओं को आलिंगन कर रहे हैं …….पक्षियों से बतिया रहे हैं …..नभ के मेघों से अपनें वर्ण की तुलना कर रहे हैं ।

आगे मोरों का झुण्ड देखा ………श्याम को देखकर उन्हें भी अपनें प्रियतम मेघों की याद आगयी ………वो सब पंख फैलाये नाचनें लगे ।

पक्षियों का झुण्ड वृक्षों पर आगया था ………उन्होंने अपना सुर छेड़ दिया ……..उनकी बोली ……उनका अपना संगीत था ।

श्याम सुन्दर आज ये सब वृन्दावन में देख कर झूम उठे थे ।

इधर उधर देखा …………फेंट में बाँसुरी थी ……कब रखी थी पता नही ………कब सीखी ? किससे सीखी बजानी , पता नही ।

आज निकाल लिया …………..वृन्दावन सच में झूम उठा था ……..पक्षियों की बात कौन कर रहा है ……..पूरा का पूरा वन प्रान्त ही उन्मत्त हो गया था – जब अपनें कोमल पतले गुलाबी अधरों पर श्याम नें बंशी को रखा ………..झुके थोडा ……..अपनी सुरभित साँसों को खींचा और उन बंशी के रंध्रों में फूँक मार दी ।

उफ़ ! स्वर लहरी चल पड़ी……वृन्दावन झुमनें लगा……..वृक्ष , लता पक्षियों की कौन कहे……यमुना का प्रवाह स्थिर हो गया ।

उफ़ ! हिरणियाँ खड़ी हो गयीं सामनें आकर ……….और अपलक नेत्रों से श्याम को निहारने लगीं ।

तात ! ये स्थिति पृथ्वी की थी …….पर ये वेणु नाद रुकनें वाला था क्या ? ये तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रेम रस से भरना चाहता था ………….और ये किया इस वेणु रव नें ।

ये श्याम के द्वारा बजाई गयी थी ………..ब्रह्माण्ड का भेदन करते हुए ये सिद्ध लोक पहुँची – वेणु नाद…..सिद्ध अपनें ध्यान में लीन थे ….शान्त स्थिति में वो सब रहते थे ………पर ये क्या किया इस वेणु नाद नें …….बेचारे शान्त स्थिति वाले सिद्धात्माओं को अशान्त कर दिया था ।

ये प्रेम का नाद है ……….ये है ही ऐसा ।

शान्त को अशान्त कर दे और अशान्त को शान्त बना दे ……..ये बड़ा विचित्र है – प्रेम ।

अब उन सिद्ध लोक में रहनें वाले सिद्धों को समझ में नही आरहा कि ये हो क्या गया ? कोई सुमधुर सा स्वर गुंजा और ……ध्यान से उठा दिया …….अब प्रणायाम कर रहे हैं ……….ध्यान लगे इसका प्रयास कर रहे हैं …..पर सारे प्रयास निष्फल .।

तात ! ये वेणु नाद अब और आगे बढ़ा ………….नारद जी अपनें शिष्य तुम्बुरु के साथ कैलाश जा रहे थे ………..श्याम की वेणु नाद यहाँ तक पहुँची …..उफ़ ! पगला गए महान संगीतकार तुम्बुरु ।…..गुरुदेव ! ये कौन सा स्वर लग रहा है …….ये किस अद्भुत राग में बज रहा है …….तुम्बुरु जब तक सोचते हैं …..तब तक तो श्याम दूसरे से तीसरे राग रागिनियों में विचरकर वापस वहीँ आजाते हैं ।

उद्धव आनन्दित होकर बोले – तात ! आनन्दातिरेक में मूर्छित होनें के सिवा कोई और उपाय था नही तुम्बुरु के पास …….उन्हें मूर्छित होना ही पड़ा ।

वत्स ! श्याम की बजाई गयी बंशी है ………..राग रागिनियों के फेर में तुम मत पड़ो ……..बस तुम तो दोनों कर्णरंध्रों को खुला रखो …….और पीयो कानों से इस अद्भुत नाद को …….रस को ………..क्यों की ये बुद्धि से बहुत परे की वस्तु है ……..बुद्धि को त्यागों तुम्बुरु ! देवर्षि नें उठाया अपनें शिष्य को ।

उद्धव कहते हैं ………तात ! अब ये वेणु नाद कैलाश में पहुँची …….भगवान शंकर ध्यान कर रहे थे ……….

तभी श्याम की वेणु नाद कैलाश में ……….कैलाश में ओंकार नाद सदैव गुँजित रहता है …….पर इस वेणु नाद नें उस ओंकार नाद को भी फीका कर दिया था………..भगवान शंकर के हृदय में पहुँच कर खलबली मचा दी ………नेत्र खोल लिये महादेव नें ……..और नाचनें लगे …….पार्वती जी दौड़ी हुयी आईँ ……..भगवन् ! क्या हुआ ?

पार्वती जी से बोले – देवी ! नाद मेरे नन्दनन्दन का है ……….प्रेम से भरा अद्भुत नाद छेड़ दिया है वृन्दावन में…..सुनो ! महादेव पार्वती को कह रहे हैं ।

तात ! वेणु नाद, अब कैलाश से होते हुए ब्रह्म लोक में पहुँचा था …..ब्रह्म लोक में सृष्टी कर्ता कर्म का हिसाब किताब देख रहे थे …….नये सृष्टि को कैसे प्रारम्भ करना है आगे ………इस पर सोच रहे थे …….

पर वेणु नाद नें सारा हिसाब किताब गड़बड़ कर दिया ब्रह्मा जी का…

उनकी बुद्धि अब काम नही कर रही ………वो सब कुछ छोड़कर नाचना चाहते हैं…..वो अब सब कुछ त्याग कर कुछ गुनगुनाना चाहते हैं ।

कुछ समझ में नही आया तो वे चल पड़े देखनें के लिये वृन्दावन ।

पर ये क्या आकाश छा गया है विमानों से ………………..देव देवियां, यक्ष किन्नर नाग सिद्ध भगवान शंकर सृष्टि कर्ता ब्रह्मा सब खड़े हैं देख रहे हैं कि ये अद्भुत वेणु नाद कहाँ हो रहा है …………

और जब देखा ……….वो नन्हा सा पीताम्बर धारण किया हुआ …….सिर में मोर मुकुट , कानों में कनेर के पुष्प , फूलों की अद्भुत माला ……..नीचे धोती ऊँची बंधी हुयी है ……काँछनी और बांध ली है …..कोमल चरण हैं …….लाल लाल चरण ……..उफ़ ! सब न्योछाबर हो गए थे “श्यामसुन्दर मुरलीधर” पे ।


तात ! उद्धव विदुर जी को सुना रहे हैं …………

ये तो हुई ऊपर वालों की स्थिति वेणु नाद सुनकर ।

पर नन्द गाँव से पास ही है बरसाना ………….

बरसानें की सखियाँ यमुना जल भरनें आईँ हुयी थीं …………ललिता, बिशाखा, इन्दु , चित्रा , रंगदेवी सुदेवी सब आईँ थीं ।

जल भरते हुए इनके कानों में भी बाँसुरी की ध्वनि गयी ………..

मटकी बह गयी यमुना में …………अपनें गालों में हाथों को रख कर बस बाबरी की तरह बैठीं हैं .।………इनको कुछ पता नही है …….. ये देह भान भूल चुकी हैं ………..हाँ …..कुछ देर बाद ये उठीं ………..और दौड़ पडीं उस ओर जिधर से ये नाद आरहा था ।

सुन्दर सा छोरा है …साँवला सलोना छोरा ……अधर पतले हैं …..गुलाबी हैं ……..अभी अभी ही छोड़ा होगा मैया का स्तन पीना इन अधरों नें ……और सीधे अब वेणु को धर लिया था !

“हमारी श्रीराधा रानी भी देख लेतीं इन्हें” ……ललिता नें कहा ।

हाँ ……सखी ! कितना सुन्दर है ये छैला ! है ना ?

विशाखा सखी नें कहा ।

हूँ …………..सखियों नें बस हुंकारी दी ।

तभी – कन्हैया ! कन्हैया !

बृजरानी खोजती हुयी आगयीं थीं …………और उनके पीछे बलराम भद्र मनसुख सब सखा थे ……मैया को देखते ही बाँसुरी को फेंट में छुपा ली नन्द नन्दन नें …….और दौड़ पड़े अपनी मैया के पास 🌹

उफ़ ! ये वेणुनाद !

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