!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 60 !!
प्रेमाश्रु – प्रवाह
भाग 2
महर्षि ! बड़ी बुरी स्थिति है……….सन्ध्या को मूर्च्छा टूटी तो चरण दवा रही थीं कीर्तिरानी अपनी लाडिली के…….आँसू गिरा रहे थे अपनी प्यारी पुत्री को देखते हुए श्री बृषभान जी ।
ललिते ! उठीं एकाएक श्रीराधा रानी ।
ओह ! क्या बताऊँ महर्षि ! लाडिली का क्रन्दन अब सुना नही जाता ।
ये कौन ? मैया कीर्तिरानी को देखते हुए पूछनें लगीं श्रीराधा ।
और ये कौन हैं ? बृषभान बाबा को भी देखकर पूछती हैं ।
ये हैं आपकी माता कीर्तिरानी ………मैने अपनें आपको सम्भालते हुये उत्तर दिया ……..और ये हैं बरसानें के मुखिया बृषभान जी …..और आपके पिता जी ।
“फिर मैं कौन हूँ “………उफ़ ! क्या बीत रही होगी हम पर ये सब सुनते हुए ………मैया कीर्ति रोनें लगीं ……….तो मैने ही मना किया आप मत रोइये……नही तो मैं सम्भाल नही पाऊँगी ।
बोल ना ! मैं कौन हूँ ? फिर पूछा था मुझ से ।
आप हैं श्रीराधा ! मैने उत्तर दिया ।
कौन श्रीराधा ? ओह ! ये कैसा प्रश्न था ।
क्या उत्तर देती मैं श्रीराधारानी को…………..
बताओ ना ! राधा कौन है ? मैं राधा हूँ ……तो राधा का परिचय ?
मैं हिलकियों से रो गयी ………..हे विधाता ! अब लाडिली का दुःख इससे ज्यादा देखा नही जा रहा ……………..
तू रो क्यों रही है …………बता ना राधा कौन है ?
श्रीराधा नें फिर पूछा था मुझ से ।
श्याम की राधा ! कृष्ण की राधा ! कन्हाई की राधा !
बस इतना सुनना था कि ………..हा श्याम ! हा कृष्ण ! हा प्राणधन ! यही कहते हुए फिर मूर्छित हो गयीं ।
अब तो महर्षि ! ऐसी स्थिति हो गयी है कि………श्रीराधा को कोई “कृष्ण” नाम भी न सुना दे…..हम सब सावधान रहती हैं ……..क्यों की मात्र कृष्ण के नाम से ही उन्हें उन्माद चढ़ जाता है ।
पर कब तक न सुनाएँ ……….श्याम तमाल है …….वृन्दावन में श्याम तमाल के अनेक सघन कुञ्ज हैं …………आकाश में श्याम घन हैं ।
इन सबको देखकर भी कभी कभी उन्माद …………..
महर्षि ! चार दिन पहले की बात है ……………..श्याम तमाल को देखकर मेरे श्याम ! मेरे प्यारे ! कहते हुए दौड़ पडीं थीं ……….मोर को देखती हैं ………तो उन्हें आलिंगन करनें के लिये दौड़ पड़ती हैं …..कहती हैं मेरा श्याम है ये ………..उसी दिन की बात है महर्षि !
यमुना में बाढ़ आयी हुयी थी ………..उफनती यमुना में हा श्याम ! कहते हुये कूद गयी हमारी लाडिली ।
उधर से चन्द्रावली सखी आगयी थी …..वैसे तो हमारी श्रीराधा से ईर्श्या करती थीं ये चन्द्रावली….पर पता नही क्यों जब से कन्हाई गए हैं मथुरा , तब से हमारी श्रीराधारानी के प्रति इनका प्रेम बढ़ गया है ।
कूद गयीं चन्द्रावली यमुना जी में ………और जैसे तैसे हमारी स्वामिनी को बचा लिया था ।
बाहर लेकर आईँ ……….और चन्द्रावली नें बड़ी सेवा की ।
जब श्रीराधा को कुछ भान हुआ……..तब चन्द्रावली यही कहते हुए उठी ………तुम मत मर जाना राधा ! नही तो वृन्दावन कभी नही आएगा कृष्ण………मैं अब समझीं हूँ……..प्रेम तो श्याम नें तुझ से किया है ………….मैं कहाँ हूँ तेरे सामनें राधा !
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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