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September 14, 2025 12:10 am

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!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( रस भूमि श्रीवृन्दावन – “राधे ! देखि वन की बात” ) : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( रस भूमि श्रीवृन्दावन – “राधे ! देखि वन की बात” ) : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!

( रस भूमि श्रीवृन्दावन – “राधे ! देखि वन की बात” )

गतांक से आगे –

ये बरसाना , नन्दगाँव , गोवर्धन श्रीवृन्दावन के अन्तर्गत ही आता है …..पागलबाबा बोले ।

तो ये निकुँज क्या है ? गौरांगी ने पूछा ।

श्रीवृन्दावन को ही रसिकों ने निकुँज कहा है ….बाबा ने स्पष्ट किया ।

तो वो श्रीवृन्दावन कहीं ओर है , जो रसमय और चिद् रूप है ? शाश्वत का प्रश्न था ।

नहीं , वो यहीं हैं और यही है …..बाबा दृढ़ता से बोले थे ।

आज बाबा के साथ गहवर वन की परिक्रमा लगाने का सौभाग्य फिर प्राप्त हो गया …..दो बजे निकल गये थे ….बादल छाए थे हवा शीतल थी ….दो घण्टे में आजायेंगे …..ये सोचकर बाबा ने ही हमसे भी कहा ….चलोगे ? आप अन्धों से पूछ रहे हो आँख चाहिये ? शाश्वत बोला ….बाबा खूब हंसे ….और वो बिना कुछ बोले चल दिये ….पीछे पीछे हम सब थे ……मौन परिक्रमा चलती रही …वर्षा हुयी पर रुक गयी …..गहवर वन अद्भुत लग रहा था ….वहाँ की हरियाली मन को मोह रही थी ।

तब शाश्वत ने ये प्रश्न उठा दिया …….श्रीवृन्दावन को लेकर ।

पर श्रीवृन्दावन वैसा नही है ? जैसा वर्णन निकुँज का आता है श्रीहित चौरासी आदि में ?

और अब तो न कुँज हैं , न पक्षी , अब तो मोर भी नहीं हैं …यमुना भी कहाँ हैं , मैली हैं ।

ये सब मैं ही बोला था ।

बाबा बोले ….चिद वृन्दावन तो अभी भी वैसा ही है …हाँ तुम्हारा बनाया हुआ वृन्दावन है ये तो …बिल्डिंग आदि तुमने बनाई हैं …कारों की भरमार तुम्हारी हैं …गन्दा मैलापन तुम्हारा है ….किन्तु चिद् वृन्दावन तो आज भी वैसा ही है जैसा श्रीहित चौरासी आदि में वर्णन है । वो कैसे दीखेगा ? मैंने पूछा । अपने द्वारा फैलाए गन्दगी को हटाओ ….अपने अहंकार के निर्माण को हटाओ …फिर जो रहेगा वो चिद् वृन्दावन ही होगा । किन्तु ….अब मैं क्या पूछता ….उत्तर बाबा दे चुके थे …..वो स्पष्ट कह रहे थे कि अपने अहंकार से निर्मित वृन्दावन को तुम हटा दो …या ये हटेगा ही …क्यों की ये सब मिथ्या है …क्या बिल्डिंग सत्य हैं ? कारें सत्य हैं ? पर वृन्दावन सत्य है ….वो स्वयं सच्चिदानन्द है …..उसे देखो , अपने द्वारा फैलाए गन्दगी को हटाकर देखो…..वही नीली यमुना बहती हुई दीखेंगी । मन में आया प्रश्न करूँ …किन्तु यमुना तो मैली हैं …..पर बाबा तुरन्त यही बोलेंगे जो सत्य भी है कि …..तुम्हारे द्वारा फैलाया गया मैला है ये तो …उसे हटा कर देखो …वो तो आज भी वैसी ही हैं ….जो भी गन्दगी है ….जो भी मैलापन है वो हमारा है …इसमें वृन्दावन को क्यों दोष दे रहे हो …हटाओ उसे हटा सको तो , नही भी हटाओ तो भी चिद् वृन्दावन को तो कोई फर्क पड़ने वाला है नही ….वो तो जो है वो है । मैं मौन हो गया था । ये यमुना जी को मैला कहना और श्रीवृन्दावन को गन्दा कहना बाबा को अच्छा नही लगा था …मैंने मन ही मन क्षमा माँग ली …..बाबा सत्य बोल रहे थे ….दोष हमारा , जाम की समस्या हम पैदा करें , गन्दगी हम फैलायें ..यमुना में नाला हम डालें …और दोष दें श्रीवृन्दावन को ? नही ।

यही है निकुँज , जो कहा है …..वो श्रीवृन्दावन को ही कहा गया है ।

बाबा ये बात तब बोले …..जब राधा बाग में हम आगये थे ।

समय हो गया था श्रीहित चौरासी जी के रसमय सत्संग का ….बाबा आकर सीधे आसन में बैठ गये ….वातावरण रसमय है …हल्की बूँदाबाँदी से शीतल हवा भी चल रही थी ….सामने आज दो मोर पंख फैलाकर नाच कर रहे थे ….दो मोर वृक्ष में बैठे बोल रहे थे ….कोयल की कुँहुँक संगीत का अनुभव करा रही थी । रसिक जन दौड़े हुए आ रहे थे…और आकर अपने स्थान में बैठ रहे थे ।

आज भी सारंगी में राग वसंत ही बजाया जा रहा था …..पखावज में वसंत राग की जुगल बंदी सारंगी के साथ ….ये बड़ा दिव्य लग रहा था ।

गौरांगी ने आकर वीणा सम्भाल ली थी …वीणा के तारों को वो सुर में बैठा रही थी ….फिर कुछ देर बाद ….गौरांगी ने आरम्भ किया पद का गायन ….आज का पद है अट्ठाईसवाँ । श्रीहित चौरासी जी का अट्ठाईसवाँ पद ।


                             राधे !  देखि वन की बात ।

         रितु वसंत अनन्त मुकुलित ,    कुसुम अरु फल पात ।।

           बैंनी धुनि नन्दलाल बोली ,   सुनिव क्यौं अरसात ।।

           करत कतव विलम्ब भामिनी ,   वृथा औसर जात ।।

           लाल मरकत मणि छबीलौ,    तुम जु कंचन गात ।।

           बनी श्रीहित हरिवंश जोरी ,   उभय गुन गन मात । 28 ।

                  राधे ! देखि वन की बात ........

बाबा भाव समुद्र में डूब गये हैं …वो सच्चिदानन्द श्रीवृन्दावन की छटा देख रहे हैं …..सखी भावापन्न पागल बाबा मुस्कुराते हैं उनके नयन बन्द हैं ….उनके मुखारविंद को देखकर लगता है वो श्रीवन के साथ साथ युगल के दर्शन भी कर रहे हैं …अरे ! दर्शन क्या इन्हें तो सेवा भी मिली हुयी है ।

बाबा कुछ देर इसी भाव दशा में रहे …फिर बोलना आरम्भ किया …बाबा के नेत्र बन्द ही हैं ।


                                   !! ध्यान !! 

रसमय भूमि है ये , जहां प्रिया प्रियतम नित्य विहार करते हैं …श्रीवृन्दावन ।

सखियाँ का प्यारा युगल का दुलारा वन है ये श्रीवृन्दावन । यहाँ सब कुछ रसमय है …नही नही ये जड़ नही है ..ये चिद है …ये चैतन्य वन है …..युगल को जिसकी इच्छा जब होती है ये श्रीवन उसी समय वो प्रकट कर देता है ….यहाँ प्रेम की सरिता निरन्तर बहती रहती है ….यहाँ के वृक्ष इतने प्रेमी हैं कि लताओं से वो लिपटे रहते हैं । प्रेम की विशेषता है कि वो नित्य उत्सव और उमंग में ही जीता है …इसलिये इस श्रीवन में भी नित्य उत्सव चलते रहते हैं ….कभी शरद तो कभी वसंत ….यहाँ काल की गति नही है ..इसलिए कोई आवश्यक नही कि शरद के बाद वसन्त नही आसकता …..वसन्त के बाद ही वर्षा ऋतु भी आसकती है …और कभी कभी छ ऋतुएँ एक ही दिन में भी आजाती हैं ….ये सब युगल की इच्छा पर निर्भर करता है ….ये ऐसा चिद श्रीवृन्दावन है ।

आज तो वसन्त है इस श्रीवन में …इसलिये ये उन्मत्त है ….कुँज की रचना सखी ने की है …उस कुँज को देखने के लिए प्रिया जू अपनी सखियों के साथ पधारीं हैं …इस समय जो शोभा हो रही है श्रीराधिका की वो अद्भुत है ….उनके सारे आभूषण फूलों के हैं ….श्रीराधिका ने जो नीली झीनी साड़ी पहनी है उससे उनका गौर अंग झलक रहा है …रात्रि की वेला है …वो कुँज में जाती हैं तो उनके नीले वस्त्र से झांकता उनका गौर अंग कुँज को प्रकाशित कर देता है । वो कुँज को देखती हैं , मुस्कुराती हैं …शीतल हवा चल रही है …उनकी वेणी अवनी से कुछ ही ऊपर है …उनकी वो मत्त चाल ….सखियाँ देख रही हैं तो वो भी सब कुछ भूल रही हैं । एकाएक सुगन्ध का झौंका कुँज में आया ….ये सुगन्ध श्याम सुन्दर के अंग का था …श्रीवृन्दावन ने ही दोनों को मिलाने के उद्देश्य से श्याम अंग के सुगन्ध को श्यामा तक पहुँचाने का कार्य किया था …पर नही ये सफल न हो सका ….क्यों कि श्याम अंग की सुगन्ध ने श्यामा की सुध हर ली …अब उनसे चला नही जा रहा …..वो बैठ गयीं …..श्याम सुन्दर उनके तन मन में छा गये ..श्यामा का अंग अंग श्याम! पुकार उठा ….हित सखी ने देखा तो कुछ समझ न पाईं …ये क्या हुआ ? बाहर आज श्याम सुन्दर खड़े हैं …वो श्रीवन में , यमुना के तट पर आज विहार करना चाहते हैं …पर ये प्यारी तो ! प्रेम में डूबी प्रिया को जब ऐसे देखा तो हित सखी ने तुरन्त सावधान किया ….पर श्यामा की दशा तो ! अब हित सखी को श्रीजी के कोमल कर पकड़ने ही पड़े ….तब कुछ भान हुआ था श्रीराधा को । तब हित सखी कहती है –


हे राधे ! अब चलो ! कुँज से बाहर चलो ! हित सखी हाथ पकड़ कर कहती है ।

क्यूँ ? बड़े भोलेपन से श्रीराधिका पूछती हैं ।

इसलिए कि श्रीवृन्दावन ने बहुत चमत्कृत करने वाली वस्तुयें प्रकट कर दीं हैं …और प्यारी राधे ! ये सब वो आपके लिए ही श्रीवन ने किया है …आप चलो , कृपा करके चलो , जिद्द ही करने लगी थी हित सखी तो । किन्तु श्रीराधिका भाव में डूब गयीं हैं अभी भी श्याम के अंग की सुगन्ध ने उन्हें प्रेम सिन्धु में ही डुबो रखा है ।

क्यूँ की प्यारी श्रीराधे ! श्रीवन ने वसन्त की इस रात को रसपूर्ण बनाने की ठान ही ली है …इसलिये देखो तो बाहर चलकर । हित सखी की जिद्द देखकर श्रीराधिका फिर पूछती हैं …क्या है ऐसा बाहर ? सखी कुछ विशेष हो तो मैं चलूँ …नही तो मुझे यहीं रहने दे ।

हित सखी लम्बी साँस लेती है ….फिर बाहर देखती है …वसन्त की ये रात बड़ी मादक है ..और श्याम सुन्दर बाहर प्रतीक्षा में हैं ….ओह ! इधर श्रीराधिका !

हे प्यारी जू ! श्रीवृन्दावन में वृक्ष से जितनी लताएँ हैं लिपट गयीं हैं ….कमल कुमुदनी एक दूसरे में ढल गयी हैं ….मृग अपनी मृगी को प्रेम कर रहे हैं ….पूरा वन प्रेम रस में डूब गया है । कहने का भाव सखी का ये था कि आप भी अपने प्रियतम से मिलो । पर नही , अभी श्रीराधिका कुछ भी समझने की स्थिति में नही हैं ।

तो ? तीखे नयनों वाली श्रीराधिका सखी को देखते हुए पूछ रही हैं ।

हित सखी अब क्या कहे …..फिर भी वो बोली – वसंत की सुन्दर ऋतु है …..जिसमें फल फूल पत्ते तक प्रसन्नता से खिले हैं ….आप चलो तो , एक बार निहार तो लो । सखी ने फिर जिद्द करी ।

पर प्रिया जू आज उठ ही नही रहीं …..

ये कोई बड़ी बात तो है नही …सखी ! फल फूल तो खिलते रहते हैं श्रीवन में ….मैं क्यों जाऊँ ?

अब तो हित सखी को कहना ही पड़ा …..बाँसुरी बजा रहे हैं आपके रसिकवर …बाहर आपकी प्रतीक्षा में बैठे हैं ….आप अब तो चलो । आलस न करो …सखी अब हाथ जोड़ने लगी ।
और हाथ जोड़ते हुए बोलती जा रही है …आप भी मिलना चाहती हो …आपकी भी पूर्ण इच्छा है ..फिर विलम्ब क्यों ? श्रीराधिका के मुखमण्डल में ये सुनते ही प्रसन्नता खिल गयी …सखी बोली – मर्कतमणि श्याम सुन्दर हैं तो आप सुवर्ण सदृश हो …दोनों को मिलाना चाहता है श्रीवन ..प्यारी जू ! आप मिल लो …हम सब यही चाहते हैं । ये सुनते ही प्रिया जू एकाएक उठीं और कुँज से निकल कर बाहर दौड़ीं ….श्रीवृन्दावन ने जब देखा कि उनकी स्वामिनी आगयीं हैं तो लताओं से पुष्प बरसने लगे …हिरण उछाले भरने लगे …शुक कोयली बोल उठी …जो कल खिलने वाले कमल थे वो भी रात्रि में ही खिल गये ….श्रीवन प्रेम के उन्माद से भर गया …यमुना उन्मत्त हो बहने लगीं ….उछाले भरने लगीं ।

श्याम के पास जाकर श्यामा ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया था ।

पूरा श्रीवन बोल उठा ……….युगल सरकार की …जय जय जय ।

पागलबाबा अब मौन हो गये …इसके बाद कुछ बोला भी नही जा सकता था ।

गौरांगी ने फिर इसी अट्ठाईसवें पद का गायन किया ।

राधे ! देखि वन की बात …….

आगे की चर्चा अब कल –

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