!! उद्धव प्रसंग !!
{ श्रीराधा कृष्ण का विवाह – जो उद्धव ने देखा }
भाग-20
तत्संदेशागत स्मृतिः…
( श्रीमद्भागवत )
उद्धव का ज्ञानोपदेश सुनकर श्रीराधारानी हँसीं…
ऐसा लग रहा था उद्धव को उस समय मानो फूल झर रहे हों ।
उद्धव !
अपने लिए श्रीराधा के मुखारविन्द से सम्बोधन सुनकर उद्धव को रोमांच हो गया था ।
उद्धव !
विचार की अपेक्षा अनुभव का मूल्य हजारों गुना ज्यादा होता है ।
है ना ?
उद्धव ! तुम्हारे विचार अच्छे है… शास्त्रीय हैं… विद्वान लोग ऐसे ही विचार कहते और सुनते हैं ।
पर मात्र विचारों का क्या मूल्य ?…
मेरी बात अगर ठीक न लगे… तो मुझे क्षमा करना… पर उद्धव ! विचार से ज्यादा मूल्यवान वस्तु है… अनुभव ।
सारी सखियाँ श्रीराधा जी की बातें सुनकर हँसी…
तुम्हारी बातें सही होंगी…पर हम जो कहने जा रही हैं…वो किसी किताब की बात नही है…क्यों कि हमने कुछ पढ़ा ही नही है उद्धव !…हम तो वृन्दावन में रहने वाली…वनवासिनी हैं ।
पर हम जो अब कह रही हैं… वो हमारा अनुभव है… हमने जीया है… हमने पीया है… ।
तुम कहते हो उद्धव !…कि वो निराकार है… उसके कोई आकार नही हैं… ठीक है… शास्त्र यही कहते होंगे… पर हम कैसे मानें ?
हमें उसने छूआ है… हाथ नही थे तो कैसे छुआ ?
उसने हमें चूमा है… अधर नही थे तो कैसे चूमा ।
उसने हमें आलिंगन किया है… हाथ नही थे… तो ये आलिंगन कैसे सम्भव था उद्धव !
उसने हमें हर जगह छुआ है… यहाँ, यहाँ, यहाँ… श्रीराधा महाभाव की अवस्था में पहुँच गयीं ।
फिर एकाएक उठ कर खड़ी हो गयीं…
उद्धव !… वो सामने देखो ! यमुना के पार…
वहाँ कदम्ब है… दीखा ? श्रीराधा ने उद्धव से पूछा ।
हाँ… दीखा ।
…बस उसी कदम्ब के नीचे… हम दोनों का विवाह हुआ था… आज के ही दिन । श्रीराधा ने कहा ।
अब बता उद्धव ! तेरे ब्रह्म का विवाह होता है क्या ?
तेरे निराकार ब्रह्म का पाणिग्रहण होता है क्या ?
भाँवर पड़ते हैं क्या ?…
सिंदूर दान होता है क्या ?…
मेरे साथ हुआ है… उसका विवाह हुआ है मेरे साथ ।
श्रीराधा की ये महाभाव दशा थी ।
उद्धव देख रहे हैं… उस कदम्ब को…
और देखते देखते… वह कदम्ब का वृक्ष प्रकाश पुञ्ज से नहा गया ।
उद्धव चकित हो… अपनी आँखें मलने लगे…
श्रीराधा हँसीं… ना ! उद्धव ! आँखें न मलो… ये मिथ्या नही है… ये सब चैतन्य हैं…जो तुम्हें दीख रहा है…
ये श्रीधाम चैतन्य है…उसका रूप चैतन्य है… उसका “नाम” चिन्मय है… उसकी लीला !
श्रीराधा उछल पडीं… देखो ! उद्धव ! उस लीला बिहारी की लीला को देखो… वो साकार है… उसका रूप है…
उद्धव ! जो उस दिव्यरूप से दूर है ना…. उसे ही प्रकाश बिन्दु दिखाई देता है… पर जो उसके पास… और पास… और पास…आता जाता है… उसको दिखाई देता है… उसका रूप… उसकी मन्द मन्द मुस्कुराहट…उसका वो मोहक रूप… उसका टेढ़ा होकर मुरली बजाना…।
उद्धव देख रहे हैं…वो यमुना के पार का कदम्ब…प्रकाश, दिव्य प्रकाश से भर गया था ।
वहाँ की भूमि… मणि माणिक्य से जगमगा उठी थी…धूल नही थी वहाँ… वो तो कपूर और मोती का चूर्ण था… ।
हे परब्रह्म श्रीकृष्ण ! आपके चरणों में… और आपकी आल्हादिनी शक्ति श्री वृषभानु किशोरी के चरणों में मेरा कोटि कोटि वन्दन है ।
उद्धव के सामने वो श्रीराधा कृष्ण की विवाह लीला साकार हो उठी थी… ये क्या !… उद्धव स्तब्ध, जड़वत् से हो गए थे ।
स्वयं विधाता उतरे थे अपने ब्रह्म लोक से… और उन्होंने ही ये सब प्रार्थना की थी ।
ये मेरा परम सौभाग्य है कि… आप अनादि दम्पति का विवाह मेरे हाथों सम्पन्न होने जा रहा है ।
तभी उद्धव ने देखा…रंग कुञ्ज… वहीं प्रकट हो गया ।
उमा, भवानी, सावित्री, गायत्री, रमा… ये सब भी सज धज कर उस विवाह में उपस्थित हुयी थीं… पर उन श्री वृषभानु दुलारी की अष्टसखियों के सौंदर्य के आगे… ये सब फीकी पड़ गयी थीं… उद्धव ने ये सब देखा… ।
सुंदर दिव्य सिंहासन सखियों ने मंगवाया…
उस सिंहासन में युगल सरकार विराजमान हुए ।
उद्धव के नेत्रों से आनन्द अश्रु प्रवाहित होने लगे थे… अपने आपको धन्य धन्य मानने लगे थे उद्धव !
तभी सखियों ने व्याह की विधि नियम पूर्वक करनी शुरू कर दी थी ।
कुञ्ज के द्वार की रचना स्वयं लक्ष्मी जी कर रही थीं…
सुवर्ण के खम्भे लगे थे… इसमें मणि माणिक्य रचे पचे थे…
अहो !
उद्धव के मुख से ये शब्द बार बार प्रकट हो रहे थे ।
उद्धव तब गिरते गिरते बचे… जब उन्होंने देखा कि उस भाण्डीर वन में… छ: ऋतुएँ स्वयं उपस्थित होकर… नही नही… उद्धव ने फिर ध्यान से देखा… छ: ऋतुएँ मालिन बन कर… उस विवाह मण्डप में बन्दन वार लगा रही थीं ।
एकाएक आकाश से बाजे बजने शुरू हो गए थे… गन्धर्व इत्यादि वाद्य बजा कर अपने आपको धन्य बना रहे थे ।
पर उद्धव ने देखा कि… ललिता सखी ने उन गन्धर्वों के वाद्यों को बन्द करवा दिया था…और स्वयं शहनाई लेकर बजाने लगी थीं…
मृदंग की थाप…विशाखा सखी दे रही थीं…
चारों ओर आनन्द की धूम मच गयी…।
पर तभी रंगदेवी और सुदेवी दोनों ने जाकर युगल सरकार से प्रार्थना की… आप पधारें ।
सुवर्ण की दो चौकी थी…
एक में श्याम सुंदर को बैठाया… और दूसरी चौकी में… वृषभान दुलारी को…
पर ये क्या… बीच में एक पर्दा लगा दिया ..सखियों ने ।
अब न श्याम सुंदर अपनी प्रिया को देख सकते हैं… न उनकी प्रिया अपने प्रियतम को… ।
श्याम सुंदर के नैन तड़फ़ उठे थे…उस स्नान लीला में भी… कुछ ही समय लगा था… पर वह “कुछ समय” भी कल्पों के बराबर कष्ट दे रहे थे…श्याम सुंदर को ।
उद्धव ये सब देखकर रोमांच से भर गए ।
कुंकुम, तेल, फुलेल, ये सब श्रीराधा और श्याम सुंदर के शीश पर डाल दिया… सखियों ने ।
बड़े ही प्रेम से… शरीर को जो सुख दे… ऐसा गर्म गर्म जल तैयार करके… उस जल में सुगन्धित इत्र डाल कर…
श्याम सुंदर को… और श्रीराधा रानी को स्नान कराया ।
उद्धव देख रहे हैं…जब स्नान हो रहा था… उस समय दिव्य शोभा बन गयी थी… युगल वर की ।
सुंदर पीले वस्त्र धारण कराये… शीश में पीली पाग उसमें मोर का पंख… मोतियों की लड़ी… पीताम्बरी… पीली धोती ।
सुंदर लहंगा… जराब का…श्रीराधा रानी को धारण कराया था सखियों ने ।
उनके हाथों में मेहँदी का रंग ओह ! कितना सुंदर लग रहा था ।
चुनरी… मांग में… मोतिन की लड़ी… दुलरि पोत… जो गले में पहनाई थी… श्रीराधा रानी को ।
श्याम बिन्दु श्रीराधा जी के भाल पर…और रोली श्रीश्याम सुंदर के भाल में ।
इस छवि को देखकर उद्धव का रोम रोम प्रफुल्लित हो उठा था ।
मण्डप पर दूल्हा और दुलहिनि को… इस तरह सजा कर सखियाँ ले कर आयीं… ।
ब्रह्मा ने वेद मन्त्र का उच्चारण किया…अपने चारों मुख से चारों वेदों का पाठ किया था… ।
सुंदर बेदी सजाई है सखियों ने…
लाल लाल फूलों को उन बेदी के चारों ओर लगा दिया है… ।
आँखें बन्द करके ब्रह्मा ने अग्नि देवता का आव्हान किया ।
अग्नि देव इसी समय की प्रतीक्षा में ही थे… अग्नि प्रकट हुए… और युगल सरकार के चरणों में प्रणाम करके… बेदी में अपना आसन लगाया… ।
भाँवर देने के लिए… 4 सखियों ने श्रीराधा जी को सम्भाला… और 4 सखियों ने… श्याम सुंदर को ।
भाँवर की विधि प्रारम्भ हुयी थी…
पहले आगे श्रीराधा जी… और उनके पीछे श्याम सुंदर…
उद्धव आनन्दित हो उठे थे… सखियाँ गीत गा रही थीं… और वो इतना सुंदर गीत गा रही थीं… मानो ऐसा लग रहा था कि कोयल बोल रही हो… ।
श्री किशोरी जू के सुंदर मांग पर…श्रीश्यामसुंदर ने सिंदूर दान किया ।
उस समय उनके हाथ काँप रहे थे…श्री श्याम सुंदर के ।
प्रेम में डूब गए थे…प्यारे श्रीश्यामसुंदर…उन्हें तो देह सुध ही नही थी ।
कन्यादान !…
ब्रह्मा ने कहा ।
पर कन्या दान कौन करेगा ?
चरणों में चारों मस्तकों को रख दिया था ब्रह्मा ने… और हाथ जोड़कर बोले… ये सौभाग्य मुझे दिया जाए… ।
अनादि दम्पति के कन्या दान का सौभाग्य !…ये विधाता ने अपने पास रखा… ओह ! बड़े चतुर हैं ये ब्रह्मा तो ! उद्धव हँसे थे ।
कन्या दान किया… ब्रह्मा ने ।
आपके चरणों में मेरा “प्रेम” बना रहे…यही माँगा था ब्रह्मा ने ।
सब सखियों ने… बड़े लाड से… छप्पन भोग… दूध भात, अनंत प्रकार के नमकीन… मिष्ठान्न…
दूल्हा श्री श्याम सुंदर… दुलहिन श्री राधिका…
अपने हाथों से अपनी प्यारी को खिलाते हैं श्याम सुंदर ।
ये उद्धव ने देखा… तो मूर्छित ही हो गए… प्यारी को खिलाया हुआ… श्याम सुंदर स्वयं खा लेते हैं ।
सारी सखियाँ ताली बजा कर हँस पड़ती हैं…
जय जयकार हो उठता है आकाश से…
फूलों की वर्षा होती ही रही…अरे ! भगवान शंकर…भगवान विष्णु… इंद्र , कुबेर…सब लोग अपने अपने विमान में खड़े होकर नाचते रहे थे ।
उद्धव मूर्छित हो गए थे…इस रस को पचा नही पाये… ।
साधकों ! विचार से श्रेष्ठ अनुभव है…
उद्धव ने अपने विचार सुनाये थे… पर अनुभव !…
गोपियों ने उस प्रेम का अनुभव कराया । उनका ब्रह्म जो मात्र दृष्टा था… साक्षी था… निराकार था…पर वो ब्रह्म तो यहाँ प्रेम के वश में है ! ये बताया नही… दिखाया !… प्रेम से बड़ा कोई तत्व नही है… ये अनुभव कराया ।
मेरे पागलबाबा कल कह रहे थे… ज्ञानी विचार देगा… पर जो प्रेमी सन्त होगा है… वो अनुभव करा देता है ।
शेष चर्चा कल…
साधकों ! आज मैं राजस्थान जा रहा हूँ… भागवत कथा है ।
इस उद्धव प्रसंग को वहाँ पर भी लिखता रहूंगा… ।
राधा दुलहिन दूल्हा लाल…
तैसियै चतुर सखी चहुँ ओरैं, गावत राग सुहाग रसाल ।


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