!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( नाचती किशोरी – “सुधंग नाचत नवल किशोरी” )
गतांक से आगे –
इस प्रेम मार्ग में विधि निषेध क्या है ?
प्रेम मार्ग में विधि निषेध होगा तो वो प्रेम मार्ग ही कहाँ हुआ ? बाबा प्रतिप्रश्न करते हैं ।
क्या मतलब ? वो भी पण्डित जी हरिद्वार के थे ।
बाबा बोले – क्या आपने समाज में नही देखा कि एक सामान्य भाव पुरुष व्यक्ति भी समाज की गति से नही चल सकता !
देखो , प्रेमपूर्ण व्यक्ति सदैव समाज की रूढ़ियों के विरोध में ही रहा है । निर्जीव समाज के तत्वों को निकाल कर बाहर फेंकना और जीवंत प्रणाली को लाना ….ये असफल प्रयास प्रेमी सन्तों से होता रहा है । असफल इसलिए कह रहा हूँ कि जो युग का धर्म है वो तो होगा ही ….किन्तु प्रेमियों की ये करुणा होती है कि – देखो , बेचारे रूढ़ समाज के बंधन में बंधे हैं …जड़त्व को ही सर्वस्व मान कर चल रहे हैं ।
कबीर, मंसूर , ईसा, रहीम ..आदि आदि प्रेमी हुए …जिन्होंने विधि निषेध को नकारा ।
पागलबाबा कहते हैं – ये तो प्रेम की एक लहर पाकर ही उन्मत्त हो गये थे….पर निकुँज प्रेम की बात तो इन सबसे भिन्न है …क्यों की वहाँ प्रेम की लहर एक बार नही उठती, वहाँ तो लहरें ही लहरें हैं । एक लहर थमी नहीं की दूसरी उठ गयी । वहाँ का प्रेम समुद्र कभी शान्त ही नही होता । क्षण भर के लिए भी शान्त नही होता । अब विचार करो उस रसोपासना में डूब कर कोई विधि निषेध का पालन करे , ये सम्भव है ?
वो महात्मा जिनका नाम था श्रीहरिराम व्यास जी । ध्यान में मग्न थे …नाचते नाचते श्रीजी की घुँघरू टूट गयी ….ये लीला , ध्यान में चल रही है ….क्या करें ? तभी अपने देह में देखा जनेऊ है …तुरन्त तोड़ दिया और श्रीजी के घुँघरू में बांध दिया ।
कहाँ प्रेम मार्ग में विधि निषेध ! पागलबाबा उन पण्डित जी को समझा रहे थे ।
सुधंग नाचत नवल किशोरी ।
थेई थेई कहति चहति प्रीतम दिशि , वदन चन्द्र मनौं त्रिषित चकोरी ।।
तान बंधान मान में नागरि , देखत श्याम कहत हो हो री ।
श्रीहित हरिवंश माधुरी अँग अँग , बरबस लियौ मोहन चित चोरी । 78 !
सुधंग नाचत नवल किशोरी …………
राग – कान्हरौ , इसी राग में गौरांगी ने आज का पद गाया था । राधा बाग गूंज उठा था । समस्त रसिक समाज झूमने लगे थे । गायन करीब एक घण्टे तक चला …आलाप आदि भी चले ….उससे वातावरण और संगीतमय हो गया था ।
अब बाबा इस पद का ध्यान करायेंगे ।
!! ध्यान !!
उस मोर के शिशु को गोद में ले लिया है श्रीजी ने , ये देखकर सारे मोर वहीं आगये …सबने पंख फैला लिये …नाचने लगे …उन सबको नृत्य करते देखकर श्रीजी के मन में भी नृत्य की उत्कण्ठा जागृत हुई । अब मोर के शिशु को उतार दिया है श्रीजी ने । क्यों जी ! श्रीजी के मन में कोई उत्कण्ठा उठे और उसे श्रीवन पूरा नही करेगा ? करेगा । और देखते ही देखते एक दिव्य रास मण्डल वहाँ प्रकट हो गया । मणि माणिक्य से खचित था वो मण्डल । चारों ओर लताओं से आच्छादित था वो मण्डल । उसकी भूमि भी अद्भुत थी …उसमें श्रीजी चली गयीं और वर्तुलाकार घूमने लगीं ….उन्हें बड़ा आनंद आरहा था । श्रीजी की पायल बज उठी थी , सुमधुर स्वर फैलाती पायल , रुनझुन करती पायल ….पूरा श्रीवन गूंज रहा था ।
श्याम सुन्दर उठ गये …..श्रीजी की पायल की रुनझुन ने उन्हें जगा दिया था ।
वो कुँज से बाहर आये तो श्रीजी के दर्शन किये …..वो रास मण्डल में वर्तुल घूम रही हैं …उनके नेत्र बन्द हैं ….श्रीवन का पवन उनके हृदय के प्रेम रस को और बढ़ा रहा है । श्याम सुन्दर दर्शन करते हैं अपनी प्यारी का । वो देह सुध भूल गए हैं ।
हित सखी इसी का वर्णन कर रही है ।
आहा ! देखो तो नवल किशोरी कैसे सुधंग नृत्य कर रही हैं ।
अब नेत्र खोल लिये …तो श्रीजी अपने सामने श्याम सुन्दर को देखती हैं …अपने प्रीतम को देखते ही उनका उत्साह और बढ़ गया …वो चरण से ताल देने लगीं …थेई थेई …नृत्य में अपने चरण पटकने लगीं, प्रिया जी अब सब कुछ भूल गयी हैं क्यों की उनके सामने प्रीतम जो खड़े हैं । वो बस प्रीतम की ओर देखकर नृत्य कर रही हैं ..और ऐसे देख रही हैं जैसे – चकोरी चन्द्रमा को देखती है ।
अब तो ये तान भी लेती हैं ….ये तान , बंधान , और मान में भी बड़ी चतुरा हैं । वो अपने नयनों को घुमा रही हैं ….प्रीतम की ओर देखकर नयनों को अर्ध मूँद लेती हैं ….फिर मुस्कुरा जाती हैं ….ये देखकर श्याम सुन्दर …हो , हो हो …ऐसे उत्साह वर्धक शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं ।
पर …हित सखी हंसती है …….
क्या ‘पर’?
हित सखी कपोल में हाथ रखकर कहती है …प्यारी जी ने प्यारे को अपने वश में कर लिया है ।
प्यारे का चित्त पूर्ण रूप से चुरा लिया है ….देखो तो प्यारे कैसे उनके साथ ही नाचने लगे हैं …और प्रिया जी अब जब उन्हें छू रही हैं ….तो प्रीतम के नेत्र बन्द हो रहे हैं । ओह !
पागलबाबा कहते हैं ……अब ऐसे प्रेम सिन्धु में कहाँ नियम विधि निषेध का पालन हो । ये तो उन्मुक्त मार्ग है……सामने कोई विधि का पर्वत भी आगया तो उसे ये तोड़कर फेंक देगा ।
इसके बाद गौरांगी ने फिर इसी पद का गायन किया था ।
“सुधंग नाचत नवल किशोरी”
शेष चर्चा कल –


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