!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 84 !!
सावधान ! प्रेम संक्रामक है….
भाग 3
वो निराकार है……उसका कोई आकार तो है नही…….
बड़े दवे स्वर में उद्धव बोले थे ।
क्या तेरा निराकार ब्रह्म साकार नही हो सकता ? श्रीराधारानी नें पूछा ।
उद्धव बोले – वो निर्गुण निराकार ही हैं…………..
तो फिर वो सर्वशक्तिमान नही है ? श्रीराधारानी नें फिर पूछा था ।
उद्धव सकपका गए …..कुछ सोचकर बोले – नही, सर्वशक्तिमान तो है ।
हँसी श्रीराधारानी ……..जब सर्वशक्तिमान है ……….तो निराकार से साकार क्यों नही हो सकता ?
उद्धव ये सुनकर चुप हो गए ………..निरुत्तर ही हो गए थे ।
आपको कितना वियोग है ना ? आप कितना रोती रहती हैं ना ?
उद्धव नें अब सहानुभूति दिखाई श्रीराधा रानी के प्रति ।
वियोग किसे नही है ? क्या तुम्हे वियोग नही है ? क्या इस जगत के समस्त जीवों को अपनें सच्चे यार का वियोग नही है ?
पर आश्चर्य होता है मुझे उद्धव ! ऐसा वियोग होनें के बाद भी ……..हम रोते नही हैं …….हम तड़फते नही हैं …..कैसे भोजन हमारे गले से नीचे उतरता है ? कैसे हम खर्राटे भरकर सो सकते हैं ?
उद्धव ! जो सच में इस बात को समझ लेता है कि……..हमारा सच्चा वियोग तो भगवान से है ………कब के बिछुड़े हैं हम……जन्मों जन्मों के …….फिर भी कोई तड़फ़ नही ?
श्रीराधारानी उद्धव को ही देखकर कह रही हैं………..उद्धव ! जो इस वियोग को जान लेता है …….और तड़फ़ शुरू हो जाती है ………बस समझो मिलन- संयोग का समय आगया………हमारा वियोग सच में वियोग नही है …….संयोग है……..हम रोती हैं ……बिलखती हैं ……ये आनन्द है ……..अश्रु बहानें का आनन्द ।
उद्धव !
ललिता सखी आगे आई और उद्धव को छू दिया ।
बस – उद्धव को रोमांच होनें लगा ………..प्रेम की तरंगें उद्धव के देह में व्याप्त होनें लगीं ……….उन तरंगों नें मन , बुद्धि , चित्त और अहं को भी छू लिया ………..सिर चकरानें लगा उद्धव का ………….
आपनें ठीक नही किया प्रभु ! इन गोपियों का अपराध क्या था ?
ओह ! उद्धव विचार करते हैं ……….ये मुझे क्या हो गया ………मुझे मेरे श्रीकृष्ण अपराधी क्यों लग रहे हैं ? ये गोपियाँ मुझे अपनी लगनें लगी हैं …….अन्धेरा सा छानें लगा था उद्धव के आँखों के सामने ।
शेष चरित्र कल –
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