Explore

Search

September 13, 2025 10:13 pm

लेटेस्ट न्यूज़
Advertisements

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 15-( प्रेम का पागलपन – “ललिता मथुरा चलीं” ) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 15-( प्रेम का पागलपन – “ललिता मथुरा चलीं” ) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 15

( प्रेम का पागलपन – “ललिता मथुरा चलीं” )

गतांक से आगे –

पागलपन नही तो प्रेम ही क्या ? क्या पागलपन का ही दूसरा नाम प्रेम नही है ?

सूरदास जी की ये पंक्ति आपको कैसी लगती है ….जरा इसे भी सुनिये –

“जरत पतंग दीप में जैसे , औ फिर फिर लपटात”

अब इसे आप पागलपन नही कहोगे ? जब पता है कि दीपक के पास जाने से जलते हैं तो क्यों जाना ? पर ये पागल पतंग जाता है …और जल मरता है ।

अब ये क्या है ? मथुरा जाने के लिए उद्यत हो गयीं हैं सखियाँ । क्या ये निरा पागलपन नही है ?

ओह ! साधकों ! क्या कहें …..बस अब आगे पढ़िए और रोईए ।


श्रीराधा की दशा उन्माद के चरम पर पहुँच गयी है । वो रो मात्र नही रहीं थीं रोते हुए उनकी साँसें अटक रही थीं । वो दोनों हाथ अपने वक्ष पर मार रही थीं …उनके चीख से पूरा ब्रह्माचल पर्वत काँप रहा था । पशु, पक्षी , वृक्ष , लता आदि सब सहमें हुए थे …श्रीराधा सबकी अपनी थीं …इनका स्नेह सबको प्राप्त था इसलिये इनकी ये दशा देखकर जड़ भी बिलख उठे थे ।

“मैं जाऊँगी मथुरा , मुझे मथुरा में छोड़ दो …मैं जोगन बन जाऊँगी”….

श्रीराधारानी बार बार ये कह रही हैं ….वो बिलख बिलख कर रो रही हैं ।

नहीं , नही आप भानुसुता हो …आप वृन्दावनेश्वरी हो ….आप हमारी राजा हो …हमें क्या प्रयोजन श्याम सुन्दर से …वो गए तो गये …किन्तु आप अगर हमें छोड़ देंगी तो हम कहाँ जायेंगीं ? हे स्वामिनी ! हमारा अब कोई आधार नही है ….बस आप ही हमारी सर्वस्व हो ।

ये कहते हुए ललिता श्रीराधा के चरणों में गिर गयी थी ….और रोने लगी थी ।

सखी ! वो हमें भूल गए हैं ? उन्हें स्मरण तो दिलाओ । श्रीराधारानी ने कहा ।

“ललिता जाएगी मथुरा”…..चन्द्रावली ने कहा । ये बड़ी देर से सोच रही थी ….उपाय क्या है ? श्रीराधा रानी की बात चन्द्रावली को ठीक लगी थी कि ….एक बार पता तो किया जाये कि श्रीकृष्ण यहाँ आयेंगे या नहीं ? उनके मन में क्या है ? वो यहाँ कुछ कह नही पाए खुलकर, शायद मथुरा की भूमि में बैठ कर कह दें ।

किन्तु मैं जाऊँगी ! श्रीराधारानी ने फिर कहा ।

नही , स्पष्ट मना किया चन्द्रावली ने । तुम अब हम सब सखियों की मुकुटमणि हो ….सौभाग्य हो ….तुम्हें हम नही जाने देंगीं । सच है ! तुम्हारे ही बल से हम अभिमानिनी हैं …हे राधे ! श्याम के गौरव से तुम्हारा गौरव है किन्तु तुम्हारे गौरव से पूरे बृज मण्डल का गौरव है …ये कहते हुए आज चन्द्रावली भी रो पड़ी थी । ललिता जायेगी । विशाखा जाएगी । रंगदेवि और सुदेवी भी जाएगी …..कृष्ण से बातें करेंगीं ये जाकर ……

“मैं नही जा सकती” । ललिता ने मना कर दिया । क्यों की मैं लाड़ली को अकेली नही छोड़ सकती । चन्द्रावली बोली ….यहाँ मैं हूँ ….मैं देख रेख करूँगी ….अब ये तुम्हारी ही स्वामिनी नही हैं ….पूरे बृजमण्डल की स्वामिनी हो गयी हैं ।

किन्तु …..ललिता कुछ बोलने जा रही थी कि श्रीराधारानी ने उसका हाथ पकड़ लिया …और बिलख कर बोलीं – ललिते ! तू मेरी प्यारी सखी है ….मैंने तुझे अपने हृदय की गहरी से गहरी और छुपाने वाली बात भी बताई है ….इसलिये मेरी सखी ! तू ही जा । तू मथुरा जायेगी तो मेरी ओर से भी तू उनको समझा सकती है ….है ना ? तू जा । ललिता अब क्या बोले …उसके पास कुछ नही है बोलने के लिए …उसकी स्वामिनी ने उसे आज्ञा दी है ।

ठीक है स्वामिनी ! आप अपना ध्यान रखना ।
ललिता ने अपना मस्तक स्वामिनी के चरणों में रख दिया ।

मैं चली जाती मथुरा ….किन्तु तू राधा की प्रिय सखी है …इनके मनोभावों को कृष्ण के सामने तू अच्छे से रख सकती है ….इसलिए मैं तुझे जाने के लिए कह रही हूँ । चन्द्रावली ने ललिता को समझाया । आप लाड़ली का ध्यान रखना । और विशाखा ! सुदेवी ! तुम यहीं रहो , मैं और रंगदेवि मात्र जायेंगीं मथुरा । ललिता ने कह दिया था ।

ललिता ! तू राधा बनकर मथुरा जा । चन्द्रावली ने ये कहा ।

नही , हे ललिता ! तू अपने ही भेष में जा । मेरे श्याम सुन्दर को अब पता नही ये सब अच्छा लगेगा या नही , मन ही तो है ना , क्या पता बदल गया हो ?

“बदल भी गया होगा तो मैं बदलने नही दूँगी”……ललिता आक्रामक हो उठी थी ।

ऐसे कैसे बदल सकते हो तुम ? मैं उन्हें पहले समझाऊँगी ….नही माने तो …..

ललिता सोच रही है …..कुछ सोचने लगी है इस समय ललिता ।


ओह ! ओह ! क्षमा करें मुझे …मैं इस कुँज में सीधे ही चली आयी ।

ललिता उस कुँज में चली आयी थी …जहां श्रीराधा और कृष्ण विहार कर रहे थे ।

क्यों आयी हो ? काम बताओ और जाओ । श्याम सुन्दर ने भी कह दिया ।

अच्छा !
मेरी लाड़ली के साथ प्रेम के रंग में रंगे हो …ख़बरदार ! मेरी लाड़ली को कभी रुलाया तो ।

ये क्या बोल गयी थी ललिता !

मैं क्यों रुलाऊँ तुम्हारी लाड़ली को ? श्याम सुन्दर भी बोल पड़े थे ।

तो लिखकर दो ….ललिता भी बोल उठी ।

ये क्या है ललिता ! श्रीराधारानी ने बीच में कहा था । पर श्रीराधारानी की बात अनसुनी कर दी थी ललिता ने ….वो श्याम सुन्दर से तन गयी थी आज ।

लिख देता हूँ ……इधर उधर देखने लगे श्याम सुन्दर तो तुरन्त ताड़पत्र ले आयी ललिता और एक सिन्दूर के पेड़ से सिन्दूर के बीजों को मसल कर मोर पंख से …….

क्या लिखूँ ? ये बात श्रीराधारानी की ओर देखकर बोले थे श्याम सुन्दर ।

प्यारे ! आपको जो उचित लगे वही लिखिये ! ललिता के कहने पर मत जाइये ।

कुछ सोचकर लिख दिया – “हे राधे ! मैं तुम्हारा दास हूँ” ।

ये क्या लिखा ? श्रीराधा हंसीं । प्रीतम , ये क्या ! आप हमारे दास हो ?

हाँ , क्या , नही ?

ये कहते हुए अपने पलकों को श्याम सुन्दर श्रीराधारानी के चरणों से छुवा रहे थे ।


वो पत्र मुझे दोगी लाड़ली ! जो पत्र एक बार श्याम सुन्दर ने आपके लिए लिखा था ।

ललिता सखी ने आज श्रीराधारानी से वो पत्र माँगा ।

किन्तु उसमें तो बस यही लिखा है …..श्रीराधारानी कह नही पाईं कि क्या लिखा है …उनकी वाणी अवरुद्ध हो गयी ….वो फिर हिलकियों से रोने लगीं ।

कुछ देर तक ये भाव की उन्मत्त दशा रही ….फिर जब कुछ शान्त हुईं तब ललिता ने कहा …वो पत्र दे दो । पर उस पत्र में तो …..हाँ , यही लिखा है कि “हे राधे ! मैं तुम्हारा दास हूँ” । मुझे दे दो पत्र । ललिता फिर आग्रह किया ।

किन्तु पत्र का क्या करोगी ? श्रीराधारानी ने पूछा ।

मैं उस पत्र को ले जाऊँगी …..उनसे संवाद करूँगी ….अगर नही मानें वापस आने को …तो पत्र दिखा दूँगी …और कहूँगी चलो मेरे साथ ….लाड़ली ! मैं बाँध कर उन्हें ले आऊँगी । ललिता ने आक्रामक रूप से ये सब कहा था ।

नही नही , बाँध कर मत लाना , ललिते ! बांधना मत …उनको प्रेम से समझाना …कहना …राधा ! आपकी प्यारी ! आपको बहुत याद करती है ….आपके बिना मर जाएगी ….आप चलो । फिर श्रीराधा कुछ देर बाद बोलीं …..नही नहीं …”मर जायेगी” ये मत बोलना ….अच्छा नही लग रहा ……वो दुखी हो जायेंगे फिर । नही …उनको सहज बोलना ।

अच्छा ! तो मैं उनके पाँव पकड़ लुंगी ? ललिता ने कहा ।

इस पर भी श्रीराधा सोचने लगीं ….नहीं , पाँव भी मत पकड़ना ….गिड़गिड़ाना उचित नही होगा ….वो कहीं हमें बेचारा समझ दया करके न आजायें , ललिता ! दया नही चाहिये । ये बात श्रीराधा के मुख से ललिता ने सुनी तो वो चकित रह गयीं …..इतनी तड़फ , इतनी व्याकुलता होने के बाद भी ….”दया नही चाहिए श्रीराधा को” ….ओह ।

कुछ देर सोचती रहीं श्रीराधारानी ….फिर फिर बोलीं …..पाँव मत पकड़ना …और डाँटना भी नही प्रीतम को । ललिता ! बृज की विपत्ति जो है वो बता देना ….उनकी गौएं चरती नही हैं ये बता देना ….उनके सखा-ग्वाले सब अनाथ से हो गये हैं , बता देना ।

लाड़ली ! आपके विषय में ?

ललिता अब मथुरा जाने के लिए तैयार है इसलिए पूछ रही है ।

मेरे विषय में ! यही कहना कि …..”राधा बस बिना प्राण की हो गयी है “।

ये कहते हुए श्रीराधा ने अपनी चोली से उस पत्र को निकाला और चूमकर ललिता को दे दिया ।

फिर ललिता से कहा …सुन ! वहाँ कुछ ऐसी वैसी बात मत करना ….संकेत में ही प्रीतम को बता देना ……वहाँ लोग होंगे ना ! बड़े बड़े राजपरिवार के लोग होंगे …उन सबके सामने श्याम सुन्दर को भला बुरा कुछ मत कहना । और हाँ , बस उनसे ये अवश्य पूछ लेना कि वे आयेंगे या नही ? आयेंगे तो कब तक आयेंगे ! श्रीराधारानी ये सब कह रही थीं ….तभी चन्द्रावली ने कहा ….ललिता ! तुझे जो सही लगे वही कहना , देख ! देख अपनी स्वामिनी को ….ये दशा बनाई है उस छलिया ने …। नही , नही ललिता ! वो दुखी हो जायेंगे …उन्हें दुखी मत करना । अगर वो दुखी हो गये तो मैं जीते जी मर जाऊँगी । ललिता ! उन्हें दुखी मत करना …..राधा की प्रार्थना है श्याम सुन्दर दुखी न हों बस ।

अपनी स्वामिनी का सन्देश लेकर ललिता और रंगदेवि निकल गए थे मथुरा के लिए ।

श्रीराधारानी बिलखते हुए उन्हें देखती रहीं ।

क्रमशः….

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
Advertisements
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग
Advertisements