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February 5, 2025 5:52 pm

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श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 16-( मथुरा में श्रीराधा की सखियाँ ) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 16-( मथुरा में श्रीराधा की सखियाँ ) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 16

( मथुरा में श्रीराधा की सखियाँ )

गतांक से आगे –

मथुरा चलीं ललिता सखी और रंगदेवी ….दोनों होकर के ।

किन्तु पहले कात्यायनी देवि के पास गयीं, इनको मनाना आवश्यक जान पड़ा ललिता सखी को ,इसलिये रंगदेवी को साथ में लेकर मथुरा से पूर्व कात्यायनी भगवती के पास में ये पहुँची थीं।

नेत्रों से अश्रु झर झर बह रहे थे …..रंगदेवी हाथ जोड़कर एक अबोध बच्ची की तरह रो रही थी….तो ललिता अपना मस्तक ही कात्यायनी के चरणों में रख चुकी थी । वो बिलखते हुए अपना सिर पटक भी रही थी ।

हे योगेश्वरी ! हे जगदीश्वरी ! हे योगमाया जगदम्बे !

हम यात्रा में जा रही हैं ….हमारी यात्रा को सफल करना हे नारायणी ! सुना है तुम्हें जो नमन करके यात्रा में निकलता है उसकी यात्रा सफल होती ही है ….हे जगदम्बिके! हमारी यात्रा को सफल करना । ललिता सखी ये सब कहते हुए बहुत रो रही थी । आपसे क्या छुपा है भगवती ! आप तो सब जानती हो …..बृज की स्थिति से आप अनभिज्ञ नही हो । हे भद्रकाली ! हमारी लाड़ली को बचा लेना । बस इतनी कृपा करना कि श्याम सुन्दर हमारे साथ वृन्दावन आजायें । हम उनको ही लेने जा रही हैं ….हमारी लाड़ली की स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक हो गयी थी इसलिये हमें जाना पड़ रहा है ….अगर श्याम सुन्दर नही आये तो अच्छा नही होगा । हमारी लाड़ली कैसे जीवन बितायेगी ! ओह ! नही नही , अशुभ मत सोचो ललिता ! कात्यायनी भगवती तो हमारी सुनती हैं ना ? इन्होंने हमारी सुनी तभी तो महारास हुआ …इस बार भी सुनेंगीं । रंगदेवी ने रोते हुए भगवती से कहा ….फिर ललिता की ओर देखकर बोलीं …..अब चलो ! पहले मधुवन चलती हैं फिर वहाँ से मथुरा नगर के लिए प्रस्थान करेंगीं ।
ललिता ने फिर एक बार देवी कात्यायनी की ओर देखा और – “वनमाली हमारे साथ वृन्दावन लौटें, बस इतनी कामना पूरी कर दो” कहती हुयी ….ललिता भी निकल गयी रंगदेवी के साथ । ओह ! मन में डर है ।

“डर लग रहा है”…..मथुरा की सीमा में पाँव रखते हुए रंगदेवी ने कहा । हाँ , रंगदेवी ! मुझे भी बहुत डर लग रहा है । कहीं श्याम सुन्दर ने हमारे साथ आने के लिए मना कर दिया तो ? ललिता का हृदय चीत्कार कर रहा है …..कहीं हमें पहचाना ही नही तो ? ओह !

अब मधुवन में प्रवेश कर चुकी थीं ये दोनों सखियाँ ।


रात्रि में मधुवन विश्राम किया इन दोनों सखियों ने …..विश्राम क्या किया , बस रोती रहीं अपनी स्वामिनी श्रीराधारानी को याद करके अश्रु बहाती रहीं ।

मधुवन हरा-भरा है , यहाँ के पक्षी भी आनंदित हैं ….मधुवन के वृक्ष लता नव पल्लव से शोभित हैं …..पुष्प भी नये नये खिले हैं …भँवरों का गुंजार भी संगीतमय है । ये सब देखकर ललिता का हृदय जल रहा है …..पुष्पों की सुगन्ध अब इनको अच्छी नही लग रही ….पक्षियों का गान भी इनको शूल की तरह चुभ रहा है ।

मधुवन ! कैसे मग्न हो , कैसे आनन्द में जी रहे हो ! हम तो जल गये ….हाँ , तुम्हारे ही कृष्ण ने विरह की ऐसी आग लगा दी बृज में कि सब कुछ जल गया है । पक्षी भी झुलसे पड़ें हैं ….वो कोई कलरव नही करते ….न फूल खिलते हैं , न भँवरों का गुंजार होता है । हम तो मर ही गये हैं ….बस साँसें चल रही हैं ….अब साँसें चलने को मात्र तुम जीवन कह सको , तो कह दो ।

ललिता सखी मधुवन को उलाहना दे रही है ………

बस इन दोनों ने पूरी रात ऐसे ही गुज़ारी । फिर प्रभात की वेला हुई …स्नान किया दोनों ने ….स्वच्छ वस्त्र धारण किये ……फिर चलीं मथुरा नगरी की ओर ।


आज भीड़ है नगर में ….ये दोनों देखती हैं नगर को ….सुन्दर है नगर ! सोचती भी हैं …..

क्या ऐसी भीड़ बनी रहती है …..या आज कुछ है ? ललिता एक नागरी से पूछती है ।

क्यों तुम मथुरा की नही हो क्या ?
उस नागरी ने ललिता और रंगदेवी को ऊपर से लेकर नीचे तक देखा ।

परदेश से आये हैं हम …इसलिये पूछ रहे हैं ….ये बात ललिता ने ही कही थी ।

“आज हमारे राजा पधार रहे हैं”……उस नागरी ने नयन मटकाते हुए कहा ।

कौन राजा ? ललिता ने तुरन्त पूछा ।

अरे , अरे ऐसे घबड़ा क्यों रही हो ? हमारे राजा हैं श्री श्री मथुराधीश कृष्ण चन्द्र ।

ये नाम सुनते ही ललिता और रंगदेवी का हृदय “धक्” कर गया ।

वो बहुत सुन्दर हैं ….मेरा वश चले तो मैं उनके लिए कुछ भी करूँ ?

वश नही चल रहा क्या ? ललिता ने व्यंग किया ।

अभी ब्याह हुआ है , क्या करूँ ? हाथों को मिजती वो नागरी बोली …बस निहार लेती हूँ वासुदेव को । निहारा था ….आज तो कई दिनों के बाद उनके दर्शन होगें …उस नागरी ने ये भी कहा ।

किन्तु तुम दोनों कौन हो ? बड़ी सुन्दरी हो ? उस नागरी ने ये भी पूछ लिया ।

पर ललिता ने इसका कोई उत्तर नही दिया ….उसने कृष्ण सम्बन्धी ही प्रश्न पूछे ।

कहाँ गये थे तुम्हारे राजा ? क्या वो मथुरा में नही रहते ?

रहते हैं ….किन्तु विद्याध्ययन के लिये गए थे ….नागरी ने उत्तर दिया ।

कहाँ ? ललिता ने पूछा ।

सुना है उज्जैन गये थे …..आज लौट रहे हैं …..उन्हीं की प्रतीक्षा में हम सब खड़े हैं …….उस नागरी के मुख से ये अब सुनकर ….ललिता और रंगदेवी भी वहीं खड़ी हो गयीं ।

यहीं से गुजरेंगे ? हाँ, उस नागरी ने उत्तर दिया ।

तभी सैनिक राजमार्ग में छा गये …..पुष्पों की वर्षा मार्ग में होने लगी ।

श्रीकृष्ण चन्द्र महाराजाधिराज की जय जय जय ।

मथुराधीश यदुवंश शिरोमणि श्रीकृष्णचन्द्र जू की जय जय जय ।

ललिता सुन रही है ….रंगदेवी सुन रही है । चारों ओर ऐश्वर्य बिखरा हुआ है मथुरा में । कभी कभी इस ओर भी इनका ध्यान चला जाता है ।

मार्ग में इत्र गुलाब जल आदि का छिड़काव किया जा रहा है …..
क्यों की विद्याध्यन करके आज लौट रहे हैं मथुराधीश ।

उस समय तो कंस को मार कर ये राजा उग्रसेन को सत्ता में बैठाकर अपने माता पिता को कारागार से मुक्त कराकर चले गये थे ना उज्जैन । मथुरा के नर नारी मार्ग के किनारे खड़े होकर आपस में चर्चा कर रहे हैं । अब हम लोगों का समय है ….वैसे तो मथुरा के ही हैं ये श्रीकृष्ण चन्द्र । बस ग्यारह वर्ष तक बृज में रहे । किन्तु कई लोग तो कहते हैं कि बृज के मुखिया नन्दराय और यशोदा मैया के ये बालक हैं ….चर्चा है ….लोग बोल रहे हैं …ललिता सुन रही है सब की बातें । रंगदेवी का हृदय भर आया है । अरे ! काहे के मुखिया के पुत्र होंगे ये …ये तो अपने श्रीवसुदेव के पुत्र हैं ….देवकी के लाड़ले । राजा के बच्चे पलते हैं ना ! ऐसे ही ये भी बृज गाँव में पले । कंस के भय से इनको ले जाया गया था बृज में , एक नगर के विद्वान ने ये भी कह दिया ।

हजार मुख हजार बातें ….ये सखियाँ सबकी सुन रही हैं …..यहाँ ये स्थिति है और बृज में ? वो बेचारी मैया यशोदा अपना माथा फोड़ती है रोज । ललिता के नेत्रों से अश्रु बहने लगते हैं ।

सुना है ….
जब नन्दराय श्रीकृष्ण को मथुरा लेकर आये और कंस वध उपरांत ले जाने की बात की ।

अरे ! ऐसे कैसे ले जायेंगे वो बृज वाले । एक नागरिक की बात पर दूसरे ने तुरन्त कह दिया ।

ये सखियों सब सुन रही हैं ।

ग्वाले फिर आगये तो ? दूसरा बोला ….बेचारे अब नही आयेंगे ।

ललिता रो पड़ी ….हाँ , हम लोग बेचारे ही हैं अब ….समृद्धि तो तुमने पा ली है मथुरा वालों ।

तभी ….मथुराधीश की जय , श्रीकृष्णचन्द्र जू की जय ।

चारों दिशाओं से जय घोष होने लगा ….दो रथ आगे निकल गये ….एक में स्वयं राजा उग्रसेन थे, और दूसरे में श्रीवसुदेव और देवकी थीं ।

अब जो रथ आयेगा ना उसमें हमारे राजा विराजे होंगे श्रीकृष्णचन्द्र जू ।
उसी नागरी ने उत्साह के साथ ललिता और रंगदेवी को बताया ।

अपार जन समुद्र लहरा रहा है …..
लोग भीड़ में बढ़े जा रहे हैं ….उन्हें एक झलक श्रीकृष्ण की देखनी है ।

तभी वो रथ आया ……उस रथ में देखा – श्रीकृष्ण बैठे हैं …..ललिता ने जैसे ही कृष्ण को देखा तो वो रो पड़ी । उसे लगा कि मैं चिल्लाऊँ …..कहूँ ! तुम्हें लज्जा नही आती …वहाँ सबको रुलाकर …..ओह ! मेरी स्वामिनी श्रीराधा की रुलाकर ……ललिता को उन्माद आने लगा ……पर रंगदेवी ने सम्भाल लिया ।

रथ में श्रीकृष्ण हैं बलभद्र हैं , और रोहिणी माता भी ! ये देखते ही ललिता ने अपना सिर झुका लिया , ये अपने को दिखाना नही चाहती । रोहिणी माता सबको देख रही हैं …सबको …श्रीकृष्ण अपनी माला फेंक रहे हैं …भीड़ में ….लोग उनकी माला लेने के लिए पगलाये हुये हैं ।

ये सब देख रही हैं रोहिणी माता ….

तभी – ललिता ! रोहिणी माता चिल्लाईं । उन्होंने भीड़ में ललिता को देख लिया था । ये सबसे अलग भी तो लगते हैं बृजवाले …..पर ललिता ने अपना मुँह छुपा लिया ।

कृष्ण का रथ बढ़ रहा है …..कहीं उसकी गति धीमी हो जाती है तो कहीं तेज गति ….पर तेज गति के लिए अभी स्थान नही है …क्यों की मथुरा की प्रजा पूरी उमड़ पड़ी हैं अपने नायक को देखने ।

रथ पास में आया ललिता रंगदेवी के , तो , ललिता ! रोहिणी फिर बुलाने लगीं । पर अब ललिता ने रंगदेवी का हाथ पकड़ा और भीड़ में से बाहर निकल गयीं ।

रोहिणी माता देखती रहीं ……मुँह ढँक कर चली गयीं थीं ये दोनों ।

ललिता ही थी वो …ललिता ! सजल नयन हो गये थे रोहिणी माता के , पर वो चली क्यों गयी ?

ललिता ने अब पीछे मुड़कर नही देखा ……ये दोनों मधुवन में जाकर बैठ गयीं ….और अपनी स्वामिनी को स्मरण कर बहुत रोने लगीं । बहुत रोईं ।

कैसे लायें इनको वृन्दावन , स्वामिनी ! रोते रोते ये दोनों ही अचेत हो गयीं थीं ।

क्रमशः….

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