!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 94 !!
उद्धव को आज छ महिनें हो गए …
भाग 1
भींगते जा रहे थे उद्धव…….आज वर्षा ज्यादा ही हो रही है ।
बरसानें से नन्दगाँव लौट रहे थे……….श्रावण शुरू हो गया है ।
श्रावण मास लग गया ? चौंके थे उद्धव ।
मेरे वृन्दावन आये छ महिनें हो गए ? इतना समय बीत गया ?
उद्धव विचार करते हैं –
“नही …….मैं उन गंवार गोपी और ग्वालों से ज्यादा बातें नही कर सकता ..न मैं वहाँ रह पाउँगा…..श्रीकृष्ण से मैने स्पष्ट कहा था ।
तब मेरे स्वामी नें मुझ से कहा – तुम जाओ तो उद्धव !
“मैं 2 घड़ी में आपका सन्देश सुना कर आजाऊंगा”
मैने अहंकार में भरकर कहा था ।
पर आज छ महिनें हो गए मुझे यहाँ आये हुये……ओह ! पर ऐसा लग रहा है कि ……अभी तो आया ही हूँ……….
वर्षा तेज़ हो रही है……….पर भींगते ही जा रहे हैं उद्धव ।
यहाँ के बारिश में भी एक अलग ही आनन्द है ………..यहाँ प्रत्येक वस्तु , स्थान , स्थिति सब प्रेमपूर्ण है ।
उद्धव चलते चलते एकाएक रुक गए ………..सामनें एक कदम्ब दिखाई दिया ……..बड़ा दिव्य और फैला हुआ कदम्ब था ………
अनायास उद्धव उस कदम्ब को देखनें लग गए ………..वैसे तो हर वृक्ष-लता ख़ास हैं वृन्दावन के …………..पर ये कदम्ब ……जो बरसाना और नन्दगाँव के बीच में है ……….ये ?
उद्धव वहीं खड़े हो गए……….वर्षा हो रही है ……..काले काले बादल घुमड़ घुमड़ कर आरहे हैं, बिजली चमक रही है……उद्धव पूरे भींग गए हैं …….और भींग रहे हैं ……..
आकाश में बिजली इस बार जोर से चमकी……..लगा कि कहीं बिजली गिरी है …………पर उस बिजली के प्रकाश में………
ओह ! चुधियाँ गयीं थीं उद्धव कि आँखें………आँखें खोलनें कि कोशिश करते हैं ……..पर तीव्र प्रकाश के कारण आँखें खुल नही रहीं ।
कुछ समय बाद जब आँखें थोड़ी सी खोल के देखी उद्धव नें ………..
ओह ! अपूर्व अद्भुत झाँकी थी उस कदम्ब के वृक्ष कि ………..
झूला लगा हुआ था …………बड़ा दिव्य झूला था …………
सखियाँ झुला रही थीं और श्रीराधारानी झूल रही थीं ।
उद्धव आँखें मलते हैं…….फिर देखनें कि कोशिश करते हैं अच्छे से ।
एक सखी है जो दूर खड़ी है ………………
श्रीराधारानी अपनी प्रिय सखी ललिता से कहती हैं ……जाओ ! उस सखी को मेरे पास लाओ…………
उद्धव इस दिव्य लीला का आनन्द ले रहे हैं ।
वो सखी …..दुःखी है ………..और मेरी सदगुरु श्रीराधारानी किसी का दुःख देख नही सकतीं ।
ललिता उस सखी को ले आईँ हैं ……………
क्या नाम है तुम्हारा ? श्रीराधारानी नें पूछा था ।
“साँवरी सखी “
..शरमा के नाम बताया था ।
तुम दुःखी क्यों हो ? श्रीराधारानी नें उस साँवरी सखी से पूछा ।
मुझे झूले में झूलना है ………….सावन का महीना आ गया …….पर मेरे लिये किसी नें झूला नही डाला …………….
हँसी श्रीराधारानी ………बस इतनी सी बात ……………मेरे साथ में बैठो ……..मेरे साथ झूलो ………….
वो साँवरी सखी तो ख़ुशी से उछल पड़ी…
..शायद ये, यही चाहती थी ।
पर जैसे ही वो झूले में बैठी…….और श्रीजी के अंग का स्पर्श पाया…..
वो साँवरी सखी तो देह भान ही भूल गयी ……और गिर गयी ।
उद्धव ये अद्भुत लीला देख रहे हैं …………..
ललिता नें उस साँवरी सखी को सम्भाला ………पर ये क्या ?
भीतर छुपी हुयी बाँसुरी ? उद्धव भी चौंके ………..
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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